कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

فَكَيۡفَ إِذَا جِئۡنَا مِن كُلِّ أُمَّةِۭ بِشَهِيدٖ وَجِئۡنَا بِكَ عَلَىٰ هَـٰٓؤُلَآءِ شَهِيدٗا

तो उस समय क्या हाल होगा, जब हम प्रत्येक उम्मत (समुदाय) से एक गवाह लाएँगे और (ऐ नबी!) हम आपको इनपर गवाह (बनाकर) लाएँगे?[32]

तफ़्सीर:

32. आयत का भावार्थ यह है कि प्रलय के दिन अल्लाह प्रत्येक समुदाय के रसूल को उनके कर्म का साक्षी बनाएगा। इस प्रकार मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भी अपने समुदाय पर साक्षी बनाएगा। तथा सब रसूलों पर कि उन्होंने अपने पालनहार का संदेश पहुँचाया है। (इब्ने कसीर)

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 41

يَوۡمَئِذٖ يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَعَصَوُاْ ٱلرَّسُولَ لَوۡ تُسَوَّىٰ بِهِمُ ٱلۡأَرۡضُ وَلَا يَكۡتُمُونَ ٱللَّهَ حَدِيثٗا

उस दिन, काफ़िर तथा रसूल की अवज्ञा करने वाले यह कामना करेंगे कि काश! उनके सहित धरती बराबर[33] कर दी जाती! और वे अल्लाह से कोई बात छिपा नहीं सकेंगे।

तफ़्सीर:

33. अर्थात भूमि में धँस जाएँ और उनके ऊपर से भूमि बराबर हो जाए, या वे मिट्टी हो जाएँ।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 42

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَقۡرَبُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنتُمۡ سُكَٰرَىٰ حَتَّىٰ تَعۡلَمُواْ مَا تَقُولُونَ وَلَا جُنُبًا إِلَّا عَابِرِي سَبِيلٍ حَتَّىٰ تَغۡتَسِلُواْۚ وَإِن كُنتُم مَّرۡضَىٰٓ أَوۡ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوۡ جَآءَ أَحَدٞ مِّنكُم مِّنَ ٱلۡغَآئِطِ أَوۡ لَٰمَسۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَلَمۡ تَجِدُواْ مَآءٗ فَتَيَمَّمُواْ صَعِيدٗا طَيِّبٗا فَٱمۡسَحُواْ بِوُجُوهِكُمۡ وَأَيۡدِيكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورًا

ऐ ईमान वालो! जब तुम नशे[34] (की हालत) में हो, तो नमाज़ के क़रीब न जाओ, यहाँ तक कि जो कुछ ज़बान से कह रहे हो, उसे (ठीक) से समझने लगो और न जनाबत[35] की हालत में, (मस्जिदों के क़रीब जाओ) यहाँ तक कि स्नान कर लो। परंतु रास्ता पार करते हुए (चले जाओ, तो कोई बात नहीं)। यदि तुम बीमार हो अथवा यात्रा में हो या तुममें से कोई शौच से आए या तुमने स्त्रियों से सहवास किया हो, फिर पानी न पा सको, तो पवित्र मिट्टी से तयम्मुम[36] कर लो; उसे अपने चेहरे तथा हाथों पर फेर लो। निःसंदेह अल्लाह माफ करने वाला और क्षमा करने वाला है।

तफ़्सीर:

34. यह आदेश इस्लाम के आरंभिक युग का है, जब मदिरा को वर्जित नहीं किया गया था। (इब्ने कसीर) 35. जनाबत का अर्थ वीर्यपात के कारण मलिन तथा अपवित्र होना है। 36. अर्थात यदि जल का अभाव हो, अथवा रोग के कारण जल प्रयोग हानिकारक हो, तो वुजू तथा स्नान के स्थान पर तयम्मुम कर लो।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 43

أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُواْ نَصِيبٗا مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ يَشۡتَرُونَ ٱلضَّلَٰلَةَ وَيُرِيدُونَ أَن تَضِلُّواْ ٱلسَّبِيلَ

क्या आपने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें पुस्तक[37] का कुछ भाग दिया गया है कि वे गुमराही ख़रीद रहे हैं तथा चाहते हैं कि तुम भी सीधे मार्ग से भटक जाओ।

तफ़्सीर:

37. अर्थात अह्ले किताब, जिनको तौरात का ज्ञान दिया गया। भावार्थ यह है कि उनकी दशा से शिक्षा ग्रहण करो। उन्हीं के समान सत्य से विचलित न हो जाओ।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 44

وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِأَعۡدَآئِكُمۡۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَلِيّٗا وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ نَصِيرٗا

तथा अल्लाह तुम्हारे शत्रुओं को अच्छी तरह जानता है और (तुम्हारे लिए) अल्लाह की रक्षा तथा उसकी सहायता काफ़ी है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 45

مِّنَ ٱلَّذِينَ هَادُواْ يُحَرِّفُونَ ٱلۡكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِۦ وَيَقُولُونَ سَمِعۡنَا وَعَصَيۡنَا وَٱسۡمَعۡ غَيۡرَ مُسۡمَعٖ وَرَٰعِنَا لَيَّۢا بِأَلۡسِنَتِهِمۡ وَطَعۡنٗا فِي ٱلدِّينِۚ وَلَوۡ أَنَّهُمۡ قَالُواْ سَمِعۡنَا وَأَطَعۡنَا وَٱسۡمَعۡ وَٱنظُرۡنَا لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡ وَأَقۡوَمَ وَلَٰكِن لَّعَنَهُمُ ٱللَّهُ بِكُفۡرِهِمۡ فَلَا يُؤۡمِنُونَ إِلَّا قَلِيلٗا

(ऐ नबी!) यहूदियों में से कुछ लोग ऐसे हैं, जो शब्दों को उनके (वास्तविक) स्थानों से फेर देते हैं और (आपसे) कहते हैं कि "हमने सुन लिया तथा (आपकी) अवज्ञा की" और "आप सुनिए, आप सुनाए न जाएँ!" तथा अपनी ज़ुबानें मोड़कर और सत्य धर्म पर लांक्षन लगाते हुए "राइना" कहते हैं। हालाँकि, यदि वे "हमने सुन लिया और आज्ञा का पालन किया" तथा "आप सुनिए और हमें देखिए" कहते, तो उनके लिए उत्तम तथा अधिक न्यायसंगत होता। परन्तु, अल्लाह ने उनके कुफ़्र के कारण उन्हें धिक्कार दिया है। अतः वे बहुत कम ईमान लाते हैं।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 46

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ ءَامِنُواْ بِمَا نَزَّلۡنَا مُصَدِّقٗا لِّمَا مَعَكُم مِّن قَبۡلِ أَن نَّطۡمِسَ وُجُوهٗا فَنَرُدَّهَا عَلَىٰٓ أَدۡبَارِهَآ أَوۡ نَلۡعَنَهُمۡ كَمَا لَعَنَّآ أَصۡحَٰبَ ٱلسَّبۡتِۚ وَكَانَ أَمۡرُ ٱللَّهِ مَفۡعُولًا

ऐ किताब वालो! उस (क़ुरआन) पर ईमान लाओ, जिसे हमने उन (पुस्तकों) की पुष्टि करने वाला बनाकर उतारा है, जो तुम्हारे पास मौजूद हैं, इससे पहले कि हम (लोगों के) चेहरे बिगाड़कर उलटा कर दें अथवा उन्हें वैसे ही धिक्कारें,[38] जैसे शनिवार वालों को धिक्कारा था। और अल्लाह का आदेश पूरा होकर रहने वाला है।

तफ़्सीर:

38. मदीने के यहूदियों का यह दुर्भाग्य था कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मिलते, तो द्विअर्थक तथा संदिग्ध शब्द बोलकर दिल की भड़ास निकालते, उसी पर उन्हें यह चेतावनी दी जा रही है। शनिवार वाले, अर्थात जिन को शनिवार के दिन शिकार से रोका गया था। और जब वे नहीं माने, तो उन्हें बंदर बना दिया गया।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 47

إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغۡفِرُ أَن يُشۡرَكَ بِهِۦ وَيَغۡفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُۚ وَمَن يُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱفۡتَرَىٰٓ إِثۡمًا عَظِيمًا

निःसंदेह, अल्लाह यह क्षमा नहीं करेगा कि उसका साझी बनाया जाए[39] और इसके सिवा जिसे चाहेगा, क्षमा कर देगा। और जिसने अल्लाह का साझी बनाया, उसने बहुत बड़ा पाप गढ़ लिया।

तफ़्सीर:

39. अर्थात पूजा, अराधना तथा अल्लाह के विशिष्ट गुणों-कर्मों में किसी वस्तु या व्यक्ति को साझी बनाना घोर अक्षम्य पाप है, जो सत्धर्म के मूलाधार एकेश्वरवाद के विरुद्ध, और अल्लाह पर मिथ्यारोप है। यहूदियों ने अपने धर्माचार्यों तथा पादरियों के विषय में यह अंधविश्वास बना लिया था कि उनकी बात को धर्म समझ कर उन्हीं का अनुपालन कर रहे थे। और मूल पुस्तकों को त्याग दिया था, क़ुरआन इसी को शिर्क कहता है, वह कहता है कि सभी पाप क्षमा किए जा सकते हैं, परंतु शिर्क के लिए क्षमा नहीं, क्योंकि इससे मूल धर्म की नींव ही हिल जाती है। और मार्गदर्शन का केंद्र ही बदल जाता है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 48

أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يُزَكُّونَ أَنفُسَهُمۚ بَلِ ٱللَّهُ يُزَكِّي مَن يَشَآءُ وَلَا يُظۡلَمُونَ فَتِيلًا

क्या आपने उन्हें नहीं देखा, जो अपने आपको पवित्र कहते हैं? बल्कि अल्लाह ही जिसे चाहे, पवित्र बनाता है और उन पर एक धागे के बराबर भी अत्याचार नहीं किया जाएगा।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 49

ٱنظُرۡ كَيۡفَ يَفۡتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَۖ وَكَفَىٰ بِهِۦٓ إِثۡمٗا مُّبِينًا

देखो तो सही, वे लोग कैसे अल्लाह पर मिथ्या आरोप लगा रहे[40] हैं! और यह खुला पाप होने के लिए पर्याप्त है।

तफ़्सीर:

40. अर्थात अल्लाह का नियम तो यह है कि पवित्रता, ईमान तथा सत्कर्म पर निर्भर है, और ये कहते हैं कि यहूदिय्यत पर है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 50

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