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कुरान मजीद-48:26 सुरा अल-फ़तह हिंदी अनुवाद, लिप्यंतरण और तफ़सीर (तफ़सीर).

إِذۡ جَعَلَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فِي قُلُوبِهِمُ ٱلۡحَمِيَّةَ حَمِيَّةَ ٱلۡجَٰهِلِيَّةِ فَأَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِينَتَهُۥ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَعَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَأَلۡزَمَهُمۡ كَلِمَةَ ٱلتَّقۡوَىٰ وَكَانُوٓاْ أَحَقَّ بِهَا وَأَهۡلَهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٗا

लिप्यंतरण:( Iz ja'alal lazeena kafaroo fee quloobihimul hamiyyata hamiyyatal jaahiliyyati fa anzalal laahu sakeenatahoo 'alaa Rasoolihee wa 'alal mu mineena wa alzamahum kalimatat taqwaa wa kaanooo ahaqqa bihaa wa ahlahaa; wa kaanal laahu bikulli shai'in Aleema (section 3) )

जब काफ़िरों ने अपने दिलों में हठ कर लिया, जाहिलिय्यत (पूर्व-इस्लामी युग) का हठ, तो अल्लाह ने अपने रसूल पर और ईमान वालों पर अपनी शांति उतार दी और उन्हें परहेज़गारी की बात[14] पर सुदृढ़ कर दिया। तथा वे उसके अधिक हक़दार और उसके योग्य थे। और अल्लाह सदैव हर चीज़ को भली-भाँति जानने वाला है।

सूरा अल-फ़तह आयत 26 तफ़सीर (टिप्पणी)



  • मुफ़्ती अहमद यार खान

14. परहेज़गारी की बात से अभिप्राय "ला इलाहा इल्लल्लाह मुह़म्मदुर् रसूलुल्लाह" है। ह़ुदैबिया का संधिलेख जब लिखा गया और आपने पहले "बिस्मिल्लाहिर् रह़मानिर् रह़ीम" लिखवाई तो क़ुरैश के प्रतिनिधियों ने कहा : हम रह़मान रह़ीम नहीं जानते। इसलिए "बिस्मिका अल्लाहुम्मा" लिखा जाए। और जब आपने लिखवाया कि यह संधिपत्र है जिस पर "मुह़म्मदुर् रसूलुल्लाह" ने संधि की है, तो उन्होंने कहा : "मुह़म्मद पुत्र अब्दुल्लाह" लिखा जाए। यदि हम आपको अल्लाह का रसूल ही मानते, तो अल्लाह के घर से नहीं रोकते। आपने उनकी सब बातें मान लीं। और मुसलमानों ने भी सब कुछ सहन कर लिया। और अल्लाह ने उनके दिलों को शांत रखा और संधि हो गई।

Ibn-Kathir

The tafsir of Surah Fath verse 26 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Fath ayat 25 which provides the complete commentary from verse 25 through 26.

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