कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

أَلَّا تَعۡلُواْ عَلَيَّ وَأۡتُونِي مُسۡلِمِينَ

यह कि मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो तथा आज्ञाकारी होकर मेरे पास आ जाओ।

सूरह का नाम : An-Naml   सूरह नंबर : 27   आयत नंबर: 31

قَالَتۡ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلۡمَلَؤُاْ أَفۡتُونِي فِيٓ أَمۡرِي مَا كُنتُ قَاطِعَةً أَمۡرًا حَتَّىٰ تَشۡهَدُونِ

उसने कहा : ऐ प्रमुखो! मुझे मेरे मामले में सही हल बताओ। मैं किसी मामले का फ़ैसला करने वाली नहीं, यहाँ तक तुम मेरे पास उपस्थित हो।

सूरह का नाम : An-Naml   सूरह नंबर : 27   आयत नंबर: 32

قَالُواْ نَحۡنُ أُوْلُواْ قُوَّةٖ وَأُوْلُواْ بَأۡسٖ شَدِيدٖ وَٱلۡأَمۡرُ إِلَيۡكِ فَٱنظُرِي مَاذَا تَأۡمُرِينَ

उन्होंने कहा : हम बड़े पराक्रमी और प्रखर योद्धा हैं और मामला आपके हवाले है, सो देखे लें आप क्या आदेश देती हैं।

सूरह का नाम : An-Naml   सूरह नंबर : 27   आयत नंबर: 33

قَالَتۡ إِنَّ ٱلۡمُلُوكَ إِذَا دَخَلُواْ قَرۡيَةً أَفۡسَدُوهَا وَجَعَلُوٓاْ أَعِزَّةَ أَهۡلِهَآ أَذِلَّةٗۚ وَكَذَٰلِكَ يَفۡعَلُونَ

उसने कहा : निःसंदेह राजा जब किसी बस्ती में प्रवेश करते हैं, तो उसे ख़राब कर देते हैं और उसके वासियों में से प्रतिष्ठित लोगों को अपमानित कर देते हैं। और इसी तरह ये करेंगे।

सूरह का नाम : An-Naml   सूरह नंबर : 27   आयत नंबर: 34

وَإِنِّي مُرۡسِلَةٌ إِلَيۡهِم بِهَدِيَّةٖ فَنَاظِرَةُۢ بِمَ يَرۡجِعُ ٱلۡمُرۡسَلُونَ

और निःसंदेह मैं उनकी ओर एक उपहार भेजने वाली हूँ। फिर देखती हूँ कि दूत क्या उत्तर लेकर आते हैं?

सूरह का नाम : An-Naml   सूरह नंबर : 27   आयत नंबर: 35

فَلَمَّا جَآءَ سُلَيۡمَٰنَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٖ فَمَآ ءَاتَىٰنِۦَ ٱللَّهُ خَيۡرٞ مِّمَّآ ءَاتَىٰكُمۚ بَلۡ أَنتُم بِهَدِيَّتِكُمۡ تَفۡرَحُونَ

तो जब वह (दूत) सुलैमान के पास आया, तो उसने कहा : क्या तुम धन से मेरी सहायता करते हो? तो जो कुछ अल्लाह ने मुझे दिया है, वह उससे बेहतर है जो उसने तुम्हें दिया है, बल्कि तुम ही लोग अपने उपहारों पर खुश होते हो।

सूरह का नाम : An-Naml   सूरह नंबर : 27   आयत नंबर: 36

ٱرۡجِعۡ إِلَيۡهِمۡ فَلَنَأۡتِيَنَّهُم بِجُنُودٖ لَّا قِبَلَ لَهُم بِهَا وَلَنُخۡرِجَنَّهُم مِّنۡهَآ أَذِلَّةٗ وَهُمۡ صَٰغِرُونَ

उनके पास वापस जाओ, अब हम अवश्य उनके पास ऐसी सेनाएँ लेकर आएँगे, जिनका वे सामना नहीं कर सकेंगे और हम अवश्य उन्हें उस (बस्ती) से इस तरह अपमानित करके निकाल देंगे कि वे तुच्छ होंगे।

सूरह का नाम : An-Naml   सूरह नंबर : 27   आयत नंबर: 37

قَالَ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلۡمَلَؤُاْ أَيُّكُمۡ يَأۡتِينِي بِعَرۡشِهَا قَبۡلَ أَن يَأۡتُونِي مُسۡلِمِينَ

(सुलैमान ने) कहा : ऐ प्रमुखो! तुममें से कौन उसका सिंहासन मेरे पास लेकर आएगा[5], इससे पहले कि वे आज्ञाकारी होकर मेरे पास आएँ।

तफ़्सीर:

5. जब सुलैमान ने उपहार वापस कर दिया और धमकी दी, तो रानी ने स्वयं सुलैमान (अलैहिस्सलाम) की सेवा में उपस्थित होना उचित समझा और अपने सेवकों के साथ फ़लस्तीन के लिए प्रस्थान किया, उस समय उन्होंने राज्यसदस्यों से यह बात कही।

सूरह का नाम : An-Naml   सूरह नंबर : 27   आयत नंबर: 38

قَالَ عِفۡرِيتٞ مِّنَ ٱلۡجِنِّ أَنَا۠ ءَاتِيكَ بِهِۦ قَبۡلَ أَن تَقُومَ مِن مَّقَامِكَۖ وَإِنِّي عَلَيۡهِ لَقَوِيٌّ أَمِينٞ

जिन्नों में से एक शक्तिशाली शरारती कहने लगा : मैं उसे आपके पास ले आऊँगा, इससे पूर्व कि आप अपने स्थान से उठें और निःसंदेह मैं इसकी निश्चय पूरी शक्ति रखने वाला, अमानतदार हूँ।

सूरह का नाम : An-Naml   सूरह नंबर : 27   आयत नंबर: 39

قَالَ ٱلَّذِي عِندَهُۥ عِلۡمٞ مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ أَنَا۠ ءَاتِيكَ بِهِۦ قَبۡلَ أَن يَرۡتَدَّ إِلَيۡكَ طَرۡفُكَۚ فَلَمَّا رَءَاهُ مُسۡتَقِرًّا عِندَهُۥ قَالَ هَٰذَا مِن فَضۡلِ رَبِّي لِيَبۡلُوَنِيٓ ءَأَشۡكُرُ أَمۡ أَكۡفُرُۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشۡكُرُ لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيّٞ كَرِيمٞ

जिसके पास पुस्तक का ज्ञान था, उसने कहा : मैं उसे आपके पास इससे पहले ले आता हूँ कि आपकी पलक झपके। और जब उसने उसे अपने पास रखा हुआ देखा, तो कहा : यह मेरे पालनहार का अनुग्रह है, ताकि मेरी परीक्षा ले कि मैं शुक्र अदा करता हूँ या नाशुक्री करता हूँ। और जिसने शुक्र किया, तो वह अपने ही लिए शुक्र करता है तथा जिसने नाशुक्री की, तो निश्चय मेरा पालनहार बहुत बेनियाज़, अत्यंत उदार है।

सूरह का नाम : An-Naml   सूरह नंबर : 27   आयत नंबर: 40

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