कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَمَا جَعَلۡنَآ أَصۡحَٰبَ ٱلنَّارِ إِلَّا مَلَـٰٓئِكَةٗۖ وَمَا جَعَلۡنَا عِدَّتَهُمۡ إِلَّا فِتۡنَةٗ لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ لِيَسۡتَيۡقِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ وَيَزۡدَادَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِيمَٰنٗا وَلَا يَرۡتَابَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَلِيَقُولَ ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ وَٱلۡكَٰفِرُونَ مَاذَآ أَرَادَ ٱللَّهُ بِهَٰذَا مَثَلٗاۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ ٱللَّهُ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِي مَن يَشَآءُۚ وَمَا يَعۡلَمُ جُنُودَ رَبِّكَ إِلَّا هُوَۚ وَمَا هِيَ إِلَّا ذِكۡرَىٰ لِلۡبَشَرِ

और हमने जहन्नम के रक्षक फ़रिश्ते ही बनाए हैं और उनकी संख्या को काफ़िरों के लिए परीक्षण बनाया है। ताकि अह्ले किताब[8] विश्वास कर लें और ईमान वाले ईमान में आगे बढ़ जाएँ। और किताब वाले एवं ईमान वाले किसी संदेह में न पड़ें। और ताकि वे लोग जिनके दिलों में रोग है और वे लोग जो काफ़िर[9] हैं, यह कहें कि इस उदाहरण से अल्लाह का क्या तात्पर्य है? ऐसे ही, अल्लाह जिसे चाहता है गुमराह करता है और जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है। और आपके पालनहार की सेनाओं को उसके सिवा कोई नहीं जानता। और यह तो केवल मनुष्य के लिए उपदेश है।

तफ़्सीर:

8. क्योंकि यहूदियों तथा ईसाइयों की पुस्तकों में भी नरक के अधिकारियों की यही संख्या बताई गई है। 9. जब क़ुरैश ने नरक के अधिकारियों की चर्चा सुनी, तो अबू जह्ल ने कहा : ऐ क़ुरैश के समूह! क्या तुम में से दस-दस लोग, एक-एक फ़रिश्ते के लिए काफ़ी नहीं हैं? और एक व्यक्ति ने जिसे अपने बल पर बड़ा गर्व था कहा कि 17 को मैं अकेला देख लूँगा। और तुम सब मिलकर दो को देख लेना। (इब्ने कसीर)

सूरह का नाम : Al-Muddaththir   सूरह नंबर : 74   आयत नंबर: 31

كَلَّا وَٱلۡقَمَرِ

कदापि नहीं, क़सम है चाँद की!

सूरह का नाम : Al-Muddaththir   सूरह नंबर : 74   आयत नंबर: 32

وَٱلَّيۡلِ إِذۡ أَدۡبَرَ

तथा रात की, जब वह जाने लगे!

सूरह का नाम : Al-Muddaththir   सूरह नंबर : 74   आयत नंबर: 33

وَٱلصُّبۡحِ إِذَآ أَسۡفَرَ

और सुबह की, जब वह प्रकाशित हो जाए!

सूरह का नाम : Al-Muddaththir   सूरह नंबर : 74   आयत नंबर: 34

إِنَّهَا لَإِحۡدَى ٱلۡكُبَرِ

निःसंदेह वह (जहन्नम) निश्चय बहुत बड़ी चीज़ों[10] में से एक है।

तफ़्सीर:

10. अर्थात जैसे रात्रि के पश्चात दिन होता है, उसी प्रकार कर्मों का भी परिणाम सामने आना है। और दुष्कर्मों का परिणाम नरक है।

सूरह का नाम : Al-Muddaththir   सूरह नंबर : 74   आयत नंबर: 35

نَذِيرٗا لِّلۡبَشَرِ

मनुष्य के लिए डराने वाली है।

सूरह का नाम : Al-Muddaththir   सूरह नंबर : 74   आयत नंबर: 36

لِمَن شَآءَ مِنكُمۡ أَن يَتَقَدَّمَ أَوۡ يَتَأَخَّرَ

तुम में से उसके लिए, जो आगे बढ़ना चाहे अथवा पीछे हटना चाहे।[11]

तफ़्सीर:

11. अर्थात आज्ञापालन द्वारा अग्रसर हो जाए, अथवा अवज्ञा करके पीछे रह जाए।

सूरह का नाम : Al-Muddaththir   सूरह नंबर : 74   आयत नंबर: 37

كُلُّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡ رَهِينَةٌ

प्रत्येक व्यक्ति उसके बदले जो उसने कमाया, गिरवी[12] रखा हुआ है।

तफ़्सीर:

12. यदि सत्कर्म किया, तो मुक्त हो जाएगा।

सूरह का नाम : Al-Muddaththir   सूरह नंबर : 74   आयत नंबर: 38

إِلَّآ أَصۡحَٰبَ ٱلۡيَمِينِ

सिवाय दाहिने वालों के।

सूरह का नाम : Al-Muddaththir   सूरह नंबर : 74   आयत नंबर: 39

فِي جَنَّـٰتٖ يَتَسَآءَلُونَ

वे जन्नतों में एक-दूसरे से पूछेंगे।

सूरह का नाम : Al-Muddaththir   सूरह नंबर : 74   आयत नंबर: 40

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