लिप्यंतरण:( Wa la in azaqnaahu rahmatam minnaa mim ba'di dar raaa'a massat hu la yaqoolanna haazaa lee wa maaa azunnus Saa'ata qaaa'imatanw wa la'in ruji'tu ilaa Rabbeee inna lee 'indahoo lalhusnaa; falanu nabbi'annal lazeena kafaroo bimaa 'amiloo wa lanuzeeqan nahum min 'azaabin ghaleez )
18. आयत का भावार्थ यह है कि काफ़िर की यह दशा होती है। उसे अल्लाह के यहाँ जाने का विश्वास नहीं होता। फिर यदि प्रलय का होना मान ले, तो भी इसी कुविचार में मग्न रहता है कि यदि अल्लाह ने मुझे संसार में सुख-सुविधा दी है, तो वहाँ भी अवश्य देगा। और यह नहीं समझता कि यहाँ उसे जो कुछ दिया गया है, वह परीक्षा के लिए दिया गया है। और प्रलय के दिन कर्मों के आधार पर प्रतिकार दिया जाएगा।
The tafsir of Surah Fussilat verse 50 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Fussilat ayat 49 which provides the complete commentary from verse 49 through 51.
सूरा हामीम अस-सजदा आयत 50 तफ़सीर (टिप्पणी)