وَإِذَا قِيلَ لَهُمۡ تَعَالَوۡاْ إِلَىٰ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ وَإِلَى ٱلرَّسُولِ رَأَيۡتَ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ يَصُدُّونَ عَنكَ صُدُودٗا
तथा जब उनसे कहा जाता है कि आओ उसकी ओर जो अल्लाह ने उतारा है और (आओ) रसूल की ओर, तो आप मुनाफ़िक़ों को देखेंगे कि वे आप (के पास आने) से कतराते हैं।
सूरह का नाम : An-Nisa सूरह नंबर : 4 आयत नंबर: 61
فَكَيۡفَ إِذَآ أَصَٰبَتۡهُم مُّصِيبَةُۢ بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيهِمۡ ثُمَّ جَآءُوكَ يَحۡلِفُونَ بِٱللَّهِ إِنۡ أَرَدۡنَآ إِلَّآ إِحۡسَٰنٗا وَتَوۡفِيقًا
फिर उस समय उनका क्या हाल होता है जब उनके करतूतों के कारण उनपर कोई आपदा आ पड़ती है, फिर वे आपके पास आकर अल्लाह की क़समें खाते हैं कि हमारा इरादा[45] तो केवल भलाई तथा (आपस में) मेल कराना था।
तफ़्सीर:
45. आयत का भावार्थ यह है कि मुनाफ़िक़ ईमान का दावा तो करते थे, परंतु अपने विवाद चुकाने के लिए इस्लाम के विरोधियों के पास जाते, फिर जब कभी उन की दो रंगी पकड़ी जाती तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आ कर मिथ्या शपथ लेते। और यह कहते कि हम केवल विवाद सुलझाने के लिए उनके पास चले गए थे। (इब्ने कसीर)
सूरह का नाम : An-Nisa सूरह नंबर : 4 आयत नंबर: 62
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ يَعۡلَمُ ٱللَّهُ مَا فِي قُلُوبِهِمۡ فَأَعۡرِضۡ عَنۡهُمۡ وَعِظۡهُمۡ وَقُل لَّهُمۡ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ قَوۡلَۢا بَلِيغٗا
ये वो लोग हैं जिनके दिलों की बातें अल्लाह भली-भाँति जानता है। अतः आप उनकी उपेक्षा करें और उन्हें नसीहत करते रहें और उनसे ऐसी प्रभावकारी बात कहें जो उनके दिलों में उतर जाए।
सूरह का नाम : An-Nisa सूरह नंबर : 4 आयत नंबर: 63
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا مِن رَّسُولٍ إِلَّا لِيُطَاعَ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَلَوۡ أَنَّهُمۡ إِذ ظَّلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ جَآءُوكَ فَٱسۡتَغۡفَرُواْ ٱللَّهَ وَٱسۡتَغۡفَرَ لَهُمُ ٱلرَّسُولُ لَوَجَدُواْ ٱللَّهَ تَوَّابٗا رَّحِيمٗا
और हमने जो भी रसूल भेजा, वह इसलिए (भेजा) कि अल्लाह की अनुमति से उसका आज्ञापालन किया जाए। और यदि वे लोग, जब उन्हों ने अपनी जानों पर अत्याचार किया था, आपके पास आते, फिर अल्लाह से क्षमा याचना करते और रसूल भी उनके लिए क्षमा याचना करते, तो वे अवश्य अल्लाह को बहुत तौबा क़बूल करने वाला, अत्यन्त दयावान पाते।
सूरह का नाम : An-Nisa सूरह नंबर : 4 आयत नंबर: 64
فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤۡمِنُونَ حَتَّىٰ يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيۡنَهُمۡ ثُمَّ لَا يَجِدُواْ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ حَرَجٗا مِّمَّا قَضَيۡتَ وَيُسَلِّمُواْ تَسۡلِيمٗا
तो (ऐ नबी!) आपके पालनहार की क़सम! वे कभी ईमान वाले नहीं हो सकते, जब तक अपने आपस के विवाद में आपको निर्णायक[46] न बनाएँ, फिर आप जो निर्णय कर दें, उससे अपने दिलों में तनिक भी तंगी महसूस न करें और उसे पूरी तरह से स्वीकार कर लें।
तफ़्सीर:
46. यह आदेश आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन में था। तथा आपके निधन के पश्चात् अब आपकी सुन्नत से निर्णय लेना है।
सूरह का नाम : An-Nisa सूरह नंबर : 4 आयत नंबर: 65
وَلَوۡ أَنَّا كَتَبۡنَا عَلَيۡهِمۡ أَنِ ٱقۡتُلُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ أَوِ ٱخۡرُجُواْ مِن دِيَٰرِكُم مَّا فَعَلُوهُ إِلَّا قَلِيلٞ مِّنۡهُمۡۖ وَلَوۡ أَنَّهُمۡ فَعَلُواْ مَا يُوعَظُونَ بِهِۦ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡ وَأَشَدَّ تَثۡبِيتٗا
और यदि हम उनपर[47] अनिवार्य कर देते कि अपने आपको को क़त्ल करो या अपने घरों से निकल जाओ, तो उनमें से कुछ लोगों के सिवा कोई भी ऐसा नहीं करता। और यदि वे लोग उसका पालन करते जिसकी उन्हें नसीहत की जाती है, तो यह उनके लिए बेहतर और (सच्चे रास्ते पर) अधिक दृढ़ता का कारण होता।
तफ़्सीर:
47. अर्थात जो दूसरों से निर्णय कराते हैं।
सूरह का नाम : An-Nisa सूरह नंबर : 4 आयत नंबर: 66
وَإِذٗا لَّأٓتَيۡنَٰهُم مِّن لَّدُنَّآ أَجۡرًا عَظِيمٗا
और तब तो हम अवश्य उन्हें अपने पास से बहुत बड़ा बदला देते।
सूरह का नाम : An-Nisa सूरह नंबर : 4 आयत नंबर: 67
وَلَهَدَيۡنَٰهُمۡ صِرَٰطٗا مُّسۡتَقِيمٗا
तथा हम अवश्य उन्हें सीधा रास्ता दिखाते।
सूरह का नाम : An-Nisa सूरह नंबर : 4 आयत नंबर: 68
وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ فَأُوْلَـٰٓئِكَ مَعَ ٱلَّذِينَ أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِم مِّنَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ وَٱلصِّدِّيقِينَ وَٱلشُّهَدَآءِ وَٱلصَّـٰلِحِينَۚ وَحَسُنَ أُوْلَـٰٓئِكَ رَفِيقٗا
तथा जो भी अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करेगा, वह उन लोगों के साथ होगा, जिन्हें अल्लाह ने पुरस्कृत किया है, अर्थात नबियों, सिद्दीक़ों (सत्यवादियों), शहीदों और सदाचारियों के साथ। और ये लोग सबसे अच्छे साथी हैं।
सूरह का नाम : An-Nisa सूरह नंबर : 4 आयत नंबर: 69
ذَٰلِكَ ٱلۡفَضۡلُ مِنَ ٱللَّهِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ عَلِيمٗا
यह अनुग्रह एवं कृपा अल्लाह की ओर से है और अल्लाह काफी[48] है जानने वाला।
तफ़्सीर:
48. अर्थात अपनी कृपा तथा अनुग्रह के याग्य को जानने के लिए।
सूरह का नाम : An-Nisa सूरह नंबर : 4 आयत नंबर: 70