कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

لَن يَضُرُّوكُمۡ إِلَّآ أَذٗىۖ وَإِن يُقَٰتِلُوكُمۡ يُوَلُّوكُمُ ٱلۡأَدۡبَارَ ثُمَّ لَا يُنصَرُونَ

वे तुम्हें थोड़ा कष्ट पहुँचाने के सिवा कदापि कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे और यदि वे तुमसे युद्ध करेंगे, तो तुम्हारे सामने पीठ फेरकर भाग खड़े होंगे। फिर उनकी कोई सहायता (भी) नहीं की जाएगी।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 111

ضُرِبَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلذِّلَّةُ أَيۡنَ مَا ثُقِفُوٓاْ إِلَّا بِحَبۡلٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَحَبۡلٖ مِّنَ ٱلنَّاسِ وَبَآءُو بِغَضَبٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَضُرِبَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلۡمَسۡكَنَةُۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَانُواْ يَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَيَقۡتُلُونَ ٱلۡأَنۢبِيَآءَ بِغَيۡرِ حَقّٖۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَواْ وَّكَانُواْ يَعۡتَدُونَ

इन (यहूदियों) पर हर जगह, अपमान थोप दिया गया है, (यह और बात है कि) अल्लाह की शरण[59] अथवा लोगों की शरण[60] में आ जाएँ, और ये अल्लाह के प्रकोप के पात्र हुए तथा इनपर दरिद्रता थोप दी गई। यह इस कारण हुआ कि ये अल्लाह की आयतों का इनकार करते थे और नबियों की अनाधिकार हत्या करते थे। यह इस कारण (भी) है कि इन्होंने अवज्ञा की और (धर्म की) सीमा का उल्लंघन करते थे।

तफ़्सीर:

59. अल्लाह की शरण से अभिप्राय इस्लाम धर्म है। 60. दूसरा बचाव का तरीक़ा यह है कि किसी ग़ैर मुस्लिम शक्ति की उन्हें सहायता प्राप्त हो जाए।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 112

۞لَيۡسُواْ سَوَآءٗۗ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ أُمَّةٞ قَآئِمَةٞ يَتۡلُونَ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ ءَانَآءَ ٱلَّيۡلِ وَهُمۡ يَسۡجُدُونَ

वे सभी समान नहीं हैं; किताब वालों में एक समूह (सत्य पर) स्थापित[61] है, जो रात की घड़ियों में अल्लाह की आयतें पढ़ते हैं और वे सजदे करते हैं।

तफ़्सीर:

61. अर्थात जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाए। जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम (रज़ियल्लाहु अन्हु) आदि।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 113

يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَيَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَيَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَيُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡخَيۡرَٰتِۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ مِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ

वे अल्लाह तथा अंतिम दिन (क़यामत) पर ईमान रखते हैं और भलाई का आदेश देते हैं और बुराई से रोकते हैं और भलाई के कामों में जल्दी करते हैं और वही अच्छे लोगों में से हैं।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 114

وَمَا يَفۡعَلُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَلَن يُكۡفَرُوهُۗ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلۡمُتَّقِينَ

वे जो भी भलाई करेंगे, उसकी उपेक्षा नहीं की जाएगी और अल्लाह परहेज़गारों को भली-भाँति जानता है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 115

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغۡنِيَ عَنۡهُمۡ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَلَآ أَوۡلَٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيۡـٔٗاۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ

निःसंदेह जिन्होंने कुफ़्र[62] किया, उन्हें अल्लाह (के अज़ाब) से (बचाने में) न उनके धन कुछ काम आएँगे, न उनकी संतान। तथा वही लोग नरकवासी हैं जो उसमें हमेशा रहेंगे।

तफ़्सीर:

62. अर्थात अल्लाह की आयतों (क़ुरआन) को नकार दिया।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 116

مَثَلُ مَا يُنفِقُونَ فِي هَٰذِهِ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا كَمَثَلِ رِيحٖ فِيهَا صِرٌّ أَصَابَتۡ حَرۡثَ قَوۡمٖ ظَلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ فَأَهۡلَكَتۡهُۚ وَمَا ظَلَمَهُمُ ٱللَّهُ وَلَٰكِنۡ أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ

वे इस सांसारिक जीवन में जो कुछ भी ख़र्च करते हैं, वह उस हवा के समान है, जिसमें पाला (अत्यधिक ठंड) हो, जो किसी ऐसी क़ौम की खेती को लग जाए, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार[63] किया हो और उसको नष्ट कर दे। तथा अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, बल्कि वे स्वयं अपने आप पर अत्याचार करते थे।

तफ़्सीर:

63. अवज्ञा तथा अस्वीकार करते रहे थे। इसमें यह संकेत है कि अल्लाह पर ईमान के बिना दान का प्रतिफल परलोक में नहीं मिलेगा।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 117

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَتَّخِذُواْ بِطَانَةٗ مِّن دُونِكُمۡ لَا يَأۡلُونَكُمۡ خَبَالٗا وَدُّواْ مَا عَنِتُّمۡ قَدۡ بَدَتِ ٱلۡبَغۡضَآءُ مِنۡ أَفۡوَٰهِهِمۡ وَمَا تُخۡفِي صُدُورُهُمۡ أَكۡبَرُۚ قَدۡ بَيَّنَّا لَكُمُ ٱلۡأٓيَٰتِۖ إِن كُنتُمۡ تَعۡقِلُونَ

ऐ ईमान वालो! तुम अपनों के सिवा किसी दूसरे को अपना अंतरंग मित्र न बनाओ,[64] वे तुम्हें बर्बाद करने में कोई कमी नहीं करते। उन्हें वही बात भाती है, जिससे तुम्हें कष्ट पहुँचे। उनके मुखों से शत्रुता प्रकट हो चुकी है तथा जो उनके दिल छुपा रखे हैं, वह इससे बढ़कर है। हमने तुम्हारे लिए आयतों का वर्णन कर दिया है, यदि तुम समझबूझ रखते हो।

तफ़्सीर:

64. अर्थात वे ग़ैर मुस्लिम जिनपर तुम को विश्वास नहीं कि वे तुम्हारे लिए किसी प्रकार की अच्छी भावना रखते हों।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 118

هَـٰٓأَنتُمۡ أُوْلَآءِ تُحِبُّونَهُمۡ وَلَا يُحِبُّونَكُمۡ وَتُؤۡمِنُونَ بِٱلۡكِتَٰبِ كُلِّهِۦ وَإِذَا لَقُوكُمۡ قَالُوٓاْ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَوۡاْ عَضُّواْ عَلَيۡكُمُ ٱلۡأَنَامِلَ مِنَ ٱلۡغَيۡظِۚ قُلۡ مُوتُواْ بِغَيۡظِكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ

देखो तुम तो उनसे प्रेम करते हो, परंतु वे तुमसे प्रेम नहीं करते और तुम सभी पुस्तकों पर ईमान रखते हो, औ (उनका हाल यह है कि) वे जब तुमसे मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान लाए हैं और जब वे अकेले में होते हैं, तो तुमपर क्रोध के मारे उंगलियां चबाते हैं। कह दो कि अपने क्रोध में मर जाओ। निःसंदेह अल्लाह सीनों के भेद को जानता है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 119

إِن تَمۡسَسۡكُمۡ حَسَنَةٞ تَسُؤۡهُمۡ وَإِن تُصِبۡكُمۡ سَيِّئَةٞ يَفۡرَحُواْ بِهَاۖ وَإِن تَصۡبِرُواْ وَتَتَّقُواْ لَا يَضُرُّكُمۡ كَيۡدُهُمۡ شَيۡـًٔاۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا يَعۡمَلُونَ مُحِيطٞ

यदि तुम्हारा कुछ भला हो, तो उन्हें बुरा लगता है और यदि तुम्हारा कुछ बुरा हो जाए, तो वे उससे प्रसन्न होते हैं। और यदि तुम धैर्य करते रहे और अल्लाह से डरते रहे, तो उनका छल तुम्हें कोई हानि नहीं पहुँचाएगा। निःसंदेह अल्लाह उनके सभी कार्यों से अवगत है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 120

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