وَٱتَّقُواْ ٱلنَّارَ ٱلَّتِيٓ أُعِدَّتۡ لِلۡكَٰفِرِينَ
तथा उस आग से डरो (बचो), जो काफ़िरों के लिए तैयार की गई है।
सूरह का नाम : Al Imran सूरह नंबर : 3 आयत नंबर: 131
وَأَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ
तथा अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करो, ताकि तुमपर दया की जाए।
सूरह का नाम : Al Imran सूरह नंबर : 3 आयत नंबर: 132
۞وَسَارِعُوٓاْ إِلَىٰ مَغۡفِرَةٖ مِّن رَّبِّكُمۡ وَجَنَّةٍ عَرۡضُهَا ٱلسَّمَٰوَٰتُ وَٱلۡأَرۡضُ أُعِدَّتۡ لِلۡمُتَّقِينَ
और अपने पालनहार की क्षमा और उस स्वर्ग की ओर तेज़ी से बढ़ो, जिसकी चौड़ाई आकाशों तथा धरती के बराबर है। वह अल्लाह से डरने वालों के लिए तैयार किया गया है।
सूरह का नाम : Al Imran सूरह नंबर : 3 आयत नंबर: 133
ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ فِي ٱلسَّرَّآءِ وَٱلضَّرَّآءِ وَٱلۡكَٰظِمِينَ ٱلۡغَيۡظَ وَٱلۡعَافِينَ عَنِ ٱلنَّاسِۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
जो कठिनाई और आसानी की प्रत्येक स्थिति में (अल्लाह के मार्ग में) खर्च करते हैं, तथा ग़ुस्सा पी जाते हैं और लोगों को क्षमा कर देते हैं। और अल्लाह ऐसे अच्छे कार्य करने वालों से प्रेम करता है।
सूरह का नाम : Al Imran सूरह नंबर : 3 आयत नंबर: 134
وَٱلَّذِينَ إِذَا فَعَلُواْ فَٰحِشَةً أَوۡ ظَلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ ذَكَرُواْ ٱللَّهَ فَٱسۡتَغۡفَرُواْ لِذُنُوبِهِمۡ وَمَن يَغۡفِرُ ٱلذُّنُوبَ إِلَّا ٱللَّهُ وَلَمۡ يُصِرُّواْ عَلَىٰ مَا فَعَلُواْ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ
और वे ऐसे लोग हैं कि जब उनसे कोई जघन्य पाप हो जाता है या वे अपने ऊपर अत्याचार कर कर बैठते हैं, तो उन्हें अल्लाह याद आ जाता है। फिर वे अपने पापों के लिए क्षमा माँगते हैं, और अल्लाह के सिवा कौन है जो पापों का क्षमा करने वाला होॽ और वे अपने किए पर जान बूझकर अड़े नहीं रहते।
सूरह का नाम : Al Imran सूरह नंबर : 3 आयत नंबर: 135
أُوْلَـٰٓئِكَ جَزَآؤُهُم مَّغۡفِرَةٞ مِّن رَّبِّهِمۡ وَجَنَّـٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ وَنِعۡمَ أَجۡرُ ٱلۡعَٰمِلِينَ
वही लोग हैं जिनका बदला उनके पालनहार की ओर से क्षमा तथा ऐसे बाग़ हैं जिनके नीचे से नहरें बहती होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। औ क्या ही अच्छा बदला है नेक काम करने वालों का।
सूरह का नाम : Al Imran सूरह नंबर : 3 आयत नंबर: 136
قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِكُمۡ سُنَنٞ فَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُكَذِّبِينَ
तुमसे पहले भी समान परंपराएं (परिस्थितियाँ) गुज़र चुकी[74] हैं। इसलिए तुम धरती में चलो-फिरो और देखो कि झुठलाने वालों का अंत कैसे हुआॽ
तफ़्सीर:
74. उहुद की पराजय पर मुसलमानों को दिलासा दिया जा रहा है, जिसमें उनके 70 व्यक्ति शहीद हुए। (तफ़्सीर इब्ने कसीर)
सूरह का नाम : Al Imran सूरह नंबर : 3 आयत नंबर: 137
هَٰذَا بَيَانٞ لِّلنَّاسِ وَهُدٗى وَمَوۡعِظَةٞ لِّلۡمُتَّقِينَ
यह (क़ुरआन) लोगों के लिए (सत्य का) वर्णन और (अल्लाह का) भय रखने वालों के लिए मार्गदर्शन और उपदेश है।
सूरह का नाम : Al Imran सूरह नंबर : 3 आयत नंबर: 138
وَلَا تَهِنُواْ وَلَا تَحۡزَنُواْ وَأَنتُمُ ٱلۡأَعۡلَوۡنَ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
और तुम कमज़ोर न बनो और न ही शोक करो। और तुम ही सर्वोच्च रहोगे, यदि तुम ईमान वाले हो।
सूरह का नाम : Al Imran सूरह नंबर : 3 आयत नंबर: 139
إِن يَمۡسَسۡكُمۡ قَرۡحٞ فَقَدۡ مَسَّ ٱلۡقَوۡمَ قَرۡحٞ مِّثۡلُهُۥۚ وَتِلۡكَ ٱلۡأَيَّامُ نُدَاوِلُهَا بَيۡنَ ٱلنَّاسِ وَلِيَعۡلَمَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَيَتَّخِذَ مِنكُمۡ شُهَدَآءَۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلظَّـٰلِمِينَ
यदि तुम्हें आघात पहुँचा है, तो उन लोगों[75] को भी इसी के समान आघात पहुँच चुका है। तथा इन दिनों को हम लोगों के बीच फेरते रहते[76] हैं। और ताकि अल्लाह उन लोगों को जान ले[77] जो ईमान वाले हैं, और तुममें से कुछ लोगों को शहादत नसीब करे। और अल्लाह अत्याचार करने वालों को पसंद नहीं करता।
तफ़्सीर:
75. इसमें क़ुरैश की बद्र में पराजय और उनके 70 व्यक्तियों के मारे जाने की ओर संकेत है। 76. अर्थात कभी किसी की जीत होती है, कभी किसी की। 77. अर्थात अच्छे बुरे में अंतर कर दे।
सूरह का नाम : Al Imran सूरह नंबर : 3 आयत नंबर: 140