लिप्यंतरण:( Wal yasta'fifil lazeena laa yajidoona nikaahan hatta yughniyahumul laahu min fadlih; wallazeena yabtaghoonal kitaaba mimmaa malakat aimaanukum fakaatiboohum in 'alimtum feehim khairanw wa aatoohum mimmaalil laahil lazeee aataakum; wa laa tukrihoo fatayaatikum 'alal bighaaa'i in aradna tahassunal litabtaghoo 'aradal hayaatid dunyaa; wa mai yukrihhunna fa innal laaha mim ba'di ikraahihinna Ghafoorur Raheem )
28. इस्लाम ने दास-दासियों की स्वाधीनता के जो नियम बनाए हैं, उनमें यह भी है कि वे कुछ धनराशि देकर स्वाधीनता-लेख की माँग करें, तो यदि उनमें इस धनराशि को चुकाने की योग्यता हो, तो आयत में बल दिया गया है कि उनको स्वाधीलता-लेख दे दो। 29. अज्ञानकाल में स्वामी, धन अर्जित करने के लिए अपनी दासियों को व्यभिचार के लिए बाध्य करते थे। इस्लाम ने इस व्यवसाय को वर्जित कर दिया। ह़दीस में आया है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुत्ते के मूल्य तथा वैश्या और ज्योतिषी की कमाई को रोक दिया। (बुख़ारी : 2237, मुस्लिम : 1567) 30. अर्थात दासी से बल पूर्वक व्यभिचार कराने का पाप स्वामी पर होगा, दासी पर नहीं।
The tafsir of Surah An-Nur verse 33 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Nur ayat 32 which provides the complete commentary from verse 33 through 34.
सूरा An-Nurआयत 33 तफ़सीर (टिप्पणी)