कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَإِذۡ غَدَوۡتَ مِنۡ أَهۡلِكَ تُبَوِّئُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ مَقَٰعِدَ لِلۡقِتَالِۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ

तथा (ऐ नबी! वह समय याद करो) जब आप अपने घर से निकले, ईमान वालों को युद्ध[65] के मोर्चों पर नियुक्त कर रहे थे तथा अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है।

तफ़्सीर:

65. साधारण भाष्यकारों ने इसे उह़ुद के युद्ध से संबंधित माना है। जो बद्र के युद्ध के पश्चात् सन् 3 हिज्री में हुआ। जिसमें क़ुरैश ने बद्र की पराजय का बदला लेने के लिए तीन हज़ार की सेना के साथ उह़ुद पर्वत के समीप पड़ाव डाल दिया। जब आपको इसकी सूचना मिली तो मुसलमानों से परामर्श किया। अधिकांश की राय हुई कि मदीना नगर से बाहर निकल कर युद्ध किया जाए। और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक हज़ार मुसलमानों को लेकर निकले। जिसमें से अब्दुल्लाह बिन उबय्य मुनाफ़िक़ों का प्रमुख अपने तीन सौ साथियों के साथ वापस हो गया। आपने रणक्षेत्र में अपने पीछे से शत्रु के आक्रमण से बचाव के लिए 70 धनुर्धरों को नियुक्त कर दिया। और उनका सेनापति अब्दुल्लाह बिन जुबैर को बना दिया। तथा यह आदेश दिया कि कदापि इस स्थान को न छोड़ना। युद्ध आरंभ होते ही क़ुरैश पराजित हो कर भाग खड़े हुए। यह देखकर धनुर्धरों में से अधिकांश ने अपना स्थान छोड़ दिया। क़ुरैश के सेनापति ख़ालिद पुत्र वलीद ने अपने सवारों के साथ फिर कर धनुर्धरों के स्थान पर आक्रमण कर दिया। फिर आकस्मात् मुसलमानों पर पीछे से आक्रमण करके उनकी विजय को पराजय में बदल दिया। जिसमें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भी आघात पहुँचा। (तफ़्सीर इब्ने कसीर।)

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 121

إِذۡ هَمَّت طَّآئِفَتَانِ مِنكُمۡ أَن تَفۡشَلَا وَٱللَّهُ وَلِيُّهُمَاۗ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ

तथा (याद करो) जब तुम्हारे दो समूहों[66] ने साहसहीनता दिखाने (पीछे हटने) का इरादा किया और अल्लाह उनका समर्थक व सहायक था, तथा ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।

तफ़्सीर:

66. अर्थात दो क़बीले बनू सलमा तथा बनू हारिसा ने भी अब्दुल्लाह बिन उबय्य के साथ वापस हो जाना चाहा। (सह़ीह़ बुख़ारी ह़दीस : 4558)

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 122

وَلَقَدۡ نَصَرَكُمُ ٱللَّهُ بِبَدۡرٖ وَأَنتُمۡ أَذِلَّةٞۖ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ

और अल्लाह बद्र (के युद्ध) में तुम्हारी सहायता कर चुका है, जबकि तुम कमज़ोर थे। अतः अल्लाह से डरो, ताकि तुम उसके प्रति आभारी हो सको।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 123

إِذۡ تَقُولُ لِلۡمُؤۡمِنِينَ أَلَن يَكۡفِيَكُمۡ أَن يُمِدَّكُمۡ رَبُّكُم بِثَلَٰثَةِ ءَالَٰفٖ مِّنَ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ مُنزَلِينَ

(ऐ नबी! वह समय भी याद करें) जब आप ईमान वालों से कह रहे थे : क्या तुम्हारे लिए यह काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा पालनहार (आकाश से) तीन हज़ार फ़रिश्ते उतारकर तुम्हारी सहायता करेॽ

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 124

بَلَىٰٓۚ إِن تَصۡبِرُواْ وَتَتَّقُواْ وَيَأۡتُوكُم مِّن فَوۡرِهِمۡ هَٰذَا يُمۡدِدۡكُمۡ رَبُّكُم بِخَمۡسَةِ ءَالَٰفٖ مِّنَ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ مُسَوِّمِينَ

क्यों[67] नहीं, यदि तुम धैर्य से काम लो और अल्लाह से डरो और फिर ऐसा हो कि वे (दुश्मन) उसी घड़ी तुमपर चढ़ आएँ, तो तुम्हारा पालनहार (तीन नहीं, बल्कि) पाँच हज़ार चिह्न[68] लगे फ़रिश्तों द्वारा तुम्हारी मदद करेगा।

तफ़्सीर:

67. अर्थात इतना समर्थन बहुत है। 68. अर्थात उनपर तथा उनके घोड़ों पर चिह्न लगे होंगे।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 125

وَمَا جَعَلَهُ ٱللَّهُ إِلَّا بُشۡرَىٰ لَكُمۡ وَلِتَطۡمَئِنَّ قُلُوبُكُم بِهِۦۗ وَمَا ٱلنَّصۡرُ إِلَّا مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ

और अल्लाह ने इस (मदद) को तुम्हारे लिए केवल शुभ सूचना बनाया है और ताकि तुम्हारे दिल उससे संतुष्ट हो जाएँ और सहायता तो केवल अल्लाह ही के पास से आती है, जो प्रभुत्वशाली, हिकमत वाला (तत्वदर्शी) है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 126

لِيَقۡطَعَ طَرَفٗا مِّنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَوۡ يَكۡبِتَهُمۡ فَيَنقَلِبُواْ خَآئِبِينَ

ताकि[69] वह काफ़िरों के एक हिस्से को काट दे या उन्हें अपमानित कर दे, फिर वे विफल होकर वापस हो जाएँ।

तफ़्सीर:

69. अर्थात अल्लाह तुम्हें फ़रिश्तों द्वारा समर्थन इसलिए देगा, ताकि काफ़िरों का कुछ बल तोड़ दे, और उन्हें निष्फल वापिस कर दे।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 127

لَيۡسَ لَكَ مِنَ ٱلۡأَمۡرِ شَيۡءٌ أَوۡ يَتُوبَ عَلَيۡهِمۡ أَوۡ يُعَذِّبَهُمۡ فَإِنَّهُمۡ ظَٰلِمُونَ

(ऐ नबी!) इस[70] मामले में आपको कोई अधिकार नहीं, अल्लाह चाहे तो उनकी तौबा क़बूल[71] करे या उन्हें दंड[72] दे, क्योंकि वे अत्याचारी हैं।

तफ़्सीर:

70. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फ़ज्र की नमाज़ में रुकूअ के पश्चात यह प्रार्थना करते थे कि हे अल्लाह! अमुक को अपनी दया से दूर कर दे। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुखारी : 4559) 71. अर्थात उन्हें मार्गदर्शन दे। 72. यदि वे काफ़िर ही रह जाएँ।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 128

وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ يَغۡفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ

तथा जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, सब अल्लाह ही का है। वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे, तथा अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 129

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَأۡكُلُواْ ٱلرِّبَوٰٓاْ أَضۡعَٰفٗا مُّضَٰعَفَةٗۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ

ऐ ईमान वालो! कई-कई गुणा करके ब्याज[73] न खाओ। तथा अल्लाह से डरो, ताकि तुम सफल हो।

तफ़्सीर:

73. उह़ुद की पराजय का कारण धन का लोभ बना था। इसलिए यहाँ ब्याज से सावधान किया जा रहा है, जो धन के लोभ का अति भयावह साधन है। तथा आज्ञाकारिता की प्रेरणा दी जा रही है। कई-कई गुणा ब्याज न खाने का अर्थ यह नहीं कि इस प्रकार ब्याज न खाओ, बल्कि ब्याज अधिक हो या थोड़ा सर्वथा ह़राम (वर्जित) है। यहाँ जाहिलिय्यत के युग में ब्याज की जो रीति थी, उसका वर्णन किया गया है। जैसा कि आधुनिक युग में ब्याज पर ब्याज लेने की रीति है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 130

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