लिप्यंतरण:( Allazeena yaakuloonar ribaa laa yaqoomoona illaa kamaa yaqoomul lazee yatakhabbatuhush shaitaanu minal mass; zaalika bi annahum qaalooo innamal bai'u mislur ribaa; wa ahallal laahul bai'a wa harramar ribaa; faman jaaa'ahoo maw'izatum mir rabbihee fantahaa falahoo maa salafa wa amruhooo ilal laahi wa man 'aada fa ulaaa 'ika Ashaabun naari hum feehaa khaalidoon )
181. इस्लाम मानव में परस्पर प्रेम तथा सहानुभूति उत्पन्न करना चाहता है, इसी कारण उसने दान करने का निर्देश दिया है कि एक मानव दूसरे की आवश्यकता पूर्ति करे। तथा उसकी आवश्यकता को अपनी आवश्यकता समझे। परंतु ब्याज खाने की मानसिकता सर्वथा इसके विपरीत है। ब्याज भक्षी किसी की आवश्यकता को देखता है, तो उसके भीतर उसकी सहायता की भावना उत्पन्न नहीं होती। वह उसकी विवशता से अपना स्वार्थ पूरा करता तथा उसकी आवश्यकता को अपने धनी होने का साधन बनाता है। और क्रमशः एक निर्दयी हिंसक पशु बनकर रह जाता है, इसके सिवा ब्याज की रीति धन को सीमित करती है, जबकि इस्लाम धन को फैलाना चाहता है, इसके लिए ब्याज को मिटाना, तथा दान की भावना का उत्थान चाहता है। यदि दान की भावना का पूर्णतः उत्थान हो जाए तो कोई व्यक्ति दीन तथा निर्धन रह ही नहीं सकता।
The tafsir of Surah Baqarah verse 274 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Baqarah ayat 272 which provides the complete commentary from verse 272 through 274.
सूरा अल-बकरा आयत 275 तफ़सीर (टिप्पणी)