लिप्यंतरण:( Wa minal lazeena qaalooo innaa nasaaraaa akhaznaa meesaaqahum fanasoo hazzam mimmaa zukkiroo bihee fa aghrainaa bainahumul 'adaawata walbaghdaaa'a ilaa yawmil Qiyaamah; wa sawfa yunabbi'uhumul laahu bimaa kaanoo yasna'oon )
17. आयत का अर्थ यह है कि जब ईसाइयों ने वचन भंग कर दिया, तो उनमें कई परस्पर विरोधी संप्रदाय हो गए, जैसे याक़ूबिय्यः, नसतूरिय्यः और आरयूसिय्यः। ये सभी एक-दूसरे के शत्रु हो गए। तथा इस समय आर्थिक और राजनीतिक संप्रदायों में विभाजित होकर आपस में रक्तपात कर रहे हैं। इसमें मुसलमानों को भी सावधान किया गया है कि क़ुरआन के अर्थों में परिवर्तन करके ईसाइयों के समान संप्रदायों में विभाजित न होना।
The tafsir of Surah Maidah verse 13 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Maidah ayat 12 which provides the complete commentary from verse 12 through 14.
सूरा अल-मायदा आयत 14 तफ़सीर (टिप्पणी)