कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَإِذۡ أَوۡحَيۡتُ إِلَى ٱلۡحَوَارِيِّـۧنَ أَنۡ ءَامِنُواْ بِي وَبِرَسُولِي قَالُوٓاْ ءَامَنَّا وَٱشۡهَدۡ بِأَنَّنَا مُسۡلِمُونَ

तथा (याद कर) जब मैंने हवारियों के दिलों में यह बात डाल दी कि मुझपर तथा मेरे रसूल (ईसा) पर ईमान लाओ। उन्होंने कहा : हम ईमान लाए और तू गवाह रह कि हम आज्ञाकारी हैं।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 111

إِذۡ قَالَ ٱلۡحَوَارِيُّونَ يَٰعِيسَى ٱبۡنَ مَرۡيَمَ هَلۡ يَسۡتَطِيعُ رَبُّكَ أَن يُنَزِّلَ عَلَيۡنَا مَآئِدَةٗ مِّنَ ٱلسَّمَآءِۖ قَالَ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ

जब हवारियों ने कहा : ऐ मरयम के पुत्र ईसा! क्या तेरा पालनहार यह कर सकता है कि हमपर आकाश से एक थाल (भोजन सहित दस्तर-ख़्वान) उतार दे? उस (ईसा) ने कहा : अल्लाह से डरो, यदि तुम ईमान वाले हो।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 112

قَالُواْ نُرِيدُ أَن نَّأۡكُلَ مِنۡهَا وَتَطۡمَئِنَّ قُلُوبُنَا وَنَعۡلَمَ أَن قَدۡ صَدَقۡتَنَا وَنَكُونَ عَلَيۡهَا مِنَ ٱلشَّـٰهِدِينَ

उन्होंने कहा : हम चाहते हैं कि उसमें से खाएँ और हमारे दिलों को संतोष हो जाए तथा हम जान लें कि निश्चय तूने हमसे सच कहा है और हम उसपर गवाहों में से हो जाएँ।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 113

قَالَ عِيسَى ٱبۡنُ مَرۡيَمَ ٱللَّهُمَّ رَبَّنَآ أَنزِلۡ عَلَيۡنَا مَآئِدَةٗ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ تَكُونُ لَنَا عِيدٗا لِّأَوَّلِنَا وَءَاخِرِنَا وَءَايَةٗ مِّنكَۖ وَٱرۡزُقۡنَا وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلرَّـٰزِقِينَ

मरयम के पुत्र ईसा ने प्रार्थना की : ऐ अल्लाह! ऐ हमारे पालनहार! हम पर आकाश से एक थाल उतार, जो हमारे तथा हमारे पश्चात् के लोगों के लिए उत्सव (का दिन) बन जाए तथा तेरी ओर से एक निशानी (हो)। तथा हमें जीविका प्रदान कर, तू ही सबसे उत्तम जीविका प्रदान करने वाला है।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 114

قَالَ ٱللَّهُ إِنِّي مُنَزِّلُهَا عَلَيۡكُمۡۖ فَمَن يَكۡفُرۡ بَعۡدُ مِنكُمۡ فَإِنِّيٓ أُعَذِّبُهُۥ عَذَابٗا لَّآ أُعَذِّبُهُۥٓ أَحَدٗا مِّنَ ٱلۡعَٰلَمِينَ

अल्लाह ने कहा : निःसंदेह मैं उसे तुमपर उतारने[75] वाला हूँ। फिर जो उसके बाद तुममें से कुफ़्र (अविश्वास) करेगा, तो निःसंदेह मैं उसे दंड दूँगा, ऐसा दंड कि संसार वासियों में से किसी को न दूँगा।

तफ़्सीर:

75. अधिकतर भाष्यकारों ने लिखा है कि वह थाल आकाश से उतरा। (इब्ने कसीर)

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 115

وَإِذۡ قَالَ ٱللَّهُ يَٰعِيسَى ٱبۡنَ مَرۡيَمَ ءَأَنتَ قُلۡتَ لِلنَّاسِ ٱتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَٰهَيۡنِ مِن دُونِ ٱللَّهِۖ قَالَ سُبۡحَٰنَكَ مَا يَكُونُ لِيٓ أَنۡ أَقُولَ مَا لَيۡسَ لِي بِحَقٍّۚ إِن كُنتُ قُلۡتُهُۥ فَقَدۡ عَلِمۡتَهُۥۚ تَعۡلَمُ مَا فِي نَفۡسِي وَلَآ أَعۡلَمُ مَا فِي نَفۡسِكَۚ إِنَّكَ أَنتَ عَلَّـٰمُ ٱلۡغُيُوبِ

तथा जब अल्लाह (क़ियामत के दिन) कहेगा : ऐ मरयम के पुत्र ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि मुझे तथा मेरी माँ को अल्लाह के अलावा दो पूज्य बना लो? वह कहेगा : तू पवित्र है, मुझसे यह कैसे हो सकता है कि ऐसी बात कहूँ, जिसका मुझे कोई अधिकार नहीं? यदि मैंने यह बात कही थी, तो निश्चय तूने उसे जान लिया। तू जानता है, जो मेरे मन में है और मैं नहीं जानता जो तेरे मन में है। निश्चय तू ही सब छिपी बातों (परोक्ष)) को बहुत ख़ूब जानने वाला है।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 116

مَا قُلۡتُ لَهُمۡ إِلَّا مَآ أَمَرۡتَنِي بِهِۦٓ أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمۡۚ وَكُنتُ عَلَيۡهِمۡ شَهِيدٗا مَّا دُمۡتُ فِيهِمۡۖ فَلَمَّا تَوَفَّيۡتَنِي كُنتَ أَنتَ ٱلرَّقِيبَ عَلَيۡهِمۡۚ وَأَنتَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدٌ

मैंने उनसे उसके सिवा कुछ नहीं कहा, जिसका तूने मुझे आदेश दिया था कि अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा पालनहार और तुम्हारा पालनहार है। और मैं उनपर गवाह था, जब तक उनमें रहा, फिर जब तूने मुझे उठा लिया[76], तो तू ही उनपर निरीक्षक था और तू हर चीज़ पर गवाह है।

तफ़्सीर:

76. अर्थात् आकाश पर उठा लिया। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा : जब प्रलय के दिन कुछ लोग बायें से धर लिए जाएँगे तो मैं भी यही कहूँगा। (बुख़ारी : 4626)

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 117

إِن تُعَذِّبۡهُمۡ فَإِنَّهُمۡ عِبَادُكَۖ وَإِن تَغۡفِرۡ لَهُمۡ فَإِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ

यदि तू उन्हें दंड दे, तो निःसंदेह वे तेरे बंदे हैं और यदि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो निःसंदेह तू ही सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 118

قَالَ ٱللَّهُ هَٰذَا يَوۡمُ يَنفَعُ ٱلصَّـٰدِقِينَ صِدۡقُهُمۡۚ لَهُمۡ جَنَّـٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۖ رَّضِيَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ وَرَضُواْ عَنۡهُۚ ذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ

अल्लाह कहेगा : यह वह दिन है कि सच्चों को उनका सच ही लाभ देगा। उन के लिए ऐसे बाग़ हैं, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, उनमें हमेशा-हमेशा के लिए रहने वाले हैं। अल्लाह उनसे प्रसन्न हो गया तथा वे अल्लाह से प्रसन्न हो गए, यही बहुत बड़ी सफलता है।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 119

لِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا فِيهِنَّۚ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرُۢ

आकाशों और धरती तथा जो कुछ उनमें है, उन सबका राज्य अल्लाह ही[77] के लिए है और वह हर चीज़ पर शक्ति रखने वाला है।

तफ़्सीर:

77. आयत 116 से अब तक की आयतों का सारांश यह है कि अल्लाह ने पहले अपने वे पुरस्कार याद दिलाए जो ईसा अलैहिस्सलाम को प्रदान किए। फिर कहा कि सत्य की शिक्षाओं के होते तेरे अनुयायियों ने क्यों तुझे और तेरी माता को पूज्य बना लिया? इसपर ईसा अलैहिस्सलाम कहेंगे कि मैं इससे निर्दोष हूँ। अभिप्राय यह है कि सभी नबियों ने एकेश्वरवाद तथा सत्कर्म की शिक्षा दी। परंतु उनके अनुयायियों ने उन्हीं को पूज्य बना लिया। इस लिए इसका भार अनुयायियों और वे जिसकी पूजा कर रहे हैं, उनपर है। वह स्वयं इससे निर्दोष हैं।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 120

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