कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَٱتَّقُواْ يَوۡمٗا تُرۡجَعُونَ فِيهِ إِلَى ٱللَّهِۖ ثُمَّ تُوَفَّىٰ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ

तथा उस दिन से डरो, जिसमें तुम अल्लाह की ओर लौटाए जाओगे, फिर प्रत्येक प्राणी को उसके किए हुए का पूरा बदला दिया जाएगा तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जाएगा।

सूरह का नाम : Al-Baqarah   सूरह नंबर : 2   आयत नंबर: 281

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا تَدَايَنتُم بِدَيۡنٍ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗى فَٱكۡتُبُوهُۚ وَلۡيَكۡتُب بَّيۡنَكُمۡ كَاتِبُۢ بِٱلۡعَدۡلِۚ وَلَا يَأۡبَ كَاتِبٌ أَن يَكۡتُبَ كَمَا عَلَّمَهُ ٱللَّهُۚ فَلۡيَكۡتُبۡ وَلۡيُمۡلِلِ ٱلَّذِي عَلَيۡهِ ٱلۡحَقُّ وَلۡيَتَّقِ ٱللَّهَ رَبَّهُۥ وَلَا يَبۡخَسۡ مِنۡهُ شَيۡـٔٗاۚ فَإِن كَانَ ٱلَّذِي عَلَيۡهِ ٱلۡحَقُّ سَفِيهًا أَوۡ ضَعِيفًا أَوۡ لَا يَسۡتَطِيعُ أَن يُمِلَّ هُوَ فَلۡيُمۡلِلۡ وَلِيُّهُۥ بِٱلۡعَدۡلِۚ وَٱسۡتَشۡهِدُواْ شَهِيدَيۡنِ مِن رِّجَالِكُمۡۖ فَإِن لَّمۡ يَكُونَا رَجُلَيۡنِ فَرَجُلٞ وَٱمۡرَأَتَانِ مِمَّن تَرۡضَوۡنَ مِنَ ٱلشُّهَدَآءِ أَن تَضِلَّ إِحۡدَىٰهُمَا فَتُذَكِّرَ إِحۡدَىٰهُمَا ٱلۡأُخۡرَىٰۚ وَلَا يَأۡبَ ٱلشُّهَدَآءُ إِذَا مَا دُعُواْۚ وَلَا تَسۡـَٔمُوٓاْ أَن تَكۡتُبُوهُ صَغِيرًا أَوۡ كَبِيرًا إِلَىٰٓ أَجَلِهِۦۚ ذَٰلِكُمۡ أَقۡسَطُ عِندَ ٱللَّهِ وَأَقۡوَمُ لِلشَّهَٰدَةِ وَأَدۡنَىٰٓ أَلَّا تَرۡتَابُوٓاْ إِلَّآ أَن تَكُونَ تِجَٰرَةً حَاضِرَةٗ تُدِيرُونَهَا بَيۡنَكُمۡ فَلَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٌ أَلَّا تَكۡتُبُوهَاۗ وَأَشۡهِدُوٓاْ إِذَا تَبَايَعۡتُمۡۚ وَلَا يُضَآرَّ كَاتِبٞ وَلَا شَهِيدٞۚ وَإِن تَفۡعَلُواْ فَإِنَّهُۥ فُسُوقُۢ بِكُمۡۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۖ وَيُعَلِّمُكُمُ ٱللَّهُۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ

ऐ ईमान वालो! जब तुम आपस में एक निश्चित अवधि के लिए उधार का लेन-देन करो, तो उसे लिख लिया करो। और एक लिखने वाला तुम्हारे बीच न्याय के साथ लिखे। और कोई लिखने वाला उस तरह लिखने से इनकार न करे, जैसे अल्लाह ने उसे सिखाया है। सो उसे चाहिए कि लिखे और वह व्यक्ति लिखवाए जिसपर हक़ (क़र्ज़) हो, तथा वह अपने पालनहार अल्लाह से डरे और उस (कर्ज़) में से कुछ भी कम न करे। फिर यदि वह व्यक्ति जिसके ज़िम्मे हक़ (क़र्ज़) है, नासमझ या कमज़ोर है, या वह स्वयं लिखवाने में सक्षम न हो, तो उसका वली (अभिभावक) न्याय के साथ लिखवा दे। तथा अपने पुरुषों में से दो गवाहों को गवाह बना लो। फिर यदि दो पुरुष न हों, तो एक पुरुष तथा दो स्त्रियाँ उन लोगों में से जिन्हें तुम गवाहों में से पसंद करते हो। (इसलिए) कि दोनों में से एक भूल जाए, तो उनमें से एक दूसरी को याद दिला दे। तथा गवाह जब भी बुलाए जाएँ, इनकार न करें। तथा मामला छोटा हो या बड़ा, उसे उसकी अवधि तक लिखने से न उकताओ। यह काम अल्लाह के निकट अधिक न्यायसंगत, तथा गवाही को अधिक ठीक रखने वाला है और अधिक निकट है कि तुम संदेह में न पड़ो, परंतु यह कि नक़द सौदा हो, जिसका तुम आपस में लेन-देन करते हो, तो उसे न लिखने में तुमपर कोई दोष नहीं। तथा जब आपस में क्रय-विक्रय करो, तो गवाह बना लिया करो। और न किसी लिखने वाले को हानि पहुँचाई जाए और न किसी गवाह को। और यदि ऐसा करोगो, तो निःसंदेह यह तुम में (पाई जाने वाली बहुत) बड़ी अवज्ञा है। तथा अल्लाह से डरो और अल्लाह तुम्हें सिखाता है और अल्लाह हर चीज़ को ख़ूब जानने वाला है।

सूरह का नाम : Al-Baqarah   सूरह नंबर : 2   आयत नंबर: 282

۞وَإِن كُنتُمۡ عَلَىٰ سَفَرٖ وَلَمۡ تَجِدُواْ كَاتِبٗا فَرِهَٰنٞ مَّقۡبُوضَةٞۖ فَإِنۡ أَمِنَ بَعۡضُكُم بَعۡضٗا فَلۡيُؤَدِّ ٱلَّذِي ٱؤۡتُمِنَ أَمَٰنَتَهُۥ وَلۡيَتَّقِ ٱللَّهَ رَبَّهُۥۗ وَلَا تَكۡتُمُواْ ٱلشَّهَٰدَةَۚ وَمَن يَكۡتُمۡهَا فَإِنَّهُۥٓ ءَاثِمٞ قَلۡبُهُۥۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِيمٞ

और यदि तुम किसी सफ़र पर हो और कोई लिखने वाला न पाओ, तो ऐसी गिरवी आवश्यक है जो क़ब्ज़े में ले ली गई हो। फिर यदि तुममें से कोई किसी पर भरोसा करे, तो जिसपर भरोसा किया गया है वह अपनी अमानत अदा करे और अपने पालनहार अल्लाह से डरे। तथा गवाही न छिपाओ और जो उसे छिपाए, तो निःसंदेह उसका दिल पापी है। तथा अल्लाह जो कुछ तुम कर रहे हो, उसे ख़ूब जानने वाला है।

सूरह का नाम : Al-Baqarah   सूरह नंबर : 2   आयत नंबर: 283

لِّلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ وَإِن تُبۡدُواْ مَا فِيٓ أَنفُسِكُمۡ أَوۡ تُخۡفُوهُ يُحَاسِبۡكُم بِهِ ٱللَّهُۖ فَيَغۡفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ

अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में और जो धरती में है, और यदि तुम उसे प्रकट करो जो तुम्हारे दिलों में है, या उसे छिपाओ, अल्लाह तुमसे उसका ह़िसाब लेगा। फिर जिसे चाहेगा, माफ़ कर देगा और जिसे चाहेगा, यातना देगा और अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।

सूरह का नाम : Al-Baqarah   सूरह नंबर : 2   आयत नंबर: 284

ءَامَنَ ٱلرَّسُولُ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡهِ مِن رَّبِّهِۦ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَۚ كُلٌّ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَمَلَـٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ لَا نُفَرِّقُ بَيۡنَ أَحَدٖ مِّن رُّسُلِهِۦۚ وَقَالُواْ سَمِعۡنَا وَأَطَعۡنَاۖ غُفۡرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيۡكَ ٱلۡمَصِيرُ

रसूल उस चीज़ पर ईमान लाए, जो उनकी तरफ़ उनके पालनहार की ओर से उतारी गई तथा सब ईमान वाले भी। हर एक अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी पुस्तकों और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (वे कहते हैं) हम उसके रसूलों में से किसी एक के बीच अंतर नहीं करते। और उन्होंने कहा हमने सुना और हमने आज्ञापालन किया। हम तेरी क्षमा चाहते हैं ऐ हमारे पालनहार! और तेरी ही ओर लौटकर जाना है।[183]

तफ़्सीर:

1. इस आयत में सत्धर्म इस्लाम की आस्था तथा कर्म का सारांश बताया गया है।

सूरह का नाम : Al-Baqarah   सूरह नंबर : 2   आयत नंबर: 285

لَا يُكَلِّفُ ٱللَّهُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَعَلَيۡهَا مَا ٱكۡتَسَبَتۡۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذۡنَآ إِن نَّسِينَآ أَوۡ أَخۡطَأۡنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تَحۡمِلۡ عَلَيۡنَآ إِصۡرٗا كَمَا حَمَلۡتَهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلۡنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِۦۖ وَٱعۡفُ عَنَّا وَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَآۚ أَنتَ مَوۡلَىٰنَا فَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَٰفِرِينَ

अल्लाह किसी प्राणी पर भार नहीं डालता परंतु उसकी क्षमता के अनुसार। उसी के लिए है जो उसने (नेकी) कमाई और उसी पर है जो उसने (पाप) कमाया। ऐ हमारे पालनहार! हमारी पकड़ न कर यदि हम भूल जाएँ या हमसे चूक हो जाए। ऐ हमारे पालनहार! और हमपर कोई भारी बोझ न डाल, जैसे तूने उसे उन लोगों पर डाला जो हमसे पहले थे। ऐ हमारे पालनहार! और हमसे वह चीज़ न उठवा जिस (के उठाने) की हम में शक्ति न हो। तथा हमें माफ़ कर और हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू ही हमारा स्वामी (संरक्षक) है, इसलिए काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर।

सूरह का नाम : Al-Baqarah   सूरह नंबर : 2   आयत नंबर: 286

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