कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

ثُمَّ ٱلۡجَحِيمَ صَلُّوهُ

फिर उसे भड़कती हुई आग में झोंक दो।

सूरह का नाम : Al-Haqqah   सूरह नंबर : 69   आयत नंबर: 31

ثُمَّ فِي سِلۡسِلَةٖ ذَرۡعُهَا سَبۡعُونَ ذِرَاعٗا فَٱسۡلُكُوهُ

फिर एक ज़ंजीर में, जिसकी लंबाई सत्तर गज़ है, उसे जकड़ दो।

सूरह का नाम : Al-Haqqah   सूरह नंबर : 69   आयत नंबर: 32

إِنَّهُۥ كَانَ لَا يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ ٱلۡعَظِيمِ

निःसंदेह वह सबसे महान अल्लाह पर ईमान नहीं रखता था।

सूरह का नाम : Al-Haqqah   सूरह नंबर : 69   आयत नंबर: 33

وَلَا يَحُضُّ عَلَىٰ طَعَامِ ٱلۡمِسۡكِينِ

तथा ग़रीब को खाना खिलाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करता था।

सूरह का नाम : Al-Haqqah   सूरह नंबर : 69   आयत नंबर: 34

فَلَيۡسَ لَهُ ٱلۡيَوۡمَ هَٰهُنَا حَمِيمٞ

अतः आज यहाँ उसका कोई मित्र नहीं है।

सूरह का नाम : Al-Haqqah   सूरह नंबर : 69   आयत नंबर: 35

وَلَا طَعَامٌ إِلَّا مِنۡ غِسۡلِينٖ

और न पीप के सिवा कोई भोजन है।

सूरह का नाम : Al-Haqqah   सूरह नंबर : 69   आयत नंबर: 36

لَّا يَأۡكُلُهُۥٓ إِلَّا ٱلۡخَٰطِـُٔونَ

जिसे पापियों के अलावा कोई नहीं खाता।

सूरह का नाम : Al-Haqqah   सूरह नंबर : 69   आयत नंबर: 37

فَلَآ أُقۡسِمُ بِمَا تُبۡصِرُونَ

मैं उन चीज़ों की क़सम खता हूँ, जिन्हें तुम देखते हो।

सूरह का नाम : Al-Haqqah   सूरह नंबर : 69   आयत नंबर: 38

وَمَا لَا تُبۡصِرُونَ

तथा उनकी जिन्हें तुम नहीं देखते हो।

सूरह का नाम : Al-Haqqah   सूरह नंबर : 69   आयत नंबर: 39

إِنَّهُۥ لَقَوۡلُ رَسُولٖ كَرِيمٖ

निःसंदेह यह (क़ुरआन) एक सम्मानित रसूल[6] का कथन है।

तफ़्सीर:

6. यहाँ सम्मानित रसूल से अभिप्राय मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। तथा सूरत अत्-तक्वीर आयत : 19 में फ़रिश्ते जिबरील (अलैहिस्सलाम) जो वह़्यी लाते थे वह अभिप्राय हैं। यहाँ क़ुरआन को आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन इस अर्थ में कहा गया है कि लोग उसे आपसे सुन रहे थे। और इसी प्रकार आप जिबरील (अलैहिस्सलाम) से सुन रहे थे। अन्यथा, वास्तव में, क़ुरआन अल्लाह का कथन है, जैसा कि आगामी आयत : 43 में आ रहा है।

सूरह का नाम : Al-Haqqah   सूरह नंबर : 69   आयत नंबर: 40

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