कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

ٱلَّذِينَ طَغَوۡاْ فِي ٱلۡبِلَٰدِ

वे लोग, जो नगरों में हद से बढ़ गए।

सूरह का नाम : Al-Fajr   सूरह नंबर : 89   आयत नंबर: 11

فَأَكۡثَرُواْ فِيهَا ٱلۡفَسَادَ

और उनमें बहुत अधिक उपद्रव फैलाया।

सूरह का नाम : Al-Fajr   सूरह नंबर : 89   आयत नंबर: 12

فَصَبَّ عَلَيۡهِمۡ رَبُّكَ سَوۡطَ عَذَابٍ

तो तेरे पालनहार ने उनपर यातना का कोड़ा बरसाया।

सूरह का नाम : Al-Fajr   सूरह नंबर : 89   आयत नंबर: 13

إِنَّ رَبَّكَ لَبِٱلۡمِرۡصَادِ

निःसंदेह तेरा पालनहार निश्चय घात में है।[2]

तफ़्सीर:

2. (6-14) इन आयतों में उन जातियों की चर्चा की गई है, जिन्होंने माया मोह में पड़कर परलोक और प्रतिफल का इनकार किया, और अपने नैतिक पतन के कारण धरती में उग्रवाद किया। "आद, इरम" से अभिप्रेत वह पुरानी जाति है जिसे क़ुरआन तथा अरब में "आदे ऊला" (प्रथम आद) कहा गया है। यह वह प्राचीन जाति है जिसके पास हूद (अलैहिस्सलाम) को भेजा गया। और इनको "आदे इरम" इस लिए कहा गया है कि यह शामी वंशक्रम की उस शाखा से संबंधित थे जो इरम बिन शाम बिन नूह़ से चली आती थी। आयत संख्या 11 में इसका संकेत है कि उग्रवाद का उद्गम भौतिकवाद एवं सत्य विश्वास का इनकार है, जिसे वर्तमान युग में भी प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है।

सूरह का नाम : Al-Fajr   सूरह नंबर : 89   आयत नंबर: 14

فَأَمَّا ٱلۡإِنسَٰنُ إِذَا مَا ٱبۡتَلَىٰهُ رَبُّهُۥ فَأَكۡرَمَهُۥ وَنَعَّمَهُۥ فَيَقُولُ رَبِّيٓ أَكۡرَمَنِ

लेकिन मनुष्य (का हाल यह है कि) जब उसका पालनहार उसका परीक्षण करे, फिर उसे सम्मानित करे और नेमत प्रदान करे, तो कहता है कि मेरे पालनहार ने मुझे सम्मानित किया।

सूरह का नाम : Al-Fajr   सूरह नंबर : 89   आयत नंबर: 15

وَأَمَّآ إِذَا مَا ٱبۡتَلَىٰهُ فَقَدَرَ عَلَيۡهِ رِزۡقَهُۥ فَيَقُولُ رَبِّيٓ أَهَٰنَنِ

लेकिन जब वह उसका परीक्षण करे, फिर उसपर उसकी रोज़ी तंग कर दे, तो कहता कि मेरे पालनहार ने मुझे अपमानित किया।

सूरह का नाम : Al-Fajr   सूरह नंबर : 89   आयत नंबर: 16

كَلَّاۖ بَل لَّا تُكۡرِمُونَ ٱلۡيَتِيمَ

हरगिज़ ऐसा नहीं, बल्कि तुम अनाथ का सम्मान नहीं करते।

सूरह का नाम : Al-Fajr   सूरह नंबर : 89   आयत नंबर: 17

وَلَا تَحَـٰٓضُّونَ عَلَىٰ طَعَامِ ٱلۡمِسۡكِينِ

तथा तुम एक-दूसरे को ग़रीब को खाना खिलाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हो।

सूरह का नाम : Al-Fajr   सूरह नंबर : 89   आयत नंबर: 18

وَتَأۡكُلُونَ ٱلتُّرَاثَ أَكۡلٗا لَّمّٗا

और तुम मीरास का सारा धन समेटकर खा जाते हो।

सूरह का नाम : Al-Fajr   सूरह नंबर : 89   आयत नंबर: 19

وَتُحِبُّونَ ٱلۡمَالَ حُبّٗا جَمّٗا

और तुम धन से बहुत अधिक प्रेम करते हो।[3]

तफ़्सीर:

3. (15-20) इन आयतों में समाज की साधारण नैतिक स्थिति का सर्वेक्षण किया गया है, और भौतिकवादी विचार की आलोचना की गई है, जो मात्र सांसारिक धन और मान मर्यादा को सम्मान तथा अपमान का पैमाना समझता है और यह भूल गया है कि न धनी होना कोई पुरस्कार है और न निर्धन होना कोई दंड है। अल्लाह दोनों स्थितियों में मानवजाति की परीक्षा ले रहा है। फिर यह बात किसी के बस में हो तो दूसरे का धन भी हड़प कर जाए, क्या ऐसा करना कुकर्म नहीं जिसका ह़िसाब लिया जाना चाहिए?

सूरह का नाम : Al-Fajr   सूरह नंबर : 89   आयत नंबर: 20

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