लिप्यंतरण:( Kaanan naasu ummatanw waahidatan fab'asal laahun Nabiyyeena mubashshireena wa munzireena wa anzala ma'ahumul kitaaba bilhaqqi liyahkuma bainan naasi feemakh talafoo feeh; wa makh talafa feehi 'illallazeena ootoohu mim ba'di maa jaaa'athumul baiyinaatu baghyam bainahum fahadal laahul lazeena aamanoo limakh talafoo feehi minal haqqi bi iznih; wallaahu yahdee mai yashaaa'u ilaa Siraatim Mustaqeem )
132. आयत 213 का सारांश यह है कि सभी मानव आरंभिक युग में स्वाभाविक जीवन व्यतीत कर रहे थे। फिर आपस में विभेद हुआ तो अत्याचार और उपद्रव होने लगा। तब अल्लाह की ओर से नबी आने लगे ताकि सबको एक सत्धर्म पर कर दें। और आकाशीय पुस्तकें भी इसीलिए अवतरित हुईं कि विभेद में निर्णय करके सब को एक मूल सत्धर्म पर लगाएँ। परंतु लोगों की दुराग्रह और आपसी द्वेष विभेद का कारण बने रहे। अन्यथा सत्धर्म (इस्लाम) जो एकता का आधार है, वह अब भी सुरक्षित है। और जो व्यक्ति चाहेगा तो अल्लाह उसके लिए यह सत्य दर्शा देगा। परंतु यह स्वयं उसकी इच्छा पर आधारित है।
The tafsir of Surah Baqarah verse 212 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Baqarah ayat 211 which provides the complete commentary from verse 211 through 212.
सूरा अल-बकरा आयत 213 तफ़सीर (टिप्पणी)