कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

۞وَٱذۡكُرۡ أَخَا عَادٍ إِذۡ أَنذَرَ قَوۡمَهُۥ بِٱلۡأَحۡقَافِ وَقَدۡ خَلَتِ ٱلنُّذُرُ مِنۢ بَيۡنِ يَدَيۡهِ وَمِنۡ خَلۡفِهِۦٓ أَلَّا تَعۡبُدُوٓاْ إِلَّا ٱللَّهَ إِنِّيٓ أَخَافُ عَلَيۡكُمۡ عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٖ

तथा आद के भाई (हूद)[16] को याद करो, जब उसने अपनी जाति को अहक़ाफ़ में डराया, जबकि उससे पहले और उसके बाद कई डराने वाले गुज़र चुके कि अल्लाह के अतिरिक्त किसी की इबादत न करो, निःसंदेह मैं तुमपर एक बड़े दिन की यातना से डरता हूँ।

तफ़्सीर:

16. इसमें मक्का के प्रमुखों को जिन्हें अपने धन तथा बल पर बड़ा गर्व था, अरब क्षेत्र की एक प्राचीन जाति की कथा सुनाने को कहा जा रहा है, जो बड़ी संपन्न तथा शक्तिशाली थी।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 21

قَالُوٓاْ أَجِئۡتَنَا لِتَأۡفِكَنَا عَنۡ ءَالِهَتِنَا فَأۡتِنَا بِمَا تَعِدُنَآ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِينَ

उन्होंने कहा : क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि हमको हमारे माबूदों से फेर दे? तो हम पर वह (अज़ाब) ले आ, जिसकी तू हमें धमकी देता है, यदि तू सच्चों में से है।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 22

قَالَ إِنَّمَا ٱلۡعِلۡمُ عِندَ ٱللَّهِ وَأُبَلِّغُكُم مَّآ أُرۡسِلۡتُ بِهِۦ وَلَٰكِنِّيٓ أَرَىٰكُمۡ قَوۡمٗا تَجۡهَلُونَ

उसने कहा : उसका ज्ञान तो अल्लाह ही के पास है और मैं तुम्हें वही कुछ पहुँचाता हूँ, जिसके साथ मैं भेजा गया हूँ। परंतु मैं तुम्हें देख रहा हूँ कि तुम अज्ञानता का प्रदर्शन कर रहे हो।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 23

فَلَمَّا رَأَوۡهُ عَارِضٗا مُّسۡتَقۡبِلَ أَوۡدِيَتِهِمۡ قَالُواْ هَٰذَا عَارِضٞ مُّمۡطِرُنَاۚ بَلۡ هُوَ مَا ٱسۡتَعۡجَلۡتُم بِهِۦۖ رِيحٞ فِيهَا عَذَابٌ أَلِيمٞ

फिर जब उन्होंने उसे एक बादल के रूप में अपनी घाटियों की ओर बढ़ते हुए देखा, तो उन्होंने कहा : यह बादल है जो हमपर बरसने वाला है। बल्कि यह तो वह (यातना) है जिसके लिए तुमने जल्दी मचा रखी थी। आँधी है, जिसमें दर्दनाक अज़ाब है।[17]

तफ़्सीर:

17. ह़दीस मे है कि जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बादल या आँधी देखते, तो व्याकुल हो जाते। आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! लोग बादल देखकर वर्षा की आशा में प्रसन्न होते हैं और आप क्यों व्याकुल हो जाते हैं? आपने कहा : आयशा! मुझे भय रहता है कि इसमें कोई यातना न हो? एक जाति को आँधी से यातना दी गई। और एक जाति ने यातना देखी तो कहा : यह बादल हमपर वर्षा करेगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4829, तथा सह़ीह़ मुस्लिम : 899)

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 24

تُدَمِّرُ كُلَّ شَيۡءِۭ بِأَمۡرِ رَبِّهَا فَأَصۡبَحُواْ لَا يُرَىٰٓ إِلَّا مَسَٰكِنُهُمۡۚ كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡمُجۡرِمِينَ

वह अपने पालनहार के आदेश से हर चीज़ को विनष्ट कर देगी। अंततः वे ऐसे हो गए कि उनके रहने की जगहों के सिवा कुछ नज़र न आता था। इसी तरह हम अपराधी लोगों को बदला देते हैं।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 25

وَلَقَدۡ مَكَّنَّـٰهُمۡ فِيمَآ إِن مَّكَّنَّـٰكُمۡ فِيهِ وَجَعَلۡنَا لَهُمۡ سَمۡعٗا وَأَبۡصَٰرٗا وَأَفۡـِٔدَةٗ فَمَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُمۡ سَمۡعُهُمۡ وَلَآ أَبۡصَٰرُهُمۡ وَلَآ أَفۡـِٔدَتُهُم مِّن شَيۡءٍ إِذۡ كَانُواْ يَجۡحَدُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ

तथा निःसंदेह हमने उन्हें उन चीज़ों में शक्ति दी, जिनमें हमने तुम्हें शक्ति नहीं दी और हमने उनके लिए कान और आँखें और दिल बनाए, तो न उनके कान उनके किसी काम आए और न उनकी आँखें और न उनके दिल; क्योंकि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते थे तथा उन्हें उस चीज़ ने घेर लिया जिसका वे उपहास करते थे।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 26

وَلَقَدۡ أَهۡلَكۡنَا مَا حَوۡلَكُم مِّنَ ٱلۡقُرَىٰ وَصَرَّفۡنَا ٱلۡأٓيَٰتِ لَعَلَّهُمۡ يَرۡجِعُونَ

तथा निःसंदेह हमने तुम्हारे आस-पास की बस्तियों को विनष्ट कर दिया और हमने विविध प्रकार के प्रमाण प्रस्तुत किए, ताकि वे पलट आएँ।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 27

فَلَوۡلَا نَصَرَهُمُ ٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ قُرۡبَانًا ءَالِهَةَۢۖ بَلۡ ضَلُّواْ عَنۡهُمۡۚ وَذَٰلِكَ إِفۡكُهُمۡ وَمَا كَانُواْ يَفۡتَرُونَ

तो फिर उन लोगों ने उनकी मदद क्यों नहीं की जिन्हें उन्होंने निकटता प्राप्त करने के लिए अल्लाह के सिवा पूज्य बना रखा था? बल्कि वे उनसे गुम हो गए, और यह[18] उनका झूठ था और जो वे मिथ्यारोपण करते थे।

तफ़्सीर:

18. अर्थात अल्लाह के अतिरिक्त को पूज्य बनाना।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 28

وَإِذۡ صَرَفۡنَآ إِلَيۡكَ نَفَرٗا مِّنَ ٱلۡجِنِّ يَسۡتَمِعُونَ ٱلۡقُرۡءَانَ فَلَمَّا حَضَرُوهُ قَالُوٓاْ أَنصِتُواْۖ فَلَمَّا قُضِيَ وَلَّوۡاْ إِلَىٰ قَوۡمِهِم مُّنذِرِينَ

तथा जब हमने तुम्हारी ओर जिन्नों के एक गिरोह[19] को फेरा, जो क़ुरआन को ध्यान से सुनते थे। तो जब वे उसके पास पहुँचे, तो उन्होंने कहा : चुप हो जाओ। फिर जब वह पूरा हो गया, तो अपनी क़ौम की ओर सचेतकर्ता बनकर लौटे।

तफ़्सीर:

19. आदरणीय इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) कहते हैं कि एक बार नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपने कुछ अनुयायियों (सह़ाबा) के साथ उकाज़ के बाज़ार की ओर जा रहे थे। इन दिनों शैतानों को आकाश की सूचनाएँ मिलनी बंद हो गई थीं। तथा उनपर आकाश से अंगारे फेंके जा रहे थे। तो वे इस खोज में पूर्व तथा पश्चिम की दिशाओं में निकले कि इस का क्या कारण है? कुछ शैतान तिहामा (ह़िजाज़) की ओर भी आए और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तक पहुँच गए। उस समय आप "नखला" में फ़ज्र की नमाज़ पढ़ा रहे थे। जब जिन्नों ने क़ुरआन सुना, तो उसकी ओर कान लगा दिए। फिर कहा कि यही वह चीज़ है जिसके कारण हमको आकाश की सूचनाएँ मिलनी बंद हो गई हैं। और अपनी जाति से जा कर यह बात कही। तथा अल्लाह ने यह आयत अपने नबी पर उतारी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4921) इन आयतों में संकेत है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जैसे मनुष्यों के नबी थे, वैसे ही जिन्नों के भी नबी थे। और सभी नबी मनुष्यों में आए। (देखिए सूरतुन-नह़्ल, आयत : 43, सूरतुल-फ़ुरक़ान, आयत : 20)

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 29

قَالُواْ يَٰقَوۡمَنَآ إِنَّا سَمِعۡنَا كِتَٰبًا أُنزِلَ مِنۢ بَعۡدِ مُوسَىٰ مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِ يَهۡدِيٓ إِلَى ٱلۡحَقِّ وَإِلَىٰ طَرِيقٖ مُّسۡتَقِيمٖ

उन्होंने कहा : ऐ हमारी जाति! निःसंदेह हमने एक ऐसी पुस्तक सुनी है, जो मूसा के पश्चात उतारी गई है, उसकी पुष्टि करने वाली है जो उससे पहले है, वह सत्य की ओर और सीधे मार्ग की ओर मार्गदर्शन करती है।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 30

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