कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَلَوۡ كَانُواْ يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلنَّبِيِّ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيۡهِ مَا ٱتَّخَذُوهُمۡ أَوۡلِيَآءَ وَلَٰكِنَّ كَثِيرٗا مِّنۡهُمۡ فَٰسِقُونَ

और यदि वे अल्लाह और नबी पर और उसपर ईमान रखते होते जो उसकी ओर उतारा गया है, तो उन्हें मित्र न बनाते[52], लेकिन उनमें से बहुत से अवज्ञाकारी हैं।

तफ़्सीर:

52. भावार्थ यह है कि यदि यहूदी, मूसा अलैहिस्सलाम को अपना नबी और तौरात को अल्लाह की किताब मानते, जैसा कि उनका दावा है, तो वे मुसलमानों को शत्रु और काफ़िरों को मित्र नहीं बनाते। क़ुरआन का यह सच आज भी देखा जा सकता है।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 81

۞لَتَجِدَنَّ أَشَدَّ ٱلنَّاسِ عَدَٰوَةٗ لِّلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱلۡيَهُودَ وَٱلَّذِينَ أَشۡرَكُواْۖ وَلَتَجِدَنَّ أَقۡرَبَهُم مَّوَدَّةٗ لِّلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّا نَصَٰرَىٰۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّ مِنۡهُمۡ قِسِّيسِينَ وَرُهۡبَانٗا وَأَنَّهُمۡ لَا يَسۡتَكۡبِرُونَ

(ऐ नबी!) निश्चय आप उन लोगों के लिए जो ईमान लाए हैं, सब लोगों से अधिक सख़्त दुश्मनी रखने वाले यहूदियों को तथा उन लोगों को पाएँगे, जिन्होंने शिर्क किया। तथा निश्चय आप उन लोगों के लिए जो ईमान लाए हैं, उनमें से मित्रता में सबसे निकट उनको पाएँगे, जिन्होंने कहा निःसंदेह हम ईसाई हैं। यह इसलिए कि निःसंदेह उनमें विद्वान तथा पादरी (उपासक) हैं और इसलिए कि निःसंदेह वे अभिमान[53] नहीं करते।

तफ़्सीर:

53. अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) कहते हैं कि यह आयत ह़ब्शा के राजा नजाशी और उसके साथियों के बारे में उतरी, जो क़ुरआन सुनकर रोने लगे, और मुसलमान हो गए। (इब्ने जरीर)

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 82

وَإِذَا سَمِعُواْ مَآ أُنزِلَ إِلَى ٱلرَّسُولِ تَرَىٰٓ أَعۡيُنَهُمۡ تَفِيضُ مِنَ ٱلدَّمۡعِ مِمَّا عَرَفُواْ مِنَ ٱلۡحَقِّۖ يَقُولُونَ رَبَّنَآ ءَامَنَّا فَٱكۡتُبۡنَا مَعَ ٱلشَّـٰهِدِينَ

तथा जब वे उस (क़ुरआन) को सुनते हैं, जो रसूल की ओर उतारा गया है, तो आप देखते हैं कि उनकी आँखें आँसुओं से बह रही होती हैं, इस कारण कि उन्होंने सत्य को पहचान लिया। वे कहते हैं : ऐ हमारे पालनहार! हम ईमान ले आए। अतः हमें (सत्य) की गवाही देने वालों के साथ लिख[54] ले।

तफ़्सीर:

54. जब जाफ़र (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने ह़ब्शा के राजा नजाशी को सूरत मरयम की आरंभिक आयतें सुनाईं, तो वह और उस के पादरी रोने लगे। (सीरत इब्ने हिशाम 1/359)

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 83

وَمَا لَنَا لَا نُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَمَا جَآءَنَا مِنَ ٱلۡحَقِّ وَنَطۡمَعُ أَن يُدۡخِلَنَا رَبُّنَا مَعَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلصَّـٰلِحِينَ

और हमें क्या है कि हम अल्लाह पर तथा उस सत्य पर ईमान न लाएँ, जो हमारे पास आया है? जबकि हम आशा रखते हैं कि हमारा पालनहार हमें सदाचारियों के साथ दाखिल कर लेगा।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 84

فَأَثَٰبَهُمُ ٱللَّهُ بِمَا قَالُواْ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ وَذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلۡمُحۡسِنِينَ

तो अल्लाह ने उनके यह कहने के बदले में उन्हें ऐसे बाग़ प्रदान किए, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, जिनमें वे सदैव रहने वाले हैं तथा यही सत्कर्मियों का बदला है।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 85

وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَآ أُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡجَحِيمِ

तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही लोग भड़कती आग वाले हैं।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 86

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تُحَرِّمُواْ طَيِّبَٰتِ مَآ أَحَلَّ ٱللَّهُ لَكُمۡ وَلَا تَعۡتَدُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلۡمُعۡتَدِينَ

ऐ ईमान वालो! उन स्वच्छ पवित्र चीज़ों को, जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल (वैध) की हैं, हराम (अवैध)[55] न ठहराओ और सीमा से आगे न बढ़ो। निःसंदेह अल्लाह हद से आगे बढ़ने वालों[56] से प्रेम नहीं करता।

तफ़्सीर:

55. अर्थात किसी भी खाद्य अथवा वस्तु को वैध अथवा अवैध करने का अधिकार केवल अल्लाह को है। 56. यहाँ से फिर आदेशों तथा निषेधों का वर्णन किया जा रहा है। अन्य धर्मों के अनुयायियों ने संन्यास को अल्लाह के सामीप्य का साधन समझ लिया था, और ईसाइयों ने संन्यास की रीति बना ली थी और अपने ऊपर सांसारिक उचित स्वाद तथा सुख को अवैध कर लिया था। इस लिए यहाँ सावधान किया जा रहा है कि यह कोई अच्छाई नहीं, बल्कि धर्म सीमा का उल्लंघन है।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 87

وَكُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ ٱللَّهُ حَلَٰلٗا طَيِّبٗاۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ ٱلَّذِيٓ أَنتُم بِهِۦ مُؤۡمِنُونَ

तथा अल्लाह ने तुम्हें जो कुछ दिया है, उसमें से हलाल, पवित्र (चीज़) खाओ और उस अल्लाह से डरो, जिसपर तुम ईमान रखते हो।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 88

لَا يُؤَاخِذُكُمُ ٱللَّهُ بِٱللَّغۡوِ فِيٓ أَيۡمَٰنِكُمۡ وَلَٰكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا عَقَّدتُّمُ ٱلۡأَيۡمَٰنَۖ فَكَفَّـٰرَتُهُۥٓ إِطۡعَامُ عَشَرَةِ مَسَٰكِينَ مِنۡ أَوۡسَطِ مَا تُطۡعِمُونَ أَهۡلِيكُمۡ أَوۡ كِسۡوَتُهُمۡ أَوۡ تَحۡرِيرُ رَقَبَةٖۖ فَمَن لَّمۡ يَجِدۡ فَصِيَامُ ثَلَٰثَةِ أَيَّامٖۚ ذَٰلِكَ كَفَّـٰرَةُ أَيۡمَٰنِكُمۡ إِذَا حَلَفۡتُمۡۚ وَٱحۡفَظُوٓاْ أَيۡمَٰنَكُمۡۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ

अल्लाह तुम्हें तुम्हारी व्यर्थ क़समों[57] पर नहीं पकड़ता, परंतु तुम्हें उसपर पकड़ता है जो तुमने पक्के इरादे से क़समें खाई हैं। तो उसका प्रायश्चित[58] दस निर्धनों को भोजन कराना है, औसत दर्जे का, जो तुम अपने घर वालों को खिलाते हो, अथवा उन्हें कपड़े पहनाना, अथवा एक दास मुक्त करना। फिर जो न पाए, तो तीन दिन के रोज़े रखना है। यह तुम्हारी क़समों का प्रायश्चित है, जब तुम क़सम खा लो तथा अपनी क़समों की रक्षा करो। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें (आदेश) खोलकर बयान करता है, ताकि तुम आभार व्यक्त करो।

तफ़्सीर:

57. व्यर्थ अर्थात बिना निश्चय के। जैसे कोई बात-बात पर बोलता है : (नहीं, अल्लाह की क़सम!) अथवा (हाँ, अल्लाह की क़सम!) (बुख़ारी : 4613) 58. अर्थात यदि क़सम तोड़ दे, तो यह प्रायश्चित है।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 89

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِنَّمَا ٱلۡخَمۡرُ وَٱلۡمَيۡسِرُ وَٱلۡأَنصَابُ وَٱلۡأَزۡلَٰمُ رِجۡسٞ مِّنۡ عَمَلِ ٱلشَّيۡطَٰنِ فَٱجۡتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ

ऐ ईमान वालो! बात यही है कि शराब[59], जुआ, देवथान[60] और फ़ाल निकालने के तीर[61] सर्वथा गंदे और शैतानी कार्य हैं। अतः इनसे दूर रहो, ताकि तुम सफल हो।

तफ़्सीर:

59. शराब के निषेध के विषय में पहले सूरतुल-बक़रा आयत : 219, और सूरतुन-निसा, आयत : 43 में दो आदेश आ चुके हैं। और यह अंतिम आदेश है, जिसमें शराब को सदैव के लिए वर्जित कर दिया गया। 60. देवथान अर्थात वह वेदियाँ जिन पर देवी-देवताओं के नाम पर पशुओं की बलि दी जाती है। आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य के नाम से बलि दिया हुआ पशु अथवा प्रसाद अवैध है। 61. यानी पाँसे, ये तीन तीर होते हैं, जिनसे वे कोई काम करने के समय यह निर्णय लेते थे कि उसे करें या न करें। उनमें एक पर "करो" और दूसरे पर "मत करो" और तीसरे पर "शून्य" लिखा होता था।

सूरह का नाम : Al-Maidah   सूरह नंबर : 5   आयत नंबर: 90

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