लिप्यंतरण:( Ayahsabu al-lai yaqdira 'alaihi ahad )
यह आयत उसायद बिन कलीदा के बारे में उतरी, जो एक प्रसिद्ध पहलवान थे और उनकी ताकत बहुत मशहूर थी। उनकी ताकत इतनी थी कि वह अपनी पांव के नीचे एक खाल रख सकते थे, और अगर दस आदमी भी उसे छुड़ाने की कोशिश करते, तो भी वे उसे नहीं छुड़ा पाते थे। खाल फट जाती, मगर उसके नीचे से नहीं निकल पाती थी।
जब हज़रत मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) ने उन्हें इस्लाम का पैग़ाम दिया और जन्नत की खुशखबरी दी तथा जहन्नम के सज़ा से डराया, तो उसायद ने अपनी ताकत पर घमंड करते हुए जवाब दिया कि जहन्नम के फरिश्ते उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकते। वह अडिग होकर बोले कि वह अकेले ही उनसे लड़ने के लिए काफी हैं। इसी घमंड की प्रतिक्रिया में यह आयत उतरी।
मुख्य बातें (Key Insights):
इंसान का घमंड और अल्लाह की ताकत (Human Arrogance and Allah's Power):
उसायद का जवाब घमंड से भरा हुआ था, जिसमें उन्होंने अपनी शारीरिक ताकत को जहन्नम की सज़ा से बचाव का जरिया माना। इससे यह जाहिर होता है कि इंसान को अपनी ताकत या क्षमताओं पर घमंड करने से बचना चाहिए, क्योंकि अल्लाह की ताकत अनंत है, और मानव शक्ति या घमंड उसकी ताकत से मेल नहीं खा सकता।
अल्लाह का इंसान पर नियंत्रण (Allah's Control Over Man):
अल्लाह ने इंसान को शारीरिक रूप से दूसरों के नियंत्रण में रखा है, जैसे माता-पिता, शिक्षक और राज्य। यह दिखाने के लिए है कि इन शक्तियों का अस्तित्व अल्लाह की बड़ी ताकत का हिस्सा है। जैसे इंसान शारीरिक रूप से दूसरों पर निर्भर होता है, वैसे ही उसे अपनी आत्मिक भलाई के लिए धार्मिक मार्गदर्शकों, उलेमाओं, संतों, फरिश्तों और हज़रत मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) पर भी निर्भर होना चाहिए।
आध्यात्मिक अधिकारों को नकारना (Rejecting the Spiritual Authorities):
जो लोग नबियों, संतों और फरिश्तों के अधिकार को नकारते हैं, वे दरअसल उस मार्ग का नकारण करते हैं, जिसके माध्यम से अल्लाह की ताकत और मार्गदर्शन इंसान तक पहुंचते हैं। इन आध्यात्मिक अधिकारियों का नकारना, अल्लाह की ताकत का नकारना है।
निष्कर्ष (Conclusion):
इस आयत में हमें अपनी शारीरिक ताकत पर घमंड करने से बचने की सलाह दी गई है और यह याद दिलाया गया है कि असली ताकत सिर्फ अल्लाह के पास है। हमें अपनी निर्भरता को समझते हुए अल्लाह की रहमानी ताकत और हमें दी गई आध्यात्मिक मार्गदर्शन को स्वीकार करना चाहिए।
The tafsir of Surah Balad verse 5 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Balad ayat 1 which provides the complete commentary from verse 1 through 10.
सूरा आयत 5 तफ़सीर (टिप्पणी)