कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

ٱلَّذِينَ يَتَرَبَّصُونَ بِكُمۡ فَإِن كَانَ لَكُمۡ فَتۡحٞ مِّنَ ٱللَّهِ قَالُوٓاْ أَلَمۡ نَكُن مَّعَكُمۡ وَإِن كَانَ لِلۡكَٰفِرِينَ نَصِيبٞ قَالُوٓاْ أَلَمۡ نَسۡتَحۡوِذۡ عَلَيۡكُمۡ وَنَمۡنَعۡكُم مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۚ فَٱللَّهُ يَحۡكُمُ بَيۡنَكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَلَن يَجۡعَلَ ٱللَّهُ لِلۡكَٰفِرِينَ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ سَبِيلًا

जो तुम्हारी (अच्छी या बुरी स्थिति की) प्रतीक्षा में रहते हैं; यदि अल्लाह की ओर से तुम्हें विजय प्राप्त हो, तो वे कहते हैं : क्या हम तुम्हारे साथ न थे? और यदि काफ़िरों को कोई भाग प्राप्त हो, तो (उनसे) कहते हैं : क्या हम तुम्हारी मदद के लिए खड़े नहीं हुए थे और तुम्हें ईमान वालों से बचाया नहीं था? अतः अल्लाह क़ियामत के दिन तुम्हारे बीच निर्णय करेगा और अल्लाह काफ़िरों के लिए ईमान वालों पर हरगिज़ कोई रास्ता नहीं बनाएगा।[91]

तफ़्सीर:

91. अर्थात मुनाफ़िक़, काफ़िरों की कितनी ही सहायता करें, उनकी ईमान वालों पर स्थायी विजय नहीं होगी। यहाँ से मुनाफ़िक़ों के आचरण और स्वभाव की चर्चा की जा रही है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 141

إِنَّ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ يُخَٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَهُوَ خَٰدِعُهُمۡ وَإِذَا قَامُوٓاْ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ قَامُواْ كُسَالَىٰ يُرَآءُونَ ٱلنَّاسَ وَلَا يَذۡكُرُونَ ٱللَّهَ إِلَّا قَلِيلٗا

निःसंदेह मुनाफ़िक़ लोग अल्लाह को धोखा दे रहे हैं, हालाँकि उसी ने उन्हें धोखे में डाल रखा[92] है। और जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं, तो आलसी होकर खड़े होते हैं। वे लोगों के सामने दिखावा करते हैं और अल्लाह को बहुत कम ही याद करते हैं।

तफ़्सीर:

92. अर्थात उन्हें अवसर दे रहा है, जिसे वे अपनी सफलता समझते हैं। आयत 139 से यहाँ तक मुनाफ़िक़ों के कर्म और आचरण से संबंधित जो बातें बताई गई हैं, वे चार हैे : 1-वे मुसलमानों की सफलता पर विश्वास नहीं रखते। 2- मुसलमानों को सफलता मिले, तो उनके साथ हो जाते हैं और काफ़िरों को मिले, तो उनके साथ। 3- नमाज़ मन से नहीं, बल्कि केवल दिखाने के लिए पढ़ते हैं। 4- वे ईमान और कुफ़्र के बीच असमंजस में रहते हैं।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 142

مُّذَبۡذَبِينَ بَيۡنَ ذَٰلِكَ لَآ إِلَىٰ هَـٰٓؤُلَآءِ وَلَآ إِلَىٰ هَـٰٓؤُلَآءِۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ سَبِيلٗا

वे कुफ़्र और ईमान के बीच असमंजस में पड़े हुए हैं, न इनके साथ और न उनके साथ। दरअसल, जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, आप उसके लिए हरगिज़ कोई रास्ता नहीं पाएँगे।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 143

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَتَّخِذُواْ ٱلۡكَٰفِرِينَ أَوۡلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۚ أَتُرِيدُونَ أَن تَجۡعَلُواْ لِلَّهِ عَلَيۡكُمۡ سُلۡطَٰنٗا مُّبِينًا

ऐ ईमान वालो! मोमिनों को छोड़कर काफ़िरों को मित्र न बनाओ। क्या तुम अपने विरुद्ध अल्लाह को खुला तर्क देना चाहते हो?

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 144

إِنَّ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ فِي ٱلدَّرۡكِ ٱلۡأَسۡفَلِ مِنَ ٱلنَّارِ وَلَن تَجِدَ لَهُمۡ نَصِيرًا

निश्चय ही मुनाफ़िक़ लोग नरक के सबसे निचले स्थान में होंगे और तुम उनका हरगिज़ कोई सहायक नहीं पाओगे।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 145

إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُواْ وَأَصۡلَحُواْ وَٱعۡتَصَمُواْ بِٱللَّهِ وَأَخۡلَصُواْ دِينَهُمۡ لِلَّهِ فَأُوْلَـٰٓئِكَ مَعَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۖ وَسَوۡفَ يُؤۡتِ ٱللَّهُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ أَجۡرًا عَظِيمٗا

परन्तु जिन लोगों ने पश्चाताप कर लिया, और अपना सुधार कर लिया, और अल्लाह (के धर्म) को मज़बूती से थाम लिया और अपने धर्म को अल्लाह के लिए विशिष्ट कर दिया, तो वही लोग ईमान वालों के साथ होंगे और अल्लाह ईमान वालों को बहुत बड़ा बदला प्रदान करेगा।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 146

مَّا يَفۡعَلُ ٱللَّهُ بِعَذَابِكُمۡ إِن شَكَرۡتُمۡ وَءَامَنتُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ شَاكِرًا عَلِيمٗا

अल्लाह तुम्हें यातना देकर क्या करेगा, यदि तुम आभारी बनो और ईमान लाओ। और अल्लाह बड़ा क़द्रदान (गुणग्राहक) सब कुछ जानने वाला है।[93]

तफ़्सीर:

93. इस आयत में यह संकेत है कि अल्लाह, अच्छा फल या बुरा फल मानव कर्म के परिणाम स्वरूप देता है। जो उसके निर्धारित किए हुए नियम का परिणाम होता है। जिस प्रकार संसार की प्रत्येक चीज़ का एक प्रभाव होता है, ऐसे ही मानव के प्रत्येक कर्म का भी एक प्रभाव होता है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 147

۞لَّا يُحِبُّ ٱللَّهُ ٱلۡجَهۡرَ بِٱلسُّوٓءِ مِنَ ٱلۡقَوۡلِ إِلَّا مَن ظُلِمَۚ وَكَانَ ٱللَّهُ سَمِيعًا عَلِيمًا

अल्लाह बुरी बात के साथ आवाज़ ऊँची करना पसंद नहीं करता, परंतु जिसपर अत्याचार किया गया[94] हो (उसके लिए अनुमेय है)। और अल्लाह हमेशा से सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।

तफ़्सीर:

94. आयत में कहा गया है कि किसी व्यक्ति में कोई बुराई हो, तो उसकी चर्चा न करते फिरो। परंतु उत्पीड़ित व्यक्ति अत्याचारी के अत्याचार की चर्चा कर सकता है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 148

إِن تُبۡدُواْ خَيۡرًا أَوۡ تُخۡفُوهُ أَوۡ تَعۡفُواْ عَن سُوٓءٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوّٗا قَدِيرًا

यदि तुम कोई नेकी प्रकट करो या उसे छिपाओ, या किसी बुराई को क्षमा कर दो, तो निःसंदेह अल्लाह हमेशा से बहुत माफ़ करने वाला, सर्वशक्तिमान है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 149

إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡفُرُونَ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيُرِيدُونَ أَن يُفَرِّقُواْ بَيۡنَ ٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيَقُولُونَ نُؤۡمِنُ بِبَعۡضٖ وَنَكۡفُرُ بِبَعۡضٖ وَيُرِيدُونَ أَن يَتَّخِذُواْ بَيۡنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًا

निःसंदेह जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों के साथ कुफ़्र करते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह तथा उसके रसूलों के बीच अंतर करें तथा कहते हैं कि हम कुछ पर ईमान रखते हैं और कुछ का इनकार करते हैं और चाहते हैं कि इसके बीच कोई राह[95] अपनाएँ।

तफ़्सीर:

95. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ह़दीस है कि सब नबी भाई हैं, उनके बाप एक और माएँ अलग-लग हैं। सब का धर्म एक है, और हमारे बीच कोई नबी नहीं है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3443)

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 150

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