فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلرَّجۡفَةُ فَأَصۡبَحُواْ فِي دَارِهِمۡ جَٰثِمِينَ
तो उन्हें भूकंप ने पकड़ लिया, तो वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए।
सूरह का नाम : Al-Araf सूरह नंबर : 7 आयत नंबर: 91
ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ شُعَيۡبٗا كَأَن لَّمۡ يَغۡنَوۡاْ فِيهَاۚ ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ شُعَيۡبٗا كَانُواْ هُمُ ٱلۡخَٰسِرِينَ
जिन लोगों ने शुऐब को झुठलाया (वे ऐसे हो गए कि) मानो कभी वे उन (घरों) में बसे ही न थे। जिन लोगों ने शुऐब को झुठलाया, वही लोग घाटा उठाने वाले थे।
सूरह का नाम : Al-Araf सूरह नंबर : 7 आयत नंबर: 92
فَتَوَلَّىٰ عَنۡهُمۡ وَقَالَ يَٰقَوۡمِ لَقَدۡ أَبۡلَغۡتُكُمۡ رِسَٰلَٰتِ رَبِّي وَنَصَحۡتُ لَكُمۡۖ فَكَيۡفَ ءَاسَىٰ عَلَىٰ قَوۡمٖ كَٰفِرِينَ
तो शुऐब उनसे विमुख हो गए और कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! मैंने तुम्हें अपने पालनहार के संदेश पहुँचा दिए, तथा मैं तुम्हारा हितकारी रहा। तो फिर मैं काफ़िर जाति (के विनाश) पर कैसे शोक करूँ?
सूरह का नाम : Al-Araf सूरह नंबर : 7 आयत नंबर: 93
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا فِي قَرۡيَةٖ مِّن نَّبِيٍّ إِلَّآ أَخَذۡنَآ أَهۡلَهَا بِٱلۡبَأۡسَآءِ وَٱلضَّرَّآءِ لَعَلَّهُمۡ يَضَّرَّعُونَ
तथा हमने जिस बस्ती में भी कोई नबी भेजा, तो उसके वासियों को तंगी और कष्ट से ग्रस्त कर दिया ताकि वे गिड़गिड़ाएँ।[37]
तफ़्सीर:
37. आयत का भावार्थ यह है कि सभी नबी अपनी जाति में पैदा हुए। सब अकेले धर्म का प्रचार करने के लिए आए। और सबका उपदेश एक था कि अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। सबने सत्कर्म की प्रेर्णा दी, और कुकर्म के दुष्परिणाम से सावधान किया। सबका साथ निर्धनों तथा निर्बलों ने दिया। प्रमुखों और बड़ों ने उनका विरोध किया। नबियों का विरोध भी उन्हें धमकी तथा दुःख देकर किया गया। और सबका परिणाम भी एक प्रकार हुआ, अर्थात उनको अल्लाह की यातना ने घेर लिया। और यही सदा इस संसार में अल्लाह का नियम रहा है।
सूरह का नाम : Al-Araf सूरह नंबर : 7 आयत नंबर: 94
ثُمَّ بَدَّلۡنَا مَكَانَ ٱلسَّيِّئَةِ ٱلۡحَسَنَةَ حَتَّىٰ عَفَواْ وَّقَالُواْ قَدۡ مَسَّ ءَابَآءَنَا ٱلضَّرَّآءُ وَٱلسَّرَّآءُ فَأَخَذۡنَٰهُم بَغۡتَةٗ وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ
फिर हमने उस खराब स्थिति को अच्छी स्थिति में बदल दिया, यहाँ तक कि वे (संख्या और धन में) बहुत बढ़ गए और उन्होंने कहा यह दुख और सुख हमारे बाप-दादा को भी पहुँचा था। तो हमने उन्हें अचानक इस हाल में पकड़ लिया कि वे सोचते न थे।
सूरह का नाम : Al-Araf सूरह नंबर : 7 आयत नंबर: 95
وَلَوۡ أَنَّ أَهۡلَ ٱلۡقُرَىٰٓ ءَامَنُواْ وَٱتَّقَوۡاْ لَفَتَحۡنَا عَلَيۡهِم بَرَكَٰتٖ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَٰكِن كَذَّبُواْ فَأَخَذۡنَٰهُم بِمَا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ
और यदि इन बस्तियों के वासी ईमान ले आते और डरते, तो हम अवश्य ही उनपर आकाश और धरती की बरकतों के द्वार खोल देते, परन्तु उन्होंने झुठला दिया। अतः हमने उनकी करतूतों के कारण उन्हें पकड़ लिया।
सूरह का नाम : Al-Araf सूरह नंबर : 7 आयत नंबर: 96
أَفَأَمِنَ أَهۡلُ ٱلۡقُرَىٰٓ أَن يَأۡتِيَهُم بَأۡسُنَا بَيَٰتٗا وَهُمۡ نَآئِمُونَ
क्या फिर इन बस्तियों के वासी इस बात से निश्चिंत हो गए हैं कि उनपर हमारी यातना रात के समय आ जाए, जबकि वे सोए हुए हों?
सूरह का नाम : Al-Araf सूरह नंबर : 7 आयत नंबर: 97
أَوَأَمِنَ أَهۡلُ ٱلۡقُرَىٰٓ أَن يَأۡتِيَهُم بَأۡسُنَا ضُحٗى وَهُمۡ يَلۡعَبُونَ
और क्या नगर वासी इस बात से निश्चिंत हो गए हैं कि उनपर हमारी यातना दिन चढ़े आ जाए और वे खेल रहे हों?
सूरह का नाम : Al-Araf सूरह नंबर : 7 आयत नंबर: 98
أَفَأَمِنُواْ مَكۡرَ ٱللَّهِۚ فَلَا يَأۡمَنُ مَكۡرَ ٱللَّهِ إِلَّا ٱلۡقَوۡمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ
तो क्या वे अल्लाह के गुप्त उपाय से निश्चिंत हो गए हैं? तो (याद रखो!) अल्लाह के गुप्त उपाय से वही लोग निश्चिंत होते हैं, जो घाटा उठाने वाले हैं।
सूरह का नाम : Al-Araf सूरह नंबर : 7 आयत नंबर: 99
أَوَلَمۡ يَهۡدِ لِلَّذِينَ يَرِثُونَ ٱلۡأَرۡضَ مِنۢ بَعۡدِ أَهۡلِهَآ أَن لَّوۡ نَشَآءُ أَصَبۡنَٰهُم بِذُنُوبِهِمۡۚ وَنَطۡبَعُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ فَهُمۡ لَا يَسۡمَعُونَ
तो क्या उन लोगों के लिए यह तथ्य स्पष्ट नहीं हुआ, जो धरती के अगले वासियों के बाद उसके वारिस हुए कि यदि हम चाहें, तो उन्हें उनके पापों के कारण पकड़ लें और उनके दिलों पर मुहर लगा दें, फिर वे कोई बात न सुन सकें?
सूरह का नाम : Al-Araf सूरह नंबर : 7 आयत नंबर: 100