कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

سَيَقُولُ لَكَ ٱلۡمُخَلَّفُونَ مِنَ ٱلۡأَعۡرَابِ شَغَلَتۡنَآ أَمۡوَٰلُنَا وَأَهۡلُونَا فَٱسۡتَغۡفِرۡ لَنَاۚ يَقُولُونَ بِأَلۡسِنَتِهِم مَّا لَيۡسَ فِي قُلُوبِهِمۡۚ قُلۡ فَمَن يَمۡلِكُ لَكُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيۡـًٔا إِنۡ أَرَادَ بِكُمۡ ضَرًّا أَوۡ أَرَادَ بِكُمۡ نَفۡعَۢاۚ بَلۡ كَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرَۢا

शीघ्र ही देहातियों में से पीछे छोड़ दिए जाने वाले[5] लोग आपसे कहेंगे : हमारे धन और हमारे घरवालों ने हमें व्यस्त रखा। अतः आप हमारे लिए क्षमा की प्रार्थना करें। वे अपनी ज़बानों से वह बात कहते हैं, जो उनके दिलों में नहीं है। आप कह दीजिए कि कौन है, जो अल्लाह के मुकाबले में तुम्हारे लिए किसी चीज़ का अधिकार रखता है, यदि वह तुम्हें कोई हानि पहुँचाना चाहे या तुम्हें कोई लाभ पहुँचाने का इरादा करे? बल्कि तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह हमेशा से उसकी खबर रखता है।

तफ़्सीर:

5. आयत 11-12 में मदीना के आस-पास के मुनाफ़िक़ों की दशा बताई गई है, जो नबी के साथ उमरा के लिए मक्का नहीं गए। उन्होंने इस डर से कि मुसलमान सब के सब मार दिए जाएँगे, आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का साथ नही दिया।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 11

بَلۡ ظَنَنتُمۡ أَن لَّن يَنقَلِبَ ٱلرَّسُولُ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ إِلَىٰٓ أَهۡلِيهِمۡ أَبَدٗا وَزُيِّنَ ذَٰلِكَ فِي قُلُوبِكُمۡ وَظَنَنتُمۡ ظَنَّ ٱلسَّوۡءِ وَكُنتُمۡ قَوۡمَۢا بُورٗا

बल्कि, तुमने सोचा था कि रसूल और ईमान वाले अपने परिजनों की ओर कभी वापस ही नहीं आएँगे, और यह बात तुम्हारे दिलों में सुंदर बना दी गई। और तुमने बहुत बुरा गुमान किया, और तुम नाश होने वाले लोग थे।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 12

وَمَن لَّمۡ يُؤۡمِنۢ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ فَإِنَّآ أَعۡتَدۡنَا لِلۡكَٰفِرِينَ سَعِيرٗا

और जो व्यक्ति अल्लाह तथा उसके रसूल पर ईमान न लाया, तो निश्चय हमने इनकार करने वालों के लिए दहकती हुई आग तैयार कर रखी है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 13

وَلِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ يَغۡفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا

और आकाशों तथा धरती का राज्य अल्लाह ही के लिए है। वह जिसे चाहता है क्षमा कर देता है और जिसे चाहता है दंड देता है, और अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दयावान है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 14

سَيَقُولُ ٱلۡمُخَلَّفُونَ إِذَا ٱنطَلَقۡتُمۡ إِلَىٰ مَغَانِمَ لِتَأۡخُذُوهَا ذَرُونَا نَتَّبِعۡكُمۡۖ يُرِيدُونَ أَن يُبَدِّلُواْ كَلَٰمَ ٱللَّهِۚ قُل لَّن تَتَّبِعُونَا كَذَٰلِكُمۡ قَالَ ٱللَّهُ مِن قَبۡلُۖ فَسَيَقُولُونَ بَلۡ تَحۡسُدُونَنَاۚ بَلۡ كَانُواْ لَا يَفۡقَهُونَ إِلَّا قَلِيلٗا

शीघ्र ही पीछे छोड़ दिए जाने वाले लोग कहेंगे, जब तुम कुछ ग़नीमतों को प्राप्त करने के लिए चलोगे : हमें छोड़ो कि हम तुम्हारे साथ चलें।[6] वे चाहते हैं कि अल्लाह के वचन को बदल दें। आप कह दें : तुम हमारे साथ कभी नहीं जाओगे, इसी तरह अल्लाह ने पहले ही कह दिया है। तो वे अवश्य कहेंगे : बल्कि तुम हमसे जलते हो। बल्कि वे बहुत कम समझते हैं।

तफ़्सीर:

6. ह़ुदैबिया से वापिस आकर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने ख़ैबर पर आक्रमण किया, जहाँ के यहूदियों ने संधि भंग करके अह़ज़ाब के युद्ध में मक्का के काफ़िरों का साथ दिया था। तो जो दोहाती ह़ुदैबिया में नहीं गए, वे अब ख़ैबर के युद्ध में इसलिए आपके साथ जाने के लिए तैयार हो गए कि वहाँ ग़नीमत का धन मिलने की आशा थी। अतः आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से यह कहा गया कि उन्हें यह बता दें कि यह पहले ही से अल्लाह का आदेश है कि तुम हमारे साथ नहीं जा सकते। ख़ैबर मदीने से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर मदीने से उत्तर पूर्वी दिशा में है। यह युद्ध मुह़र्रम सन् 7 हिजरी में हुआ।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 15

قُل لِّلۡمُخَلَّفِينَ مِنَ ٱلۡأَعۡرَابِ سَتُدۡعَوۡنَ إِلَىٰ قَوۡمٍ أُوْلِي بَأۡسٖ شَدِيدٖ تُقَٰتِلُونَهُمۡ أَوۡ يُسۡلِمُونَۖ فَإِن تُطِيعُواْ يُؤۡتِكُمُ ٱللَّهُ أَجۡرًا حَسَنٗاۖ وَإِن تَتَوَلَّوۡاْ كَمَا تَوَلَّيۡتُم مِّن قَبۡلُ يُعَذِّبۡكُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا

आप पीछे रह जाने वाले बद्दुओं से कह दें : जल्द ही तुम एक भयंकर युद्ध करने वाली जाति (से युद्ध) की ओर[7] बुलाए जाओगे। तुम उनसे युद्ध करोगे, या वे मुसलमान बन जाएँगे। फिर यदि तुम आज्ञा का पालन करोगे, तो अल्लाह तुम्हें उत्तम प्रतिफल प्रदान करेगा और यदि तुम फिर जाओगे, जैसे तुम इससे पहले फिर गए थे, तो वह तुम्हें दर्दनाक यातना देगा।

तफ़्सीर:

7. इससे अभिप्राय ह़ुनैन का युद्ध है जो सन् 8 हिज्री में मक्का पर विजय के पश्चात् हुआ। जिसमें पहले पराजय, फिर विजय हुई। और बहुत-सा ग़नीमत का धन प्राप्त हुआ, फिर वे भी इस्लाम ले आए।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 16

لَّيۡسَ عَلَى ٱلۡأَعۡمَىٰ حَرَجٞ وَلَا عَلَى ٱلۡأَعۡرَجِ حَرَجٞ وَلَا عَلَى ٱلۡمَرِيضِ حَرَجٞۗ وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ يُدۡخِلۡهُ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ وَمَن يَتَوَلَّ يُعَذِّبۡهُ عَذَابًا أَلِيمٗا

न अंधे पर कोई दोष[8] है और न लंगड़े पर कोई दोष है और न रोगी पर कोई दोष है। तथा जो अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करेगा, वह उसे ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं। और जो मुँह फेरेगा, वह उसे दर्दनाक यातना देगा।

तफ़्सीर:

8. अर्थात जिहाद में भाग न लेने पर।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 17

۞لَّقَدۡ رَضِيَ ٱللَّهُ عَنِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ إِذۡ يُبَايِعُونَكَ تَحۡتَ ٱلشَّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِي قُلُوبِهِمۡ فَأَنزَلَ ٱلسَّكِينَةَ عَلَيۡهِمۡ وَأَثَٰبَهُمۡ فَتۡحٗا قَرِيبٗا

निःसंदेह अल्लाह ईमान वालों से प्रसन्न हो गया, जब वे वृक्ष के नीचे आपसे बैअत कर रहे थे। तो उसने जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था। अतः उनपर शांति उतार दी और उन्हें बदले में एक निकट विजय[9] प्रदान की।

तफ़्सीर:

9. इससे अभिप्राय ख़ैबर की विजय है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 18

وَمَغَانِمَ كَثِيرَةٗ يَأۡخُذُونَهَاۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمٗا

तथा बहुत-से ग़नीमत के धन, जिन्हें वे प्राप्त करेंगे और अल्लाह हमेशा से सबपर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 19

وَعَدَكُمُ ٱللَّهُ مَغَانِمَ كَثِيرَةٗ تَأۡخُذُونَهَا فَعَجَّلَ لَكُمۡ هَٰذِهِۦ وَكَفَّ أَيۡدِيَ ٱلنَّاسِ عَنكُمۡ وَلِتَكُونَ ءَايَةٗ لِّلۡمُؤۡمِنِينَ وَيَهۡدِيَكُمۡ صِرَٰطٗا مُّسۡتَقِيمٗا

अल्लाह ने तुमसे बहुत-सी ग़नीमतों का वादा किया है, जिन्हें तुम प्राप्त करोगे। फिर उसने तुम्हें यह जल्दी प्रदान कर दी। तथा लोगों के हाथ तुमसे रोक दिए और ताकि[10] यह ईमान वालों के लिए एक निशानी बन जाए और (ताकि) वह तुम्हें सीधी राह पर चलाए।

तफ़्सीर:

10. अर्थात ख़ैबर की विजय और मक्का की विजय के समय शत्रुओं के हाथों को रोक दिया, ताकि यह विश्वास हो जाए कि अल्लाह ही तुम्हारा रक्षक तथा सहायक है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 20

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