कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَكَيۡفَ تَأۡخُذُونَهُۥ وَقَدۡ أَفۡضَىٰ بَعۡضُكُمۡ إِلَىٰ بَعۡضٖ وَأَخَذۡنَ مِنكُم مِّيثَٰقًا غَلِيظٗا

तथा तुम उसे कैसे ले सकते हो, जबकि तुम एक-दूसरे से मिलन कर चुके हो और वे तुमसे (विवाह के समय) दृढ़ वचन (भी) ले चुकी हैं।

وَلَا تَنكِحُواْ مَا نَكَحَ ءَابَآؤُكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ إِلَّا مَا قَدۡ سَلَفَۚ إِنَّهُۥ كَانَ فَٰحِشَةٗ وَمَقۡتٗا وَسَآءَ سَبِيلًا

और उन स्त्रियों से विवाह[17] न करो, जिनसे तुम्हारे पिताओं ने विवाह किया हो, परंतु जो पहले हो चुका[18] (सो हो चुका)। वास्तव में, यह निर्लज्जता तथा क्रोध की बात और बुरी रीति है।

حُرِّمَتۡ عَلَيۡكُمۡ أُمَّهَٰتُكُمۡ وَبَنَاتُكُمۡ وَأَخَوَٰتُكُمۡ وَعَمَّـٰتُكُمۡ وَخَٰلَٰتُكُمۡ وَبَنَاتُ ٱلۡأَخِ وَبَنَاتُ ٱلۡأُخۡتِ وَأُمَّهَٰتُكُمُ ٱلَّـٰتِيٓ أَرۡضَعۡنَكُمۡ وَأَخَوَٰتُكُم مِّنَ ٱلرَّضَٰعَةِ وَأُمَّهَٰتُ نِسَآئِكُمۡ وَرَبَـٰٓئِبُكُمُ ٱلَّـٰتِي فِي حُجُورِكُم مِّن نِّسَآئِكُمُ ٱلَّـٰتِي دَخَلۡتُم بِهِنَّ فَإِن لَّمۡ تَكُونُواْ دَخَلۡتُم بِهِنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ وَحَلَـٰٓئِلُ أَبۡنَآئِكُمُ ٱلَّذِينَ مِنۡ أَصۡلَٰبِكُمۡ وَأَن تَجۡمَعُواْ بَيۡنَ ٱلۡأُخۡتَيۡنِ إِلَّا مَا قَدۡ سَلَفَۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا

तुमपर हराम[19] (निषिद्ध) कर दी गई हैं; तुम्हारी माताएँ, तुम्हारी बेटियाँ, तुम्हारी बहनें, तुम्हारी फूफियाँ, तुम्हारी मौसियाँ (खालाएँ) और भतीजियाँ, भाँजियाँ, तुम्हारी वे माताएँ जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया है, दूध के रिश्ते से तुम्हारी बहनें, तुम्हारी पत्नियों की माताएँ (सासें) , तुम्हारी गोद में पालित-पोषित तुम्हारी उन पत्नियों की बेटियाँ जिनसे तुम संभोग कर चुके हो। यदि तुमने उनसे संभोग न किया हो, तो तुमपर (उनकी बेटियों से विवाह करने में) कोई गुनाह नहीं, और तुम्हारे सगे बेटों की पत्नियाँ और यह कि तुम दो बहनों को (निकाह में) एकत्रित करो, परंतु जो (अज्ञानता के काल में) बीत चुका[20], (सो बीत चुका)। निःसंदेह अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, असीम दयावान है।

۞وَٱلۡمُحۡصَنَٰتُ مِنَ ٱلنِّسَآءِ إِلَّا مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡۖ كِتَٰبَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡۚ وَأُحِلَّ لَكُم مَّا وَرَآءَ ذَٰلِكُمۡ أَن تَبۡتَغُواْ بِأَمۡوَٰلِكُم مُّحۡصِنِينَ غَيۡرَ مُسَٰفِحِينَۚ فَمَا ٱسۡتَمۡتَعۡتُم بِهِۦ مِنۡهُنَّ فَـَٔاتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ فَرِيضَةٗۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ فِيمَا تَرَٰضَيۡتُم بِهِۦ مِنۢ بَعۡدِ ٱلۡفَرِيضَةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمٗا

तथा उन स्त्रियों से (विवाह करना हराम है), जो दूसरों के निकाह़ में हों, सिवाय तुम्हारी दासियों[21] के। यह अल्लाह ने तुम्हारे लिए अनिवार्य कर दिया[22] है। और इनके सिवा दूसरी स्त्रियाँ तुम्हारे लिए ह़लाल कर दी गई हैं कि तुम अपना धन (महर) खर्च करके उनसे विवाह कर लो (बशर्ते कि तुम्हारा उद्देश्य) सतीत्व की रक्षा हो, अवैध तरीके से काम वासना की तृप्ति न हो। फिर उन औरतों में से जिनसे तुम लाभ उठाओ, उन्हें उनका महर अवश्य चुका दो। तथा यदि महर निर्धारित करने के बाद आपसी सहमति (से कोई कमी-बेशी) कर लो, तो तुमपर कोई गुनाह नहीं है। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।

وَمَن لَّمۡ يَسۡتَطِعۡ مِنكُمۡ طَوۡلًا أَن يَنكِحَ ٱلۡمُحۡصَنَٰتِ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ فَمِن مَّا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُم مِّن فَتَيَٰتِكُمُ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتِۚ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِإِيمَٰنِكُمۚ بَعۡضُكُم مِّنۢ بَعۡضٖۚ فَٱنكِحُوهُنَّ بِإِذۡنِ أَهۡلِهِنَّ وَءَاتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِ مُحۡصَنَٰتٍ غَيۡرَ مُسَٰفِحَٰتٖ وَلَا مُتَّخِذَٰتِ أَخۡدَانٖۚ فَإِذَآ أُحۡصِنَّ فَإِنۡ أَتَيۡنَ بِفَٰحِشَةٖ فَعَلَيۡهِنَّ نِصۡفُ مَا عَلَى ٱلۡمُحۡصَنَٰتِ مِنَ ٱلۡعَذَابِۚ ذَٰلِكَ لِمَنۡ خَشِيَ ٱلۡعَنَتَ مِنكُمۡۚ وَأَن تَصۡبِرُواْ خَيۡرٞ لَّكُمۡۗ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ

और तुममें से जो व्यक्ति ईमान वाली आज़ाद स्त्रियों से विवाह करने की क्षमता न रखे, वह तुम्हारे हाथों में आई हुई तुम्हारी ईमान वाली दासियों से विवाह कर ले। अल्लाह तुम्हारे ईमान को भली-भाँति जानता है। तुम सब परस्पर एक ही हो।[23] अतः तुम उनके मालिकों की अनुमति से उन (दासियों) से विवाह कर लो और नियमानुसार उन्हें उनका महर चुका दो। जबकि वे सतीत्व की रक्षा करने वाली हों, खुल्लम खुल्ला व्यभिचार करने वाली न हों, तथा गुप्त रूप से व्यभिचार के लिए मित्र रखने वाली न हों। फिर यदि वे विवाहित हो जाने के बाद व्यभिचार करें, तो उनपर आज़ाद स्त्रियों का आधा[24] दंड है। यह (दासियों से विवाह की अनुमति) तुममें से उसके लिए है, जिसे व्यभिचार में पड़ने का डर हो, और तुम्हारा धैर्य से काम लेना तुम्हारे लिए बेहतर है और अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, बड़ा दयावान् है।

يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُبَيِّنَ لَكُمۡ وَيَهۡدِيَكُمۡ سُنَنَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُمۡ وَيَتُوبَ عَلَيۡكُمۡۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٞ

अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे लिए स्पष्ट कर दे और तुम्हें उन लोगों के तरीक़ों का मार्गदर्शन करे जो तुमसे पहले हुए हैं और तुम्हारी तौबा क़बूल करे। अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हिकमत वाला है।

وَٱللَّهُ يُرِيدُ أَن يَتُوبَ عَلَيۡكُمۡ وَيُرِيدُ ٱلَّذِينَ يَتَّبِعُونَ ٱلشَّهَوَٰتِ أَن تَمِيلُواْ مَيۡلًا عَظِيمٗا

और अल्लाह तो यह चाहता है कि तुम्हारी तौबा क़बूल करे तथा जो लोग इच्छाओं के पीछे पड़े हुए हैं, वे चाहते हैं कि तुम (हिदायत के मार्ग से) बहुत दूर हट[25] जाओ।

يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُخَفِّفَ عَنكُمۡۚ وَخُلِقَ ٱلۡإِنسَٰنُ ضَعِيفٗا

अल्लाह चाहता है कि तुम्हारा बोझ हल्का[26] कर दे तथा मानव कमज़ोर पैदा किया गया है।

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَأۡكُلُوٓاْ أَمۡوَٰلَكُم بَيۡنَكُم بِٱلۡبَٰطِلِ إِلَّآ أَن تَكُونَ تِجَٰرَةً عَن تَرَاضٖ مِّنكُمۡۚ وَلَا تَقۡتُلُوٓاْ أَنفُسَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُمۡ رَحِيمٗا

ऐ ईमान वालो! आपस में एक-दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ, सिवाय इसके कि वह तुम्हारी आपसी सहमति से कोई व्यापार हो। तथा अपने आपको क़त्ल[27] न करो। निःसंदेह अल्लाह तुमपर अति दयावान् है।

وَمَن يَفۡعَلۡ ذَٰلِكَ عُدۡوَٰنٗا وَظُلۡمٗا فَسَوۡفَ نُصۡلِيهِ نَارٗاۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًا

और जो ज़ुल्म और ज़्यादती से ऐसा करेगा, तो शीघ्र ही हम उसे आग में झोंक देंगे और यह अल्लाह के लिए सरल है।

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