يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ ذِكۡرٗا كَثِيرٗا
ऐ ईमान वालो! अल्लाह को बहुलता से याद करो।[29]
وَسَبِّحُوهُ بُكۡرَةٗ وَأَصِيلًا
तथा सुबह व शाम उसकी पवित्रता बयान करो।
هُوَ ٱلَّذِي يُصَلِّي عَلَيۡكُمۡ وَمَلَـٰٓئِكَتُهُۥ لِيُخۡرِجَكُم مِّنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِۚ وَكَانَ بِٱلۡمُؤۡمِنِينَ رَحِيمٗا
वही है, जो तुमपर दया अवतरित करता है और उसके फ़रिश्ते भी (तुम्हारे लिए प्रार्थना करते हैं), ताकि वह तुम्हें अँधेरों से निकाल कर प्रकाश[30] की ओर लाए। तथा वह ईमान वालों पर बहुत दयालु है।
تَحِيَّتُهُمۡ يَوۡمَ يَلۡقَوۡنَهُۥ سَلَٰمٞۚ وَأَعَدَّ لَهُمۡ أَجۡرٗا كَرِيمٗا
जिस दिन वे अपने पालनहार से मिलेंगे, उनका अभिवादन सलाम होगा। और उसने उनके लिए सम्मानजनका प्रतिफल तैयार कर रखा है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ إِنَّآ أَرۡسَلۡنَٰكَ شَٰهِدٗا وَمُبَشِّرٗا وَنَذِيرٗا
ऐ नबी! हमने आपको गवाही[31] देने वाला, शुभ सूचना देने वाला[32] और डराने वाला[33] बनाकर भेजा है।
وَدَاعِيًا إِلَى ٱللَّهِ بِإِذۡنِهِۦ وَسِرَاجٗا مُّنِيرٗا
तथा अल्लाह की अनुमति से उसकी ओर बुलाने वाला और एक प्रकाशमान दीप (बनाकर भेजा है)।[34]
وَبَشِّرِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ بِأَنَّ لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ فَضۡلٗا كَبِيرٗا
तथा आप ईमान वालों को शुभ सूचना दे दें कि उनके लिए अल्लाह की ओर से बड़ा अनुग्रह है।
وَلَا تُطِعِ ٱلۡكَٰفِرِينَ وَٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَدَعۡ أَذَىٰهُمۡ وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلٗا
तथा आप काफ़िरों और मुनाफ़िकों की बात न मानें, तथा उनके कष्ट पहुँचाने की परवाह न करें, और अल्लाह ही पर भरोसा रखें, तथा अल्लाह काम बनाने के लिए काफ़ी है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا نَكَحۡتُمُ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ ثُمَّ طَلَّقۡتُمُوهُنَّ مِن قَبۡلِ أَن تَمَسُّوهُنَّ فَمَا لَكُمۡ عَلَيۡهِنَّ مِنۡ عِدَّةٖ تَعۡتَدُّونَهَاۖ فَمَتِّعُوهُنَّ وَسَرِّحُوهُنَّ سَرَاحٗا جَمِيلٗا
ऐ ईमान वालो! जब तुम ईमान वाली स्त्रियों से विवाह करो, फिर उन्हें हाथ लगाने से पहले ही तलाक़ दे दो, तो तुम्हारे लिए उनपर कोई इद्दत[35] नहीं, जिसकी तुम गिनती करो। अतः तुम उन्हें कुछ सामान दे दो और उन्हें भलाई के साथ विदा कर दो।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ إِنَّآ أَحۡلَلۡنَا لَكَ أَزۡوَٰجَكَ ٱلَّـٰتِيٓ ءَاتَيۡتَ أُجُورَهُنَّ وَمَا مَلَكَتۡ يَمِينُكَ مِمَّآ أَفَآءَ ٱللَّهُ عَلَيۡكَ وَبَنَاتِ عَمِّكَ وَبَنَاتِ عَمَّـٰتِكَ وَبَنَاتِ خَالِكَ وَبَنَاتِ خَٰلَٰتِكَ ٱلَّـٰتِي هَاجَرۡنَ مَعَكَ وَٱمۡرَأَةٗ مُّؤۡمِنَةً إِن وَهَبَتۡ نَفۡسَهَا لِلنَّبِيِّ إِنۡ أَرَادَ ٱلنَّبِيُّ أَن يَسۡتَنكِحَهَا خَالِصَةٗ لَّكَ مِن دُونِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۗ قَدۡ عَلِمۡنَا مَا فَرَضۡنَا عَلَيۡهِمۡ فِيٓ أَزۡوَٰجِهِمۡ وَمَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُهُمۡ لِكَيۡلَا يَكُونَ عَلَيۡكَ حَرَجٞۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا
ऐ नबी! निःसंदेह हमने आपके लिए आपकी वे पत्नियाँ हलाल (वैध) कर दी हैं, जिन्हें आपने उनका महर चुका दिया है, तथा वे लौंडियाँ (भी) जो आपके स्वामित्व में हैं, उन लौंडियों में से जो अल्लाह ने ग़नीमत के धन से आपको[36] प्रदान की हैं। तथा आपके चाचा की बेटियाँ, आपकी फूफियों की बेटियाँ, आपके मामा की बेटियाँ और आपकी मौसियों की बेटियाँ, जिन्होंने आपके साथ हिजरत की है। तथा वह ईमान वाली महिला भी, जो स्वयं को नबी के लिए दान कर दे, यदि नबी उससे विवाह करना चाहे। यह विशेष रूप से आपके लिए है, अन्य ईमान वालों के लिए नहीं। निश्चय ही हम जानते हैं जो कुछ हमने उनपर उनकी पत्नियों तथा उनके स्वामित्व में आई हुई दासियों के संबंध[37] में फ़र्ज़ किया है; ताकि तुमपर कोई तंगी न रहे। और अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत दयालु है।