कुरान उद्धरण :  He knows both what is visible and what is not visible. -
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَإِن فَاتَكُمۡ شَيۡءٞ مِّنۡ أَزۡوَٰجِكُمۡ إِلَى ٱلۡكُفَّارِ فَعَاقَبۡتُمۡ فَـَٔاتُواْ ٱلَّذِينَ ذَهَبَتۡ أَزۡوَٰجُهُم مِّثۡلَ مَآ أَنفَقُواْۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ ٱلَّذِيٓ أَنتُم بِهِۦ مُؤۡمِنُونَ

और यदि तुम्हारी पत्नियों में से कोई काफ़िरों की ओर चली जाए, फिर तुम्हें बदले[8] का अवसर मिल जाए, तो जिन लोगों की पत्नियाँ चली गई हैं, उन्हें उनके खर्च के बराबर दे दो। तथा अल्लाह से डरते रहो, जिसपर तुम ईमान रखते हो।

तफ़्सीर:

8. भावार्थ यह है कि मुसलमान होकर जो स्त्री आ गई है, उसका महर जो उसके काफ़िर पति को देना है वह उसे न देकर उसके बराबर उस मुसलमान को दे दो, जिसकी काफ़िर पत्नी उसके हाथ से निकल गई है।

सूरह का नाम : Al-Mumtahanah   सूरह नंबर : 60   आयत नंबर: 11

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ إِذَا جَآءَكَ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتُ يُبَايِعۡنَكَ عَلَىٰٓ أَن لَّا يُشۡرِكۡنَ بِٱللَّهِ شَيۡـٔٗا وَلَا يَسۡرِقۡنَ وَلَا يَزۡنِينَ وَلَا يَقۡتُلۡنَ أَوۡلَٰدَهُنَّ وَلَا يَأۡتِينَ بِبُهۡتَٰنٖ يَفۡتَرِينَهُۥ بَيۡنَ أَيۡدِيهِنَّ وَأَرۡجُلِهِنَّ وَلَا يَعۡصِينَكَ فِي مَعۡرُوفٖ فَبَايِعۡهُنَّ وَٱسۡتَغۡفِرۡ لَهُنَّ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ

ऐ नबी! जब आपके पास ईमान वाली स्त्रियाँ[9] आएँ, जो आपसे इस बात पर 'बैअत' करें कि वे किसी को अल्लाह का साझी नहीं बनाएँगी और न चोरी करेंगी, न व्यभिचार करेंगी, न अपनी संतान को क़त्ल करेंगी, न कोई बोहतान (झूठा अभियोग) लगाएँगी जिसे उन्होंने अपने हाथों तथा पैरों के सामने गढ़ लिया हो और न किसी नेक काम में आपकी अवज्ञा करेंगी, तो आप उनसे 'बैअत' ले लें तथा उनके लिए अल्लाह से क्षमा की याचना करें। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।

तफ़्सीर:

9. ह़दीस में है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) इस आयत द्वारा उनकी परीक्षा लेते और जो मान लेती उससे कहते कि जाओ मैंने तुमसे वचन ले लिया। और आपने (अपनी पत्नियों के अलावा) कभी किसी नारी के हाथ को हाथ नहीं लगाया। (सह़ीह़ बुख़ारी : 93, 94, 95, 4891)

सूरह का नाम : Al-Mumtahanah   सूरह नंबर : 60   आयत नंबर: 12

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَتَوَلَّوۡاْ قَوۡمًا غَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِمۡ قَدۡ يَئِسُواْ مِنَ ٱلۡأٓخِرَةِ كَمَا يَئِسَ ٱلۡكُفَّارُ مِنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلۡقُبُورِ

ऐ ईमान वालो! तुम उन लोगों को मित्र न बनाओ, जिनपर अल्लाह क्रोधित हुआ है। निश्चय वे आख़िरत[10] से वैसे ही निराश हो चुके हैं, जैसे काफ़िर लोग क़ब्र वालों (के जीवित होने) से निराश हो चुके हैं।

तफ़्सीर:

10. आख़िरत से निराश होने का अर्थ उसका इनकार है, जैसे उन्हें मरने के पश्चात् जीवन का इनकार है।

सूरह का नाम : Al-Mumtahanah   सूरह नंबर : 60   आयत नंबर: 13

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