लिप्यंतरण:( Innaaa anzalnaahu fee lailatim mubaarakah; innaa kunnaa munzireen )
1. बरकत वाली रात से अभिप्राय "लैलतुल क़द्र" है। यह रमज़ान के महीने के अंतिम दशक की एक विषम रात्रि होती है। यहाँ आगे बताया जा रहा है कि इसी रात्रि में पूरे वर्ष होने वाले विषय का निर्णय किया जाता है। इस शुभ रात की विशेषता तथा प्रधानता के लिए सूरतुल-क़द्र देखिए। इसी शुभ रात्रि में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर क़ुरआन उतरने का आरंभ हुआ। फिर 23 वर्षों तक आवश्यकतानुसार विभिन्न समय में उतरता रहा। (देखिए : सूरतुल-बक़रह, आयत संख्या : 185)
The tafsir of Surah Ad-Dukhan verse 3 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Dukhan ayat 1 which provides the complete commentary from verse 1 through 8.
सूरा अद-दुख़ान आयत 3 तफ़सीर (टिप्पणी)