कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَكَيۡفَ تَكۡفُرُونَ وَأَنتُمۡ تُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ وَفِيكُمۡ رَسُولُهُۥۗ وَمَن يَعۡتَصِم بِٱللَّهِ فَقَدۡ هُدِيَ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ

तथा यह कैसे हो सकता है कि तुम (फिर से) कुफ़्र को स्वीकार कर लो, जबकि तुम्हारे सामने अल्लाह की आयतें पढ़ी जा रही हैं और तुम्हारे बीच उसका रसूल[53] मौजूद हैॽ और जो अल्लाह को[54] मज़बूत थाम ले, तो वास्तव में उसे सीधा मार्ग दिखा दिया गया।

तफ़्सीर:

53. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)। 54. अर्थात अल्लाह का आज्ञाकारी हो जाए।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 101

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ حَقَّ تُقَاتِهِۦ وَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسۡلِمُونَ

ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो, जैसा कि उससे डरना चाहिए तथा तुम्हारी मृत्यु न आए परंतु इस स्थिति में कि तुम मुसलमान हो।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 102

وَٱعۡتَصِمُواْ بِحَبۡلِ ٱللَّهِ جَمِيعٗا وَلَا تَفَرَّقُواْۚ وَٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ إِذۡ كُنتُمۡ أَعۡدَآءٗ فَأَلَّفَ بَيۡنَ قُلُوبِكُمۡ فَأَصۡبَحۡتُم بِنِعۡمَتِهِۦٓ إِخۡوَٰنٗا وَكُنتُمۡ عَلَىٰ شَفَا حُفۡرَةٖ مِّنَ ٱلنَّارِ فَأَنقَذَكُم مِّنۡهَاۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ

तथा अल्लाह की रस्सी[55] को सब मिलकर मज़बूती से पकड़ लो और विभेद में न पड़ो तथा अपने ऊपर अल्लाह की नेमत को याद करो कि तुम एक-दूसरे के शत्रु थे, फिर उसने तुम्हारे दिलों को जोड़ दिया और तुम उसकी कृपा से भाई-भाई हो गए। तथा तुम आग के गड्ढे के किनारे खड़े थे, तो उसने तुम्हें उससे बचा लिया। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम मार्गदर्शन पा जाओ।

तफ़्सीर:

55. अल्लाह की रस्सी से अभिप्राय क़ुरआन और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत है। यही दोनों मुसलमानों की एकता और परस्पर प्रेम का सूत्र हैं।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 103

وَلۡتَكُن مِّنكُمۡ أُمَّةٞ يَدۡعُونَ إِلَى ٱلۡخَيۡرِ وَيَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَيَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِۚ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ

तथा तुममें एक समूह ऐसा होना चाहिए, जो भलाई की ओर बुलाए, अच्छे कामों[56] का आदेश दे और बुरे कामों[57] से रोके और वही सफलता प्राप्त करने वाले लोग हैं।

तफ़्सीर:

56. अर्थात धर्मानुसार बातों का। 57.अर्थात धर्म विरोधी बातों से।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 104

وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِينَ تَفَرَّقُواْ وَٱخۡتَلَفُواْ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُۚ وَأُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ

तथा उनके[58] समान न हो जाओ, जो संप्रदायों में बट गए, और उनके पास स्पष्ट निशानियाँ आ जाने के पश्चात आपस में मतभेद कर बैठे, और उन्हीं के लिए बड़ी यातना है।

तफ़्सीर:

58. अर्थात अह्ले किताब (यहूदी व ईसाई)।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 105

يَوۡمَ تَبۡيَضُّ وُجُوهٞ وَتَسۡوَدُّ وُجُوهٞۚ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱسۡوَدَّتۡ وُجُوهُهُمۡ أَكَفَرۡتُم بَعۡدَ إِيمَٰنِكُمۡ فَذُوقُواْ ٱلۡعَذَابَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ

जिस दिन कुछ चेहरे उज्जवल होंगे और कुछ चेहरे काले होंगे। फिर जिनके चेहरे काले होंगे (उनसे कहा जाएगा :) क्या तुमने अपने ईमान के बाद कुफ़्र कर लिया थाॽ तो अब अपने कुफ़्र करने के कारण यातना का स्वाद चखो।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 106

وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱبۡيَضَّتۡ وُجُوهُهُمۡ فَفِي رَحۡمَةِ ٱللَّهِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ

तथा जिनके चेहरे चमक रहे होंगे, वे अल्लाह की दया (जन्नत) में होंगे, वे सदैव उसी में रहेंगे।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 107

تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ نَتۡلُوهَا عَلَيۡكَ بِٱلۡحَقِّۗ وَمَا ٱللَّهُ يُرِيدُ ظُلۡمٗا لِّلۡعَٰلَمِينَ

ये अल्लाह की आयतें हैं, जो हम आपको हक़ के साथ सुना रहे हैं और अल्लाह संसार वालों पर अत्याचार नहीं करना चाहता।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 108

وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ

तथा जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है सब अल्लाह ही के लिए है और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते हैं।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 109

كُنتُمۡ خَيۡرَ أُمَّةٍ أُخۡرِجَتۡ لِلنَّاسِ تَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَتَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَتُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِۗ وَلَوۡ ءَامَنَ أَهۡلُ ٱلۡكِتَٰبِ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۚ مِّنۡهُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَأَكۡثَرُهُمُ ٱلۡفَٰسِقُونَ

तुम सर्वश्रेष्ठ समुदाय हो, जिसे लोगों के लिए निकाला गया है। तुम भलाई का आदेश देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान (विश्वास) रखते[58] हो। और यदि किताब वाले ईमान लाते, तो उनके लिए बेहतर होता। उनमें कुछ ईमान वाले भी हैं, लेकिन उनमें अधिकतर लोग अवज्ञाकारी ही हैं।

तफ़्सीर:

58. इस आयत में मुसलमानों को संबोधित किया गया है, तथा उन्हें उम्मत कहा गया है। किसी जाति अथवा वर्ग और वर्ण के नाम से संबोधित नहीं किया गया है। और इसमें यह संकेत है कि मुसलमान उनका नाम है जो सत्धर्म के अनुयायी हों। तथा उनके अस्तित्व का लक्ष्य यह बताया गया है कि वह संपूर्ण मानव विश्व को सत्धर्म इस्लाम की ओर बुलाएँ, जो सर्व मानव जाति का धर्म है। किसी विशेष जाति, क्षेत्र अथवा देश का धर्म नहीं है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 110

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