लिप्यंतरण:( Wa iz qaalat ummatum minhum lima ta'izoona qaw manil laahu muhlikuhum aw mu'azzibuhum 'azaaban shadeedan qaaloo ma'ziratan ilaa Rabbikum wa la'allahum yattaqoon )
61. आयत में यह संकेत है कि बुराई को रोकने से निराश नहीं होना चाहिये, क्योंकि हो सकता है कि किसी के दिल में बात लग ही जाए, और यदि न भी लगे तो अपना कर्तव्य पूरा हो जाएगा।
The tafsir of Surah Al-A’raf verse 164 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah A’raf ayat 163 which provides the complete commentary from verse 163 through 166.
सूरा अल-आराफ़ आयत 164 तफ़सीर (टिप्पणी)