लिप्यंतरण:( Yastakhfoona minannaasi wa laa yastakh foona minal laahi wa huwa ma'ahum iz yubaiyitoona maa laa yardaa minal qawl; wa kaanal laahu bimaa ya'maloona muheetaa )
72. आयत का भावार्थ यह है कि मुसलमानों को अपना सहधर्मी अथवा अपनी जाति या परिवार का होने के कारण किसी अपराधी का पक्षपात नहीं करना चाहिए। क्योंकि संसार न जाने, परंतु अल्लाह तो जानता है कि कौन अपराधी है, कौन नहीं।
The tafsir of Surah Nisa verse 108 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Nisa ayat 105 which provides the complete commentary from verse 105 through 109.
सूरा अन-निसा आयत 108 तफ़सीर (टिप्पणी)