कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

قَالَ رَبِّ ٱجۡعَل لِّيٓ ءَايَةٗۖ قَالَ ءَايَتُكَ أَلَّا تُكَلِّمَ ٱلنَّاسَ ثَلَٰثَةَ أَيَّامٍ إِلَّا رَمۡزٗاۗ وَٱذۡكُر رَّبَّكَ كَثِيرٗا وَسَبِّحۡ بِٱلۡعَشِيِّ وَٱلۡإِبۡكَٰرِ

उन्होंने कहा : ऐ मेरे पालनहार! मेरे लिए कोई निशानी बना दे। (अल्लाह ने) फरमाया : तुम्हारी निशानी यह है कि तुम तीन दिन लोगों से बात नहीं करोगे परंतु इशारे से। तथा तुम अपने पालनहार को बहुत अधिक याद करो और शाम एवं सुबह उसकी पवित्रता का वर्णन करो।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 41

وَإِذۡ قَالَتِ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ يَٰمَرۡيَمُ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰكِ وَطَهَّرَكِ وَٱصۡطَفَىٰكِ عَلَىٰ نِسَآءِ ٱلۡعَٰلَمِينَ

और (याद करो) जब फ़रिश्तों ने कहा : ऐ मरयम! निःसंदेह अल्लाह ने तुम्हारा चयन कर लिया तथा तुम्हें पवित्र कर दिया और सर्व संसार की स्त्रियों पर तुम्हें चुन लिया है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 42

يَٰمَرۡيَمُ ٱقۡنُتِي لِرَبِّكِ وَٱسۡجُدِي وَٱرۡكَعِي مَعَ ٱلرَّـٰكِعِينَ

ऐ मरयम! अपने पालनहार का आज्ञापालन करती रहो और सजदा करो तथा रुकू करने वालों के साथ रुकू करती रहो।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 43

ذَٰلِكَ مِنۡ أَنۢبَآءِ ٱلۡغَيۡبِ نُوحِيهِ إِلَيۡكَۚ وَمَا كُنتَ لَدَيۡهِمۡ إِذۡ يُلۡقُونَ أَقۡلَٰمَهُمۡ أَيُّهُمۡ يَكۡفُلُ مَرۡيَمَ وَمَا كُنتَ لَدَيۡهِمۡ إِذۡ يَخۡتَصِمُونَ

(ऐ नबी!) ये ग़ैब (परोक्ष) की कुछ सूचनाएँ हैं, जो हम आपकी ओर वह़्य कर रहे हैं और आप उस समय उनके पास मौजूद न थे, जब वे अपनी क़लमों[20] को फेंक रहे थे कि उनमें से कौन मरयम की किफ़ालत करे और न आप उस समय उनके पास थे, जब वे झगड़ रहे थे।

तफ़्सीर:

20. अर्थात यह निर्णय करने के लिए कि मरयम का संरक्षक कौन हो?

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 44

إِذۡ قَالَتِ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ يَٰمَرۡيَمُ إِنَّ ٱللَّهَ يُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٖ مِّنۡهُ ٱسۡمُهُ ٱلۡمَسِيحُ عِيسَى ٱبۡنُ مَرۡيَمَ وَجِيهٗا فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِ وَمِنَ ٱلۡمُقَرَّبِينَ

(ऐ नबी! उस समय को याद करें) जब फ़रिश्तों ने कहा : ऐ मरयम! निःसंदेह अल्लाह तुम्हें अपनी ओर से एक शब्द[21] की शुभ सूचना देता है, जिसका नाम 'मसीह़ ईसा बिन मरयम' है। वह दुनिया तथा आख़िरत में महान स्थान वाला और निकटवर्ती लोगों में से होगा।

तफ़्सीर:

21. अर्थात वह अल्लाह के शब्द "कुन" से पैदा होगा, जिस का अर्थ है "हो जा"।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 45

وَيُكَلِّمُ ٱلنَّاسَ فِي ٱلۡمَهۡدِ وَكَهۡلٗا وَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ

और वह लोगों से पालने में बात करेगा तथा अधेड़ आयु में भी और नेक लोगों में से होगा।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 46

قَالَتۡ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي وَلَدٞ وَلَمۡ يَمۡسَسۡنِي بَشَرٞۖ قَالَ كَذَٰلِكِ ٱللَّهُ يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ إِذَا قَضَىٰٓ أَمۡرٗا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ

उस (मरयम) ने (आश्चर्य से) कहा : ऐ मेरे पालनहार! मेरे हाँ पुत्र कैसे होगा, हालाँकि किसी पुरुष ने मुझे हाथ नहीं लगाया? उसने[22] कहा : इसी तरह अल्लाह पैदा करता है जो चाहता है। जब वह किसी काम का निर्णय कर लेता है, तो उससे यही कहता है : "हो जा", तो वह हो जाता है।

तफ़्सीर:

22. अर्थात फ़रिश्ते ने।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 47

وَيُعَلِّمُهُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَٱلتَّوۡرَىٰةَ وَٱلۡإِنجِيلَ

और अल्लाह उसे लेखन, ह़िकमत, तौरात और इंजील की शिक्षा देगा।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 48

وَرَسُولًا إِلَىٰ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ أَنِّي قَدۡ جِئۡتُكُم بِـَٔايَةٖ مِّن رَّبِّكُمۡ أَنِّيٓ أَخۡلُقُ لَكُم مِّنَ ٱلطِّينِ كَهَيۡـَٔةِ ٱلطَّيۡرِ فَأَنفُخُ فِيهِ فَيَكُونُ طَيۡرَۢا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۖ وَأُبۡرِئُ ٱلۡأَكۡمَهَ وَٱلۡأَبۡرَصَ وَأُحۡيِ ٱلۡمَوۡتَىٰ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۖ وَأُنَبِّئُكُم بِمَا تَأۡكُلُونَ وَمَا تَدَّخِرُونَ فِي بُيُوتِكُمۡۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لَّكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ

और (वह) बनी इसराईल की ओर रसूल होगा। (वह कहेगा :) निःसंदेह मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से बड़ी निशानी लेकर आया हूँ कि निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के रूप जैसी आकृति बनाता हूँ, फिर उसमें फूँक मारता हूँ, तो वह अल्लाह की अनुमति से पक्षी बन जाती है और मैं अल्लाह की अनुमति से जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को स्वस्थ कर देता हूँ और मुर्दों को जीवित कर देता हूँ। तथा तुम्हें बता देता हूँ जो कुछ तुम अपने घरों में खाते हो और जो संग्रह करते हो। निःसंदेह इसमें तुम्हारे लिए एक निशानी है, यदि तुम ईमान वाले हो।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 49

وَمُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيَّ مِنَ ٱلتَّوۡرَىٰةِ وَلِأُحِلَّ لَكُم بَعۡضَ ٱلَّذِي حُرِّمَ عَلَيۡكُمۡۚ وَجِئۡتُكُم بِـَٔايَةٖ مِّن رَّبِّكُمۡ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ

तथा अपने से पहले की किताब तौरात की पुष्टि करने वाला हूँ और ताकि मैं तुम्हारे लिए कुछ वे चीज़ें हलाल कर दूँ, जो तुम पर हराम कर दी गई थीं तथा मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से बड़ी निशानी लेकर आया हूँ। अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरा कहना मानो।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 50

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