लिप्यंतरण:( Fabi ayyi hadeesim ba'dahoo yu'minoon (End Juz 29) )
14. अर्थात जब अल्लाह की अंतिम पुस्तक पर ईमान नहीं लाते, तो फिर कोई दूसरी पुस्तक नहीं हो सकती, जिस पर वे ईमान लाएँ। इसलिए कि अब और कोई पुस्तक आसमान से आने वाली नहीं है।
The tafsir of Surah Mursalat verse 50 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Mursalat ayat 41 which provides the complete commentary from verse 41 through 50.
सूरा अल-मुर्सलात आयत 50 तफ़सीर (टिप्पणी)