लिप्यंतरण:( Maaa afaaa'al laahu 'alaa Rasoolihee min ahlil quraa falillaahi wa lir Rasooli wa lizil qurbaa wal yataamaa walmasaakeeni wabnis sabeeli kai laa yakoona doolatam bainal aghniyaaa'i minkum; wa maaa aataakumur Rasoolu fakhuzoohu wa maa nahaakum 'anhu fantahoo; wattaqul laaha innal laaha shadeedul-'iqaab )
4. अर्थात यहूदी क़बीला बनी नज़ीर से जो धन बिना युद्ध के प्राप्त हुआ उसका नियम बताया गया है कि वह पूरा धन इस्लामी बैतुल-माल का होगा, उसे मुजाहिदों में विभाजित नहीं किया जाएगा। ह़दीस में है कि यह नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लिए विशिष्ट था, जिससे आप अपनी पत्नियों को ख़र्च देते थे। फिर जो बच जाता, तो उसे अल्लाह की राह में शस्त्र और सवारी में लगा देते थे। (बुख़ारी : 4885) इसको 'फ़य' का माल कहते हैं। जो ग़नीमत के माल से अलग है। 5. इसमें इस्लाम की अर्थ व्यवस्था के मूल नियम का वर्णन किया गया है। पूँजीवाद व्यवस्था में धन का प्रवाह सदा धनवानों की ओर होता है। और निर्धन दरिद्रता की चक्की में पिसता रहता है। कम्युनिज़्म में धन का प्रवाह सदा शासक वर्ग की ओर होता है। जबकि इस्लाम में धन का प्रवाह निर्धन वर्ग की ओर होता है।
The tafsir of Surah Hashr verse 7 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Hashr ayat 6 which provides the complete commentary from verse 6 through 7.
सूरा Al-Hashrआयत 7 तफ़सीर (टिप्पणी)