कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

لَّقَدۡ كَانَ لَكُمۡ فِي رَسُولِ ٱللَّهِ أُسۡوَةٌ حَسَنَةٞ لِّمَن كَانَ يَرۡجُواْ ٱللَّهَ وَٱلۡيَوۡمَ ٱلۡأٓخِرَ وَذَكَرَ ٱللَّهَ كَثِيرٗا

निःसंदेह तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में उत्तम[16] आदर्श है। उसके लिए, जो अल्लाह और अंतिम दिन की आशा रखता हो, तथा अल्लाह को अत्यधिक याद करता हो।

तफ़्सीर:

16. अर्थात आपके सहन, साहस तथा वीरता में।

सूरह का नाम : Al-Ahzab   सूरह नंबर : 33   आयत नंबर: 21

وَلَمَّا رَءَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلۡأَحۡزَابَ قَالُواْ هَٰذَا مَا وَعَدَنَا ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَصَدَقَ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥۚ وَمَا زَادَهُمۡ إِلَّآ إِيمَٰنٗا وَتَسۡلِيمٗا

और जब ईमान वालों ने सेनाएँ देखीं, तो पुकार उठे : यह वही चीज़ है, जिसका अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे वादा किया था और अल्लाह और उसके रसूल ने सच कहा। और इस चीज़ ने उनके ईमान तथा आज्ञापालन को और बढ़ा दिया।

सूरह का नाम : Al-Ahzab   सूरह नंबर : 33   आयत नंबर: 22

مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ رِجَالٞ صَدَقُواْ مَا عَٰهَدُواْ ٱللَّهَ عَلَيۡهِۖ فَمِنۡهُم مَّن قَضَىٰ نَحۡبَهُۥ وَمِنۡهُم مَّن يَنتَظِرُۖ وَمَا بَدَّلُواْ تَبۡدِيلٗا

ईमान वालों में से कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अल्लाह से जो प्रतिज्ञा की थी, उसे सच कर दिखाया। फिर उनमें से कुछ तो अपना प्रण[17] पूरा कर चुके, और उनमें से कुछ लोग (अभी) प्रतीक्षा कर रहे हैं। और उन्होंने (अपनी प्रतिज्ञा में) तनिक भी परिवर्तन नहीं किया।

तफ़्सीर:

17. अर्थात युद्ध में शहीद कर दिए गए।

सूरह का नाम : Al-Ahzab   सूरह नंबर : 33   आयत नंबर: 23

لِّيَجۡزِيَ ٱللَّهُ ٱلصَّـٰدِقِينَ بِصِدۡقِهِمۡ وَيُعَذِّبَ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ إِن شَآءَ أَوۡ يَتُوبَ عَلَيۡهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا

ताकि अल्लाह सच्चे लोगों को उनके सच का बदला प्रदान करे, और मुनाफ़िक़ों को, यदि चाहे तो यातना दे या उनकी तौबा क़बूल कर ले। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।

सूरह का नाम : Al-Ahzab   सूरह नंबर : 33   आयत नंबर: 24

وَرَدَّ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِغَيۡظِهِمۡ لَمۡ يَنَالُواْ خَيۡرٗاۚ وَكَفَى ٱللَّهُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱلۡقِتَالَۚ وَكَانَ ٱللَّهُ قَوِيًّا عَزِيزٗا

तथा अल्लाह ने काफ़िरों को (मदीना से) उनके क्रोध सहित लौटा दिया, उन्होंने कोई भलाई प्राप्त न की। और अल्लाह ईमान वालों को लड़ाई से काफी हो गया। और अल्लाह बड़ा शक्तिशाली, अत्यंत प्रभुत्वशाली है।

सूरह का नाम : Al-Ahzab   सूरह नंबर : 33   आयत नंबर: 25

وَأَنزَلَ ٱلَّذِينَ ظَٰهَرُوهُم مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ مِن صَيَاصِيهِمۡ وَقَذَفَ فِي قُلُوبِهِمُ ٱلرُّعۡبَ فَرِيقٗا تَقۡتُلُونَ وَتَأۡسِرُونَ فَرِيقٗا

और अल्लाह ने उन किताब वालों को, जिन्होंने उन (काफ़िरों) की सहायता की थी, उनके क़िलों से उतार दिया तथा उनके दिलों में भय[18] डाल दिया। तुम उनके एक समूह को क़त्ल करते थे और एक समूह को बंदी बनाते थे।

तफ़्सीर:

18. इस आयत में बनी क़ुरैज़ा के युद्ध की ओर संकेत है। इस यहूदी क़बीले की नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ संधि थी। फिर भी उन्होंने संधि भंग करके खंदक़ के युद्ध में क़ुरैश मक्का का साथ दिया। अतः युद्ध समाप्त होते ही आपने उनसे युद्ध की घोषण कर दी। और उनकी घेराबंदी कर ली गई। पच्चीस दिन के बाद उन्होंने सा'द बिन मुआज़ को अपना मध्यस्थ मान लिया। और उनके निर्णय के अनुसार उनके लड़ाकुओं को वध कर दिया गया। और बच्चों, बूढ़ों तथा स्त्रियों को बंदी बना लिया गया। इस प्रकार मदीना से इस आतंकवादी क़बीले को सदैव के लिए समाप्त कर दिया गया।

सूरह का नाम : Al-Ahzab   सूरह नंबर : 33   आयत नंबर: 26

وَأَوۡرَثَكُمۡ أَرۡضَهُمۡ وَدِيَٰرَهُمۡ وَأَمۡوَٰلَهُمۡ وَأَرۡضٗا لَّمۡ تَطَـُٔوهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٗا

और तुम्हें उनकी भूमि तथा उनके घरों और उनके धनों का वारिस बना दिया और उस भूमि का भी जिसपर तुमने क़दम नहीं रखा। और अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।

सूरह का नाम : Al-Ahzab   सूरह नंबर : 33   आयत नंबर: 27

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ قُل لِّأَزۡوَٰجِكَ إِن كُنتُنَّ تُرِدۡنَ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا وَزِينَتَهَا فَتَعَالَيۡنَ أُمَتِّعۡكُنَّ وَأُسَرِّحۡكُنَّ سَرَاحٗا جَمِيلٗا

ऐ नबी! आप अपनी पत्नियों से कह दें कि यदि तुम सांसारिक जीवन और उसकी शोभा चाहती हो, तो आओ, मैं तुम्हें कुछ सामान दे दूँ और अच्छे तरीक़े से रुख़्सत कर दूँ।

सूरह का नाम : Al-Ahzab   सूरह नंबर : 33   आयत नंबर: 28

وَإِن كُنتُنَّ تُرِدۡنَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَٱلدَّارَ ٱلۡأٓخِرَةَ فَإِنَّ ٱللَّهَ أَعَدَّ لِلۡمُحۡسِنَٰتِ مِنكُنَّ أَجۡرًا عَظِيمٗا

और यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल तथा आख़िरत के घर को चाहती हो, तो अल्लाह ने तुममें से अच्छे कार्य करने वालियों के लिए बहुत बड़ा बदला[19] तैयार कर रखा है।

तफ़्सीर:

19. इस आयत में अल्लाह ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह आदेश दिया है कि आपकी पत्नियाँ जो आपसे गुजारा भत्ता बढ़ाने की माँग कर रही हैं, तो आप उन्हें अपने साथ रहने या न रहने का अधिकार दे दें। और जब आपने उन्हें अधिकार दिया, तो सबने आपके साथ रहने का निर्णय किया। इसको इस्लामी विधान में (तख़्यीर) कहा जाता है। अर्थात पत्नी को तलाक़ लेने का अधिकार दे देना। ह़दीस में है कि जब यह आयत उतरी तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपनी पत्नी आयशा से पहले कहा कि मैं तुम्हें एक बात बता रहा हूँ। तुम अपने माता-पिता से परामर्श किए बिना जल्दी न करना। फिर आपने यह आयत सुनाई। तो आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने कहा : मैं इसके बारे में भी अपने माता-पिता से परामर्श करूँ? मैं अल्लाह तथा उसके रसूल और आख़िरत के घर को चाहती हूँ। और फिर आपकी दूसरी पत्नियों ने भी ऐसा ही किया। (देखिए : सह़ीह़ बुख़ारी : 4786)

सूरह का नाम : Al-Ahzab   सूरह नंबर : 33   आयत नंबर: 29

يَٰنِسَآءَ ٱلنَّبِيِّ مَن يَأۡتِ مِنكُنَّ بِفَٰحِشَةٖ مُّبَيِّنَةٖ يُضَٰعَفۡ لَهَا ٱلۡعَذَابُ ضِعۡفَيۡنِۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٗا

ऐ नबी की पत्नियो! तुममें से जो खुला दुराचार करेगी, उसे दुगनी यातना दी जाएगी। और यह अल्लाह पर अति सरल है।

सूरह का नाम : Al-Ahzab   सूरह नंबर : 33   आयत नंबर: 30

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