कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَأَخۡذِهِمُ ٱلرِّبَوٰاْ وَقَدۡ نُهُواْ عَنۡهُ وَأَكۡلِهِمۡ أَمۡوَٰلَ ٱلنَّاسِ بِٱلۡبَٰطِلِۚ وَأَعۡتَدۡنَا لِلۡكَٰفِرِينَ مِنۡهُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا

तथा उनके ब्याज लेने के कारण, जबकि निश्चय उन्हें इससे रोका गया था और उनके लोगों का धन अवैध रूप से खाने के कारण। तथा हमने उनमें से काफ़िरों के लिए दर्दनाक यातना तैयार कर रखी है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 161

لَّـٰكِنِ ٱلرَّـٰسِخُونَ فِي ٱلۡعِلۡمِ مِنۡهُمۡ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ يُؤۡمِنُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبۡلِكَۚ وَٱلۡمُقِيمِينَ ٱلصَّلَوٰةَۚ وَٱلۡمُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ أُوْلَـٰٓئِكَ سَنُؤۡتِيهِمۡ أَجۡرًا عَظِيمًا

परंतु उन (यहूदियों) में से जो लोग ज्ञान में पक्के हैं और जो ईमान वाले हैं, वे उस (क़ुरआन) पर ईमान लाते हैं जो आपपर उतारा गया और जो आपसे पहले उतारा गया, और जो विशेषकर नमाज़ क़ायम करने वाले हैं, और जो ज़कात देने वाले और अल्लाह तथा अंतिम दिन पर ईमान लाने वाले हैं। ये लोग हैं जिन्हें हम बहुत बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 162

۞إِنَّآ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ كَمَآ أَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰ نُوحٖ وَٱلنَّبِيِّـۧنَ مِنۢ بَعۡدِهِۦۚ وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطِ وَعِيسَىٰ وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَٰرُونَ وَسُلَيۡمَٰنَۚ وَءَاتَيۡنَا دَاوُۥدَ زَبُورٗا

(ऐ नबी!) निःसंदेह हमने आपकी ओर वह़्य[100] भेजी, जैसे हमने नूह़ और उसके बाद (दूसरे) नबियों की ओर वह़्य भेजी। और हमने इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़, याक़ूब और उसकी संतान, तथा ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान की ओर वह़्य भेजी और हमने दाऊद को ज़बूर प्रदान की।

तफ़्सीर:

100. वह़्य का अर्थ : संकेत करना, दिल में कोई बात डाल देना, गुप्त रूप से कोई बात कहना तथा संदेश भेजना है। ह़ारिस रज़ियल्लाहु अन्हु ने प्रश्न किया : अल्लाह के रसूल! आप पर वह़्य कैसे आती है? आपने कहा : कभी निरंतर घंटी की ध्वनि जैसे आती है, जो मेरे लिए बहुत भारी होती है। और यह दशा दूर होने पर मुझे सब बात याद रहती है। और कभी फ़रिश्ता मनुष्य के रूप में आकर मुझसे बात करता है, तो मैं उसे याद कर लेता हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारी : 2, मुस्लिम : 2333)

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 163

وَرُسُلٗا قَدۡ قَصَصۡنَٰهُمۡ عَلَيۡكَ مِن قَبۡلُ وَرُسُلٗا لَّمۡ نَقۡصُصۡهُمۡ عَلَيۡكَۚ وَكَلَّمَ ٱللَّهُ مُوسَىٰ تَكۡلِيمٗا

और (हमने) कुछ रसूल ऐसे (भेजे), जिनके बारे में हम पहले तुम्हें बता चुके हैं, और कुछ रसूल ऐसे (भेजे), जिनके बारे में हमने तुम्हें कुछ नहीं बताया। और अल्लाह ने मूसा से वास्तव में बात की।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 164

رُّسُلٗا مُّبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى ٱللَّهِ حُجَّةُۢ بَعۡدَ ٱلرُّسُلِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمٗا

ऐसे रसूल जो शुभ सूचना सुनाने वाले और डराने वाले थे। ताकि लोगों के पास रसूलों के बाद अल्लाह के मुक़ाबले में कोई तर्क न रह[101] जाए। और अल्लाह सदा से सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।

तफ़्सीर:

101. अर्थात कोई अल्लाह के सामने यह न कह सके कि हमें मार्गदर्शन देने के लिए कोई नहीं आया।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 165

لَّـٰكِنِ ٱللَّهُ يَشۡهَدُ بِمَآ أَنزَلَ إِلَيۡكَۖ أَنزَلَهُۥ بِعِلۡمِهِۦۖ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ يَشۡهَدُونَۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًا

परंतु अल्लाह गवाही देता है उस (क़ुरआन) के संबंध में, जो उसने आपकी ओर उतारा है कि उसने उसे अपने ज्ञान के साथ उतारा है तथा फ़रिश्ते गवाही देते हैं। और अल्लाह गवाही देने वाला काफ़ी है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 166

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ قَدۡ ضَلُّواْ ضَلَٰلَۢا بَعِيدًا

निःसंदेह जिन लोगों ने कुफ़्र किया और अल्लाह की राह[102] से रोका, निश्चय वे गुमराह होकर बहुत दूर जा पड़े।

तफ़्सीर:

102. अर्थात इस्लाम से रोका।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 167

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَظَلَمُواْ لَمۡ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغۡفِرَ لَهُمۡ وَلَا لِيَهۡدِيَهُمۡ طَرِيقًا

निःसंदेह जिन लोगों ने कुफ़्र किया और अत्याचार किया, अल्लाह कभी ऐसा नहीं कि उन्हें क्षमा कर दे और न यह कि उन्हें कोई राह दिखा दे।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 168

إِلَّا طَرِيقَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٗا

सिवाय जहन्नम के मार्ग के, जिसमें वे सदा-सर्वदा रहने वाले हैं और यह सदा से अल्लाह के लिए बहुत आसान है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 169

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدۡ جَآءَكُمُ ٱلرَّسُولُ بِٱلۡحَقِّ مِن رَّبِّكُمۡ فَـَٔامِنُواْ خَيۡرٗا لَّكُمۡۚ وَإِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا

ऐ लोगो! निःसंदेह तुम्हारे पास यह रसूल सत्य के साथ[103] तुम्हारे पालनहार की ओर से आए हैं। अतः तुम ईमान ले आओ, तुम्हारे लिए बेहतर होगा। तथा यदि इनकार करो, तो (याद रखो कि) निःसंदेह अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों और धरती में है और अल्लाह सदा से सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।

तफ़्सीर:

103. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस्लाम धर्म लेकर आ गए। यहाँ पर यह बात विचारणीय है कि क़ुरआन ने किसी जाति अथवा देशवासी को संबोधित नहीं किया है। वह कहता है कि आप पूरे मानवजाति के नबी हैं। तथा इस्लाम और क़ुरआन पूरे मानवजाति के लिए सत्धर्म है, जो उस अल्लाह का भेजा हुआ सत्धर्म है, जिसकी आज्ञा के अधीन यह पूरा विश्व है। अतः तुम भी उसकी आज्ञा के अधीन हो जाओ।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 170

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