लिप्यंतरण:( Sanureehim Aayaatinaa fil aafaaqi wa feee anfusihim hattaa yatabaiyana lahum annahul haqq; awa lam yakfi bi Rabbika annahoo 'alaa kulli shai-in Shaheed )
19. अर्थात् क़ुरआन। और निशानियों से अभिप्राय वह विजय है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा आपके पश्चात् मुसलमानों को प्राप्त होंगी। जिनसे उन्हें विश्वास हो जाएगा कि क़ुरआन ही सत्य है। इस आयत का एक दूसरा भावार्थ यह भी लिया गया है कि अल्लाह इस संसार में तथा स्वयं तुम्हारे भीतर ऐसी निशानियाँ दिखाएगा। और यह निशानियाँ निरंतर वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा सामने आ रहीं हैं। और प्रलय तक आती रहेंगी जिनसे क़ुरआन पाक का सत्य होना सिद्ध होता रहेगा।
The tafsir of Surah Fussilat verse 53 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Fussilat ayat 52 which provides the complete commentary from verse 52 through 54.
सूरा हामीम अस-सजदा आयत 53 तफ़सीर (टिप्पणी)