إِذۡ يُغَشِّيكُمُ ٱلنُّعَاسَ أَمَنَةٗ مِّنۡهُ وَيُنَزِّلُ عَلَيۡكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ لِّيُطَهِّرَكُم بِهِۦ وَيُذۡهِبَ عَنكُمۡ رِجۡزَ ٱلشَّيۡطَٰنِ وَلِيَرۡبِطَ عَلَىٰ قُلُوبِكُمۡ وَيُثَبِّتَ بِهِ ٱلۡأَقۡدَامَ
और वह समय याद करो जब अल्लाह अपनी ओर से शांति के लिए तुमपर ऊँघ डाल रहा था और तुमपर आकाश से जल बरसा रहा था, ताकि उसके द्वारा तुम्हें पाक कर दे और तुमसे शैतान की मलिनता दूर कर दे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत कर दे और उसके द्वारा (तुम्हारे) पाँव जमा दे।[5]
إِذۡ يُوحِي رَبُّكَ إِلَى ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ أَنِّي مَعَكُمۡ فَثَبِّتُواْ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْۚ سَأُلۡقِي فِي قُلُوبِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱلرُّعۡبَ فَٱضۡرِبُواْ فَوۡقَ ٱلۡأَعۡنَاقِ وَٱضۡرِبُواْ مِنۡهُمۡ كُلَّ بَنَانٖ
जब आपका पालनहार फ़रिश्तों की ओर वह़्य कर रहा था कि निःसंदेह मैं तुम्हारे साथ हूँ। अतः तुम ईमान वालों को स्थिर रखो। शीघ्र ही मैं काफ़िरों के दिलों में भय डाल दूँगा। तो (ऐ मुसलमानों!) तुम उनकी गरदनों के ऊपर मारो तथा उनके पोर-पोर पर आघात पहुँचाओ।
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ شَآقُّواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۚ وَمَن يُشَاقِقِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ
यह इसलिए कि निःसंदेह उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया तथा जो अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करे, तो निःसंदेह अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।
ذَٰلِكُمۡ فَذُوقُوهُ وَأَنَّ لِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابَ ٱلنَّارِ
यह है (तुम्हारी यातना), तो इसका स्वाद चखो और (जान लो कि) निःसंदेह काफ़िरों के लिए जहन्नम की यातना (भी) है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا لَقِيتُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ زَحۡفٗا فَلَا تُوَلُّوهُمُ ٱلۡأَدۡبَارَ
ऐ ईमान वालो! जब तुम काफ़िरों की सेना से भिड़ो, तो उनसे पीठें न फेरो।
وَمَن يُوَلِّهِمۡ يَوۡمَئِذٖ دُبُرَهُۥٓ إِلَّا مُتَحَرِّفٗا لِّقِتَالٍ أَوۡ مُتَحَيِّزًا إِلَىٰ فِئَةٖ فَقَدۡ بَآءَ بِغَضَبٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَمَأۡوَىٰهُ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ
और जो कोई उस दिन उनसे अपनी पीठ फेरे, सिवाय उसके जो पलटकर आक्रमण करने वाला अथवा (अपने) किसी गिरोह से मिलने वाला हो, तो निश्चय वह अल्लाह के प्रकोप के साथ लौटा, और उसका ठिकाना जहन्नम है और वह लौटने की बुरी जगह है।
فَلَمۡ تَقۡتُلُوهُمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ قَتَلَهُمۡۚ وَمَا رَمَيۡتَ إِذۡ رَمَيۡتَ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ رَمَىٰ وَلِيُبۡلِيَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ مِنۡهُ بَلَآءً حَسَنًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ
अतः (रणक्षेत्र में) तुमने उन्हें क़त्ल नहीं किया, परंतु अल्लाह ने उन्हें क़त्ल किया। और (ऐ नबी!) आपने नहीं फेंका जब आपने फेंका, परंतु अल्लाह ने फेंका। और (यह इसलिए हुआ) ताकि वह इसके द्वारा ईमान वालों को अच्छी तरह आज़माए। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।[6]
ذَٰلِكُمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ مُوهِنُ كَيۡدِ ٱلۡكَٰفِرِينَ
यह सब अल्लाह की ओर से है और निश्चय अल्लाह काफ़िरों की चालों को कमज़ोर करने वाला है।
إِن تَسۡتَفۡتِحُواْ فَقَدۡ جَآءَكُمُ ٱلۡفَتۡحُۖ وَإِن تَنتَهُواْ فَهُوَ خَيۡرٞ لَّكُمۡۖ وَإِن تَعُودُواْ نَعُدۡ وَلَن تُغۡنِيَ عَنكُمۡ فِئَتُكُمۡ شَيۡـٔٗا وَلَوۡ كَثُرَتۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
यदि तुम[7] निर्णय चाहते हो, तो तुम्हारे पास निर्णय आ चुका, और यदि तुम रुक जाओ, तो वह तुम्हारे लिए बेहतर है। और यदि तुम फिर पहले जैसा करोगे, तो हम (भी) वैसा ही करेंगे, और तुम्हारा जत्था हरगिज़ तुम्हारे कुछ काम न आएगा, चाहे वह बहुत अधिक हो। और निश्चय अल्लाह ईमान वालों के साथ है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَوَلَّوۡاْ عَنۡهُ وَأَنتُمۡ تَسۡمَعُونَ
ऐ ईमान वालो! अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करो और उससे मुँह न फेरो, जबकि तुम सुन रहे हो।