कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّيۡحَةُ بِٱلۡحَقِّ فَجَعَلۡنَٰهُمۡ غُثَآءٗۚ فَبُعۡدٗا لِّلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِينَ

अन्ततः उन्हें चीख़ ने सत्य के साथ आ पकड़ा। तो हमने उन्हें कूड़ा-कर्कट बना दिया। तो दूरी हो अत्याचारियों के लिए।

सूरह का नाम : Al-Muminun   सूरह नंबर : 23   आयत नंबर: 41

ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قُرُونًا ءَاخَرِينَ

फिर हमने उनके पश्चात् कई और युग के लोगों को पैदा किया।

सूरह का नाम : Al-Muminun   सूरह नंबर : 23   आयत नंबर: 42

مَا تَسۡبِقُ مِنۡ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسۡتَـٔۡخِرُونَ

कोई समुदाय अपने निश्चित समय से न आगे बढ़ता है और न वे पीछे रहते हैं।[9]

तफ़्सीर:

9. अर्थात किसी जाति के विनाश का समय आ जाता है, तो एक क्षण की भी देर-सवेर नहीं होती।

सूरह का नाम : Al-Muminun   सूरह नंबर : 23   आयत नंबर: 43

ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا رُسُلَنَا تَتۡرَاۖ كُلَّ مَا جَآءَ أُمَّةٗ رَّسُولُهَا كَذَّبُوهُۖ فَأَتۡبَعۡنَا بَعۡضَهُم بَعۡضٗا وَجَعَلۡنَٰهُمۡ أَحَادِيثَۚ فَبُعۡدٗا لِّقَوۡمٖ لَّا يُؤۡمِنُونَ

फिर हमने अपने रसूल निरंतर भेजे। जब कभी किसी समुदाय के पास उसका रसूल आया, तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। तो हमने उनमें से कुछ को कुछ के पीछे चलता किया[10] और उन्हें कहानियाँ बना दिया। तो दूरी हो उन लोगों के लिए, जो ईमान नहीं लाते।

तफ़्सीर:

10. अर्थात विनाश में।

सूरह का नाम : Al-Muminun   सूरह नंबर : 23   आयत नंबर: 44

ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ وَأَخَاهُ هَٰرُونَ بِـَٔايَٰتِنَا وَسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٍ

फिर हमने मूसा तथा उसके भाई हारून को अपनी निशानियों तथा स्पष्ट तर्क के साथ भेजा।

सूरह का नाम : Al-Muminun   सूरह नंबर : 23   आयत नंबर: 45

إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِيْهِۦ فَٱسۡتَكۡبَرُواْ وَكَانُواْ قَوۡمًا عَالِينَ

फ़िरऔन और उसके सरदारों की ओर। तो उन्होंने घमंड किया और वे सरकश लोग थे।

सूरह का नाम : Al-Muminun   सूरह नंबर : 23   आयत नंबर: 46

فَقَالُوٓاْ أَنُؤۡمِنُ لِبَشَرَيۡنِ مِثۡلِنَا وَقَوۡمُهُمَا لَنَا عَٰبِدُونَ

उन्होंने कहा : क्या हम अपने जैसे दो व्यक्तियों पर ईमान ले आएँ , जबकि उनके लोग हमारे दास हैं?

सूरह का नाम : Al-Muminun   सूरह नंबर : 23   आयत नंबर: 47

فَكَذَّبُوهُمَا فَكَانُواْ مِنَ ٱلۡمُهۡلَكِينَ

तो उन्होंने दोनों को झुठला दिया, तो वे विनष्ट किए गए लोगों में से हो गए।

सूरह का नाम : Al-Muminun   सूरह नंबर : 23   आयत नंबर: 48

وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ لَعَلَّهُمۡ يَهۡتَدُونَ

और निःसंदेह हमने मूसा को पुस्तक[11] प्रदान की, ताकि वे (लोग) मार्गदर्शन पा जाएँ।

तफ़्सीर:

11. अर्थात तौरात।

सूरह का नाम : Al-Muminun   सूरह नंबर : 23   आयत नंबर: 49

وَجَعَلۡنَا ٱبۡنَ مَرۡيَمَ وَأُمَّهُۥٓ ءَايَةٗ وَءَاوَيۡنَٰهُمَآ إِلَىٰ رَبۡوَةٖ ذَاتِ قَرَارٖ وَمَعِينٖ

और हमने मरयम के पुत्र (ईसा) तथा उसकी माँ को महान निशानी बनाया तथा दोनों को एक ऊँची भूमि[12] पर ठिकाना दिया, जो रहने के योग्य तथा प्रवाहित पानी वाली थी।

तफ़्सीर:

12. इससे अभिप्राय बैतुल मक़्दिस है।

सूरह का नाम : Al-Muminun   सूरह नंबर : 23   आयत नंबर: 50

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