कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

۞يَسۡتَبۡشِرُونَ بِنِعۡمَةٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَفَضۡلٖ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجۡرَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ

वे अल्लाह के अनुग्रह और उसकी कृपा से खुश हो रहे हैं और इससे कि अल्लाह ईमान वालों का बदला नष्ट नहीं करता।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 171

ٱلَّذِينَ ٱسۡتَجَابُواْ لِلَّهِ وَٱلرَّسُولِ مِنۢ بَعۡدِ مَآ أَصَابَهُمُ ٱلۡقَرۡحُۚ لِلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ مِنۡهُمۡ وَٱتَّقَوۡاْ أَجۡرٌ عَظِيمٌ

जिन लोगों ने अल्लाह और रसूल की पुकार को स्वीकार[95] किया, इसके पश्चात् कि उन्हें आघात पहुँच चुका था। उनमें से सत्कर्म करने वालों और (अल्लाह से) डरने वालों के लिए महान प्रतिफल है।

तफ़्सीर:

95. जब काफ़िर उह़ुद से मक्का वापस हुए, तो मदीने से 30 मील दूर "रौह़ाअ" से फिर मदीना वापस आने का निश्चय किया। जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सूचना मिली, तो सेना ले कर "ह़मराउल असद" तक पहुँचे जिसे सुनकर वे भाग गए। इधर मुसलमान सफल वापस आए। इस आयत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों की सराहना की गई है जिन्होंने उह़ुद में घाव खाने के पश्चात भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का साथ दिया। ये आयतें इसी से संबंधित हैं।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 172

ٱلَّذِينَ قَالَ لَهُمُ ٱلنَّاسُ إِنَّ ٱلنَّاسَ قَدۡ جَمَعُواْ لَكُمۡ فَٱخۡشَوۡهُمۡ فَزَادَهُمۡ إِيمَٰنٗا وَقَالُواْ حَسۡبُنَا ٱللَّهُ وَنِعۡمَ ٱلۡوَكِيلُ

ये वही लोग हैं जिनसे लोगों ने कहा कि दुश्मनों ने तुम्हारे विरुद्ध सेना इकट्ठा कर ली है।[96] अतः उनसे डरो। तो इस (सूचना) ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया और उन्होंने कहा : हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है और वह बहुत अच्छा कार्यसाधक (काम बनाने वाला) है।

तफ़्सीर:

96. अर्थात शत्रु ने मक्का जाते हुए राह में सोचा कि मुसलमानों के परास्त हो जाने पर यह अच्छा अवसर था कि मदीने पर आक्रमण करके उनका उन्मू222लन कर दिया जाए, तथा वापस आने का निश्चय किया। (तफ़्सीर क़ुर्तुबी)

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 173

فَٱنقَلَبُواْ بِنِعۡمَةٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَفَضۡلٖ لَّمۡ يَمۡسَسۡهُمۡ سُوٓءٞ وَٱتَّبَعُواْ رِضۡوَٰنَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ ذُو فَضۡلٍ عَظِيمٍ

चुनांचे वे अल्लाह की ओर से प्राप्त होने वाली नेमत और अनुग्रह के साथ[97] लौटे। उन्हें कोई तकलीफ़ नहीं पहुँची। तथा वे अल्लाह की प्रसन्नता के मार्ग पर चले। और अल्लाह बड़े अनुग्रह वाला है।

तफ़्सीर:

97. अर्थात "ह़मराउल असद" से मदीन वापस हुए।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 174

إِنَّمَا ذَٰلِكُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ يُخَوِّفُ أَوۡلِيَآءَهُۥ فَلَا تَخَافُوهُمۡ وَخَافُونِ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ

वह तो शैतान है, जो तुम्हें अपने सहयोगियों से डरा रहा है। अतः तुम उनसे[98] न डरो और केवल मुझसे डरो, यदि तुम ईमान वाले हो।

तफ़्सीर:

98. अर्थात मिश्रणवादियों से।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 175

وَلَا يَحۡزُنكَ ٱلَّذِينَ يُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡكُفۡرِۚ إِنَّهُمۡ لَن يَضُرُّواْ ٱللَّهَ شَيۡـٔٗاۚ يُرِيدُ ٱللَّهُ أَلَّا يَجۡعَلَ لَهُمۡ حَظّٗا فِي ٱلۡأٓخِرَةِۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٌ

(ऐ नबी!) वे लोग आपको दुःखी न करें, जो कुफ़्र में तेज़ी दिखा रहे हैं। वे अल्लाह को कदापि कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे। अल्लाह चाहता है कि आख़िरत (परलोक) में उनका कोई हिस्सा न रखे तथा उनके लिए बड़ी यातना है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 176

إِنَّ ٱلَّذِينَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلۡكُفۡرَ بِٱلۡإِيمَٰنِ لَن يَضُرُّواْ ٱللَّهَ شَيۡـٔٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ

निःसंदेह जिन लोगों ने ईमान के बदले कुफ़्र का सौदा किया, वे अल्लाह का कुछ नहीं बिगाड़ेंगे। तथा उनके लिए दुःखदायी यातना है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 177

وَلَا يَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَنَّمَا نُمۡلِي لَهُمۡ خَيۡرٞ لِّأَنفُسِهِمۡۚ إِنَّمَا نُمۡلِي لَهُمۡ لِيَزۡدَادُوٓاْ إِثۡمٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ

जो लोग काफ़िर हो गए, वे हरगिज़ यह न समझें कि हमारा उन्हें ढील[99] देना, उनके लिए अच्छा है। वास्तव में, हम उन्हें इसलिए ढील दे रहे हैं, ताकि उनके पाप[100] और बढ़ जाएँ। तथा उनके लिए अपमानजनक यातना है।

तफ़्सीर:

99. अर्थात उन्हें सांसारिक सुःख-सुविधा देना। भावार्थ यह है कि इस संसार में अल्लाह, सत्यासत्य, न्याय तथा अत्याचार सब के लिए अवसर देता है। परंतु इससे धोखा नहीं खाना चाहिए, यह देखना चाहिए कि परलोक की सफलता किस में है। सत्य ही स्थायी है तथा असत्य को ध्वस्त हो जाना है। 100. यह स्वभाविक नियम है कि पाप करने से पापाचारी में पाप करने की भावना अधिक हो जाती है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 178

مَّا كَانَ ٱللَّهُ لِيَذَرَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ عَلَىٰ مَآ أَنتُمۡ عَلَيۡهِ حَتَّىٰ يَمِيزَ ٱلۡخَبِيثَ مِنَ ٱلطَّيِّبِۗ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُطۡلِعَكُمۡ عَلَى ٱلۡغَيۡبِ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يَجۡتَبِي مِن رُّسُلِهِۦ مَن يَشَآءُۖ فَـَٔامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦۚ وَإِن تُؤۡمِنُواْ وَتَتَّقُواْ فَلَكُمۡ أَجۡرٌ عَظِيمٞ

ऐसा नहीं है कि अल्लाह ईमान वालों को उसी (हाल) पर छोड़ दे, जिसपर तुम (इस समय) हो, जब तक कि बुरे को अच्छे से अलग न कर दे। और ऐसा भी नहीं है कि अल्लाह तुम्हें ग़ैब (परोक्ष) से सूचित[101] कर दे। परंतु अल्लाह अपने रसूलों में से जिसे चाहता है (ग़ैब की कुछ बातें बताने के लिए) चुन लेता है। अतः तुम अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ। यदि तुम ईमान लाओ और अल्लाह से डरते रहो, तो तुम्हारे लिए बड़ा प्रतिफल है।

तफ़्सीर:

101. अर्थात तुम्हें बता दे कि कौन ईमान वाला और कौन मुनाफ़िक़ (पाखंडी) है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 179

وَلَا يَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ يَبۡخَلُونَ بِمَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦ هُوَ خَيۡرٗا لَّهُمۖ بَلۡ هُوَ شَرّٞ لَّهُمۡۖ سَيُطَوَّقُونَ مَا بَخِلُواْ بِهِۦ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ وَلِلَّهِ مِيرَٰثُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ

जो लोग उस चीज़ में कंजूसी करते हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपने अनुग्रह से प्रदान किया[102] है, वे कदापि यह न समझें कि (उनका) यह (कृत्य) उनके लिए अच्छा है। बल्कि यह उनके लिए बुरा है। उन्होंने जिस चीज़ में कंजूसी की होगी, उसे क़ियामत के दिन उनके गले का तौक़[103] बना दिया जाएगा। और आकाशों तथा धरती का उत्तराधिकार (विरासत) अल्लाह के लिए[104] है और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे सूचित है।

तफ़्सीर:

102. अर्थात धन-धान्य की ज़कात नहीं देते। 103. सह़ीह़ बुखारी में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : जिसे अल्लाह ने धन दिया है, और वह उस की ज़कात नहीं देता, तो प्रलय के दिन उसका धन गंजा सर्प बना दिया जाएगा, जो उसके गले का हार बन जाएगा। और उसे अपने जबड़ों से पकड़ेगा, तथा कहेगा कि मैं तुम्हारा कोष हुँ! मैं तुम्हारा धन हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4565) 104. अर्थात प्रलय के दिन वही अकेला सब का स्वामी होगा।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 180

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