लिप्यंतरण:( Wa la'in sa altahum man nazzala minas samaaa'i maaa'an fa ahyaa bihil arda min ba'di mawtihaa la yaqoolunnal laah; qulil hamdu lillah; bal aksaruhum laa ya'qiloon (section 6) )
38. अर्थात उन्हें जब यह स्वीकार है कि रचयिता अल्लाह है और जीवन के साधन की व्यवस्था भी वही करता है, तो फिर इबादत (पूजा) भी उसी की करनी चाहिए और उसकी इबादत तथा उसके शुभ गुणों में किसी को उसका साझी नहीं बनाना चाहिए। यह तो मूर्खता की बात है कि रचयिता तथा जीवन के साधनों की व्यवस्था तो अल्लाह करे और उसकी इबादत में अन्य को साझी बनाया जाए।
The tafsir of Surah Ankabut verse 63 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Ankabut ayat 61 which provides the complete commentary from verse 61 through 63.
सूरा अल-अन्कबूत आयत 63 तफ़सीर (टिप्पणी)