Quran Quote  : 

कुरान मजीद-100:7 सुरा हिंदी अनुवाद, लिप्यंतरण और तफ़सीर (तफ़सीर).

وَإِنَّهُۥ عَلَىٰ ذَٰلِكَ لَشَهِيدٞ

लिप्यंतरण:( Wa innahu 'alaa zaalika la shaheed )

7.और निश्चय ही वह स्वयं इसका गवाह है [7]।

सूरा आयत 7 तफ़सीर (टिप्पणी)



  • मुफ़्ती अहमद यार खान

सूरह आदियात: अल्लाह का गवाह और इंसान की आत्म-जवाबदेही
(Surah Adiyat: Allah's Witness and Man's Self-Accountability)

इस आयत में "निःसंदेह वह" शब्द का अलग-अलग तफ़सीरों (Tafseer) में कई मतलब बताया गया है। यह इंसानी फितरत (nature) और अल्लाह तआला के हर बात जानने वाले इल्म (knowledge) पर रोशनी डालता है। इसमें इंसान की जवाबदेही और अल्लाह के हर चीज़ पर निगरानी (observation) का ज़िक्र है।

मुख्य व्याख्याएँ (Key Interpretations):

अल्लाह के रूप में गवाह (Allah as the Witness):

कई विद्वानों जैसे तफ़सीर बैदावी और खज़ाइन के मुताबिक़, यह शब्द अल्लाह तआला के लिए है।

  • अल्लाह का इल्म: अल्लाह हर चीज़ को देखता और जानता है। इंसान का हर अमल (action), ख्याल (thought), और नीयत (intention) उसकी नज़र में है।

इंसान खुद अपना गवाह (Man as His Own Witness):

दूसरी तफ़सीर यह है कि इंसान खुद अपनी नाफ़र्मानी (disobedience) का गवाह बनता है। यह अलग-अलग तरीकों से हो सकता है:

क़ियामत के दिन (On the Day of Judgment):
उस दिन इंसान के हाथ, पैर और यहां तक कि उसकी त्वचा (skin) उसके कर्मों की गवाही देंगे।
क़ुरआन में ज़िक्र:
"उस दिन उनकी ज़बान, हाथ और पैर उनके किए गए अमल के बारे में गवाही देंगे।" (सूरह अन-नूर, 24:24)

अंतरात्मा की आवाज़ (Inner Conscience):
जब इंसान गुनाह करता है या नाफ़र्मानी करता है, तो उसका दिल उसे टोकता है। यह दिखाता है कि वह अपने गुनाहों को जानता है।

मुनाफ़िक़त और दोष देना (Hypocrisy and Projection):
इंसान अक्सर दूसरों पर वही गलतियाँ थोपता है, जो खुद उसमें होती हैं। यह भी उसकी कमियों की गवाही है।

सीख और सोचने की बातें (Lessons and Reflections):

अल्लाह का इल्म और निगरानी (Allah’s Perfect Knowledge):

  • सावधान रहना: अल्लाह हर चीज़ जानता और देखता है।
  • जवाबदेही: यह एहसास इंसान को और ज़िम्मेदार बनाता है और अल्लाह का शुक्र अदा करने की तरफ़ ले जाता है।

खुद का हिसाब करना (Self-Accountability):

  • इंसान के पास सही-गलत को समझने की सलाहियत (ability) होती है।
  • जब वह गुनाह करता है, तो उसका दिल उसे टोका करता है।

मुनाफ़िक़त से बचें (Avoiding Hypocrisy):

  • दूसरों की गलतियाँ निकालने के बजाय, अपनी गलतियों पर ध्यान दें।
  • अपनी कमियों को सुधारें और दूसरों पर इल्ज़ाम लगाने से बचें।

क़ियामत की तैयारी (Preparation for the Day of Judgment):

  • उस दिन हर इंसान को अपने अमल का हिसाब देना होगा।
  • उसके अपने अंग (body parts) उसके खिलाफ गवाही देंगे।

व्यावहारिक हिदायतें (Practical Guidance):

अल्लाह की मौजूदगी का एहसास रखें (Be Conscious of Allah’s Presence):

  • हर वक्त याद रखें कि अल्लाह हर चीज़ देखता और जानता है।
  • इससे इंसान अपने अमल को बेहतर बना सकता है।

रोज़ाना अपने अमल का जायज़ा लें (Engage in Daily Self-Reflection):

  • अपने कामों का जायज़ा लें और गुनाहों के लिए माफी मांगें।

ज़बान और अमल पर काबू रखें (Control Tongue and Actions):

  • दूसरों की गलतियों को उजागर करने से बचें और खुद पर ध्यान दें।
  • यह इंसान को विनम्र (humble) और बेहतर बनाता है।

शुक्रगुज़ारी और तौबा करें (Seek Forgiveness and Show Gratitude):

  • अल्लाह से माफी मांगें और उसकी नेमतों का शुक्र अदा करें।
  • शुक्रगुज़ारी नमाज़, दुआ और लोगों की मदद करके की जा सकती है।

नतीजा (Conclusion):

यह आयत इंसान को याद दिलाती है कि अल्लाह उसके हर अमल का गवाह है और इंसान खुद भी अपने कर्मों की गवाही देगा। यह एहसास इंसान को शुक्रगुज़ार, मुनाफ़िक़त से बचने वाला और नेक बनने की दावत देता है।

Ibn-Kathir

The tafsir of Surah Adiyat verse 7 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Adiyat ayat 1 which provides the complete commentary from verse 1 through 11.

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