लिप्यंतरण:( Wa innahu 'alaa zaalika la shaheed )
इस आयत में "निःसंदेह वह" शब्द का अलग-अलग तफ़सीरों (Tafseer) में कई मतलब बताया गया है। यह इंसानी फितरत (nature) और अल्लाह तआला के हर बात जानने वाले इल्म (knowledge) पर रोशनी डालता है। इसमें इंसान की जवाबदेही और अल्लाह के हर चीज़ पर निगरानी (observation) का ज़िक्र है।
अल्लाह के रूप में गवाह (Allah as the Witness):
कई विद्वानों जैसे तफ़सीर बैदावी और खज़ाइन के मुताबिक़, यह शब्द अल्लाह तआला के लिए है।
इंसान खुद अपना गवाह (Man as His Own Witness):
दूसरी तफ़सीर यह है कि इंसान खुद अपनी नाफ़र्मानी (disobedience) का गवाह बनता है। यह अलग-अलग तरीकों से हो सकता है:
क़ियामत के दिन (On the Day of Judgment):
उस दिन इंसान के हाथ, पैर और यहां तक कि उसकी त्वचा (skin) उसके कर्मों की गवाही देंगे।
क़ुरआन में ज़िक्र:
"उस दिन उनकी ज़बान, हाथ और पैर उनके किए गए अमल के बारे में गवाही देंगे।" (सूरह अन-नूर, 24:24)
अंतरात्मा की आवाज़ (Inner Conscience):
जब इंसान गुनाह करता है या नाफ़र्मानी करता है, तो उसका दिल उसे टोकता है। यह दिखाता है कि वह अपने गुनाहों को जानता है।
मुनाफ़िक़त और दोष देना (Hypocrisy and Projection):
इंसान अक्सर दूसरों पर वही गलतियाँ थोपता है, जो खुद उसमें होती हैं। यह भी उसकी कमियों की गवाही है।
अल्लाह का इल्म और निगरानी (Allah’s Perfect Knowledge):
खुद का हिसाब करना (Self-Accountability):
मुनाफ़िक़त से बचें (Avoiding Hypocrisy):
क़ियामत की तैयारी (Preparation for the Day of Judgment):
अल्लाह की मौजूदगी का एहसास रखें (Be Conscious of Allah’s Presence):
रोज़ाना अपने अमल का जायज़ा लें (Engage in Daily Self-Reflection):
ज़बान और अमल पर काबू रखें (Control Tongue and Actions):
शुक्रगुज़ारी और तौबा करें (Seek Forgiveness and Show Gratitude):
यह आयत इंसान को याद दिलाती है कि अल्लाह उसके हर अमल का गवाह है और इंसान खुद भी अपने कर्मों की गवाही देगा। यह एहसास इंसान को शुक्रगुज़ार, मुनाफ़िक़त से बचने वाला और नेक बनने की दावत देता है।
The tafsir of Surah Adiyat verse 7 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Adiyat ayat 1 which provides the complete commentary from verse 1 through 11.
सूरा आयत 7 तफ़सीर (टिप्पणी)