लिप्यंतरण:( Wa lam yakul-lahoo kufuwan ahad (section 1) )
न तो उसकी शख्सियत (Personality) में, न ही उसके गुणों (Attributes) में कोई समानता है, क्योंकि वह स्व-स्थित (Self-existent) और सृष्टिकर्ता (Creator) हैं, जबकि बाकी सब कुछ मुमकिन (possible) सृष्टि और मخلूक (created) है। उसके गुण व्यक्तिगत, शाश्वत (eternal), और असीमित (limitless) हैं। दूसरी ओर, सृष्टि के गुण दिया हुआ (bestowed), निर्मित (created), और सीमित (limited) होते हैं।
इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि नबी करीम ﷺ को ग़ैब (Unseen) का जानने वाला और हाज़िर (omnipresent) और नाज़िर (omniscient) मानना शरीक (polytheism) नहीं है, क्योंकि इसमें अल्लाह तआला के साथ कोई समानता नहीं है।
यह वैसा ही है जैसे इंसान को समे (सुनने वाला), बसीर (देखने वाला), हय (जीवित), और क़दीर (शक्ति वाला) मानना। यह याद रखना चाहिए कि इस सूरह में अल्लाह तआला की एकता और उसकी स्तुति (Praise) है, लेकिन "कह दो" (say) के ज़रिए इसमें नबी ﷺ की नात (Praise) का खूबसूरत इशारा भी है, क्योंकि यह इस बात को दर्शाता है कि मोमिन वही है जो अल्लाह तआला के सभी गुणों को आपकी शिक्षाओं (teachings) के जरिए मानता है।
आपको छोड़कर बाकी सब चीज़ों को मान लेना, इस्लाम में सच्चा ईमान नहीं है। जैसे अगर करंसी नोटों पर सरकार का मुहर न हो, तो वे बाज़ार में किसी काम के नहीं होते। देखिए, शैतान भी एकता (monotheism) का मानने वाला था, लेकिन वह शापित है क्योंकि उसने नबूवत (prophethood) को नकारा।
The tafsir of Surah Ikhlas verse 4 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Ikhlas ayat 1 which provides the complete commentary from verse 1 through 4.
सूरा आयत 4 तफ़सीर (टिप्पणी)