लिप्यंतरण:( Wa laaa uqsimu bin nafsil lawwaamah )
2. मनुष्य की अंतरात्मा की यह विशेषता है कि वह बुराई करने पर उसकी निंदा करती है।
The tafsir of Surah Qiyamah verse 2 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Qiyamah ayat 1 which provides the complete commentary from verse 1 through 15.
सूरा अल-क़ियामह आयत 2 तफ़सीर (टिप्पणी)