कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَقُل لِّلۡمُؤۡمِنَٰتِ يَغۡضُضۡنَ مِنۡ أَبۡصَٰرِهِنَّ وَيَحۡفَظۡنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبۡدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنۡهَاۖ وَلۡيَضۡرِبۡنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَىٰ جُيُوبِهِنَّۖ وَلَا يُبۡدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ أَوۡ ءَابَآئِهِنَّ أَوۡ ءَابَآءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوۡ أَبۡنَآئِهِنَّ أَوۡ أَبۡنَآءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوۡ إِخۡوَٰنِهِنَّ أَوۡ بَنِيٓ إِخۡوَٰنِهِنَّ أَوۡ بَنِيٓ أَخَوَٰتِهِنَّ أَوۡ نِسَآئِهِنَّ أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُهُنَّ أَوِ ٱلتَّـٰبِعِينَ غَيۡرِ أُوْلِي ٱلۡإِرۡبَةِ مِنَ ٱلرِّجَالِ أَوِ ٱلطِّفۡلِ ٱلَّذِينَ لَمۡ يَظۡهَرُواْ عَلَىٰ عَوۡرَٰتِ ٱلنِّسَآءِۖ وَلَا يَضۡرِبۡنَ بِأَرۡجُلِهِنَّ لِيُعۡلَمَ مَا يُخۡفِينَ مِن زِينَتِهِنَّۚ وَتُوبُوٓاْ إِلَى ٱللَّهِ جَمِيعًا أَيُّهَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ

और ईमान वाली स्त्रियों से कह दें कि अपनी निगाहें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। और अपने श्रृंगार[20] का प्रदर्शन न करें, सिवाय उसके जो उसमें से प्रकट हो जाए। तथा अपनी ओढ़नियाँ अपने सीनों पर डाले रहें। और अपने श्रृंगार को ज़ाहिर न करें, परंतु अपने पतियों के लिए, या अपने पिताओं, या अपने पतियों के पिताओं, या अपने बेटों[21], या अपने पतियों के बेटों, या अपने भाइयों[23], या अपने भतीजों, या अपने भाँजों[24], या अपनी स्त्रियों[25], या अपने दास-दासियों, या अधीन रहने वाले पुरुषों[26] के लिए जो कामवासना वाले नहीं, या उन लड़कों के लिए जो स्त्रियों की पर्दे की बातों से परिचित नहीं हुए। तथा अपने पैर (धरती पर) न मारें, ताकि उनका वह श्रृंगार मालूम हो जाए, जो वह छिपाती हैं। और ऐ ईमान वालो! तुम सब अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम सफल हो जाओ।

तफ़्सीर:

20. शोभा से तात्पर्य वस्त्र तथा आभूषण हैं। 21. पुत्रों में पौत्र तथा नाती परनाती सब सम्मिलित हैं, इसमें सगे सौतीले का कोई अंतर नहीं। 23. भाइयों मे सगे और सौतीले तथा माँ जाए सब भाई आते हैं। 24. भतीजों और भाँजों में उनके पुत्र तथा पौत्र और नाती सभी आते हैं। 25. अपनी स्त्रियों से अभिप्रेत मुस्लिम स्त्रियाँ हैं। 26. अर्थात जो अधीन होने के कारण घर की महिलाओं के साथ कोई अनुचित इच्छा का साहस न कर सकेंगे। कुछ ने इसका अर्थ नपुंसक लिया है। (इब्ने कसीर) इसमें घर के भीतर उन पर शोभा के प्रदर्शन से रोका गया है जिनसे विवाह हो सकता है।

सूरह का नाम : An-Nur   सूरह नंबर : 24   आयत नंबर: 31

وَأَنكِحُواْ ٱلۡأَيَٰمَىٰ مِنكُمۡ وَٱلصَّـٰلِحِينَ مِنۡ عِبَادِكُمۡ وَإِمَآئِكُمۡۚ إِن يَكُونُواْ فُقَرَآءَ يُغۡنِهِمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦۗ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٞ

तथा तुम अपने में से अविवाहित पुरुषों तथा स्त्रियों का निकाह कर दो[27], और अपने दासों और अपनी दासियों में से जो सदाचारी हैं उनका भी (विवाह कर दो)। यदि वे निर्धन होंगे, तो अल्लाह उन्हें अपने अनुग्रह से धनी बना देगा। और अल्लाह विस्तार वाला, सब कुछ जानने वाला है।

तफ़्सीर:

27. निकाह के विषय में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन है : "जो मेरी सुन्नत से विमुख होगा, वह मुझ से नहीं है।" (बुख़ारी : 5063 तथा मुस्लिम : 1020)

सूरह का नाम : An-Nur   सूरह नंबर : 24   आयत नंबर: 32

وَلۡيَسۡتَعۡفِفِ ٱلَّذِينَ لَا يَجِدُونَ نِكَاحًا حَتَّىٰ يُغۡنِيَهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦۗ وَٱلَّذِينَ يَبۡتَغُونَ ٱلۡكِتَٰبَ مِمَّا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡ فَكَاتِبُوهُمۡ إِنۡ عَلِمۡتُمۡ فِيهِمۡ خَيۡرٗاۖ وَءَاتُوهُم مِّن مَّالِ ٱللَّهِ ٱلَّذِيٓ ءَاتَىٰكُمۡۚ وَلَا تُكۡرِهُواْ فَتَيَٰتِكُمۡ عَلَى ٱلۡبِغَآءِ إِنۡ أَرَدۡنَ تَحَصُّنٗا لِّتَبۡتَغُواْ عَرَضَ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۚ وَمَن يُكۡرِههُّنَّ فَإِنَّ ٱللَّهَ مِنۢ بَعۡدِ إِكۡرَٰهِهِنَّ غَفُورٞ رَّحِيمٞ

और उन लोगों को (बहुत) पवित्र रहना चाहिए, जो विवाह का सामर्थ्य नहीं रखते, यहाँ तक कि अल्लाह उन्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध कर दे। तथा तुम्हारे दास-दासियों में से जो लोग मुक्ति के लिए लेख की माँग करें, तो तुम उन्हें लिख दो, यदि तुम उनमें कुछ भलाई[28] जानो। और उन्हें अल्लाह के उस माल में से दो, जो उसने तुम्हें प्रदान किया है। तथा अपनी दासियों को वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर न करो, यदि वे पवित्र रहना चाहें[29], ताकि तुम सांसारिक जीवन का सामान प्राप्त करो। और जो उन्हें मजबूर करेगा, तो निश्चय अल्लाह उनके मजबूर किए जाने के बाद[30], अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।

तफ़्सीर:

28. इस्लाम ने दास-दासियों की स्वाधीनता के जो नियम बनाए हैं, उनमें यह भी है कि वे कुछ धनराशि देकर स्वाधीनता-लेख की माँग करें, तो यदि उनमें इस धनराशि को चुकाने की योग्यता हो, तो आयत में बल दिया गया है कि उनको स्वाधीलता-लेख दे दो। 29. अज्ञानकाल में स्वामी, धन अर्जित करने के लिए अपनी दासियों को व्यभिचार के लिए बाध्य करते थे। इस्लाम ने इस व्यवसाय को वर्जित कर दिया। ह़दीस में आया है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुत्ते के मूल्य तथा वैश्या और ज्योतिषी की कमाई को रोक दिया। (बुख़ारी : 2237, मुस्लिम : 1567) 30. अर्थात दासी से बल पूर्वक व्यभिचार कराने का पाप स्वामी पर होगा, दासी पर नहीं।

सूरह का नाम : An-Nur   सूरह नंबर : 24   आयत नंबर: 33

وَلَقَدۡ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكُمۡ ءَايَٰتٖ مُّبَيِّنَٰتٖ وَمَثَلٗا مِّنَ ٱلَّذِينَ خَلَوۡاْ مِن قَبۡلِكُمۡ وَمَوۡعِظَةٗ لِّلۡمُتَّقِينَ

तथा निःसंदेह हमने तुम्हारी ओर स्पष्ट आयतें और तुमसे पहले गुज़रे हुए लोगों का उदाहरण और डरने वालों के लिए शिक्षा उतारी है।

सूरह का नाम : An-Nur   सूरह नंबर : 24   आयत नंबर: 34

۞ٱللَّهُ نُورُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ مَثَلُ نُورِهِۦ كَمِشۡكَوٰةٖ فِيهَا مِصۡبَاحٌۖ ٱلۡمِصۡبَاحُ فِي زُجَاجَةٍۖ ٱلزُّجَاجَةُ كَأَنَّهَا كَوۡكَبٞ دُرِّيّٞ يُوقَدُ مِن شَجَرَةٖ مُّبَٰرَكَةٖ زَيۡتُونَةٖ لَّا شَرۡقِيَّةٖ وَلَا غَرۡبِيَّةٖ يَكَادُ زَيۡتُهَا يُضِيٓءُ وَلَوۡ لَمۡ تَمۡسَسۡهُ نَارٞۚ نُّورٌ عَلَىٰ نُورٖۚ يَهۡدِي ٱللَّهُ لِنُورِهِۦ مَن يَشَآءُۚ وَيَضۡرِبُ ٱللَّهُ ٱلۡأَمۡثَٰلَ لِلنَّاسِۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ

अल्लाह आकाशों तथा धरती का[31] प्रकाश है। उसके प्रकाश की मिसाल एक ताक़ की तरह है, जिसमें एक दीप है। वह दीप (काँच के) एक फानूस में है। वह फानूस गोया चमकता हुआ तारा है। वह (दीप) एक बरकत वाले वृक्ष 'ज़ैतून' (के तेल) से जलाया जाता है, जो न पूर्वी है और न पश्चिमी। उसका तेल निकट है कि (स्वयं) प्रकाश देने लगे, यद्यपि उसे आग ने न छुआ हो। प्रकाश पर प्रकाश है। अल्लाह अपने प्रकाश की ओर जिसका चाहता है, मार्गदर्शन करता है। और अल्लाह लोगों के लिए मिसालें प्रस्तुत करता है। और अल्लाह प्रत्येक चीज़ को भली-भाँति जानने वाला है।

तफ़्सीर:

31. अर्थात आकाशों तथा धरती की व्यवस्था करता और उनके वासियों को संमार्ग दर्शाता है। और अल्लाह की पुस्तक और उसका मार्गदर्शन उसका प्रकाश है। यदि उसका प्रकाश न होता, तो यह संसार अँधेरा होता। फिर कहा कि उसकी ज्योति ईमानवालों के दिलों में ऐसे है जैसे किसी ताखा में अति प्रकाशमान दीप रखा हो, जो आगामी वर्णित गुणों से युक्त हो। पूर्वी तथा पश्चिमी न होने का अर्थ यह है कि उसपर पूरे दिन धूप पड़ती हो, जिसके कारण उसका तेल अति शुद्ध तथा साफ़ हो।

सूरह का नाम : An-Nur   सूरह नंबर : 24   आयत नंबर: 35

فِي بُيُوتٍ أَذِنَ ٱللَّهُ أَن تُرۡفَعَ وَيُذۡكَرَ فِيهَا ٱسۡمُهُۥ يُسَبِّحُ لَهُۥ فِيهَا بِٱلۡغُدُوِّ وَٱلۡأٓصَالِ

(यह चिराग़) उन महान घरों[32] में (जलाया जाता है), जिनके बारे में अल्लाह ने आदेश दिया है कि वे ऊँचे किए जाएँ और उनमें उसका नाम याद किया जाए। उनमें सुबह और शाम उसकी महिमा का गान करते हैं।

तफ़्सीर:

32. इससे तात्पर्य मस्जिदें हैं।

सूरह का नाम : An-Nur   सूरह नंबर : 24   आयत नंबर: 36

رِجَالٞ لَّا تُلۡهِيهِمۡ تِجَٰرَةٞ وَلَا بَيۡعٌ عَن ذِكۡرِ ٱللَّهِ وَإِقَامِ ٱلصَّلَوٰةِ وَإِيتَآءِ ٱلزَّكَوٰةِ يَخَافُونَ يَوۡمٗا تَتَقَلَّبُ فِيهِ ٱلۡقُلُوبُ وَٱلۡأَبۡصَٰرُ

ऐसे लोग, जिन्हें व्यापार तथा क्रय-विक्रय अल्लाह के स्मरण, नमाज़ क़ायम करने और ज़कात देने से ग़ाफ़िल नहीं करता। वे उस दिन[33] से डरते हैं, जिसमें दिल तथा आँखें उलट जाएँगी।

तफ़्सीर:

33. अर्थात प्रलय के दिन।

सूरह का नाम : An-Nur   सूरह नंबर : 24   आयत नंबर: 37

لِيَجۡزِيَهُمُ ٱللَّهُ أَحۡسَنَ مَا عَمِلُواْ وَيَزِيدَهُم مِّن فَضۡلِهِۦۗ وَٱللَّهُ يَرۡزُقُ مَن يَشَآءُ بِغَيۡرِ حِسَابٖ

ताकि अल्लाह उन्हें उसका सर्वश्रेष्ठ बदला दे जो उन्होंने किया, और उन्हें अपने अनुग्रह से अधिक प्रदान करे और अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब जीविका देता है।

सूरह का नाम : An-Nur   सूरह नंबर : 24   आयत नंबर: 38

وَٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَعۡمَٰلُهُمۡ كَسَرَابِۭ بِقِيعَةٖ يَحۡسَبُهُ ٱلظَّمۡـَٔانُ مَآءً حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءَهُۥ لَمۡ يَجِدۡهُ شَيۡـٔٗا وَوَجَدَ ٱللَّهَ عِندَهُۥ فَوَفَّىٰهُ حِسَابَهُۥۗ وَٱللَّهُ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ

तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया[34], उनके कर्म किसी चटियल मैदान में एक सराब (मरीचिका)[35] की तरह हैं, जिसे सख़्त प्यासा आदमी पानी समझता है। यहाँ तक कि जब उसके पास आता है, तो उसे कुछ भी नहीं पाता और अल्लाह को अपने पास पाता है, तो वह उसे उसका हिसाब पूरा चुका देता है। और अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करने वाला है।

तफ़्सीर:

34.आयत का अर्थ यह है कि काफ़िरों के कर्म, अल्लाह पर ईमान न होने के कारण अल्लाह के समक्ष व्यर्थ हो जाएँगे। 35. कड़ी गर्मी के समय रेगिस्तान में जो चमकती हुई रेत पानी जैसी लगती है उसे सराब कहते हैं।

सूरह का नाम : An-Nur   सूरह नंबर : 24   आयत नंबर: 39

أَوۡ كَظُلُمَٰتٖ فِي بَحۡرٖ لُّجِّيّٖ يَغۡشَىٰهُ مَوۡجٞ مِّن فَوۡقِهِۦ مَوۡجٞ مِّن فَوۡقِهِۦ سَحَابٞۚ ظُلُمَٰتُۢ بَعۡضُهَا فَوۡقَ بَعۡضٍ إِذَآ أَخۡرَجَ يَدَهُۥ لَمۡ يَكَدۡ يَرَىٰهَاۗ وَمَن لَّمۡ يَجۡعَلِ ٱللَّهُ لَهُۥ نُورٗا فَمَا لَهُۥ مِن نُّورٍ

अथवा (उनके कर्म) उन अँधेरों के समान हैं, जो अत्यंत गहरे सागर में हों, जिसे एक लहर ढाँप रही हो, जिसके ऊपर एक और लहर हो, जिसके ऊपर एक बादल हो, कई अँधेरे हों, जिनमें से कुछ, कुछ के ऊपर हों। जब (इन अँधेरों में फँसा हुआ व्यक्ति) अपना हाथ निकाले, तो क़रीब नहीं कि उसे देख पाए। और वह व्यक्ति जिसके लिए अल्लाह प्रकाश न बनाए, तो उसके लिए कोई भी प्रकाश[36] नहीं।

तफ़्सीर:

36. अर्थात काफ़िर, अविश्वास और कुकर्मों के अंधकार में घिरा रहता है। और ये अंधकार उसे मार्गदर्शन की ओर नहीं आने देते।

सूरह का नाम : An-Nur   सूरह नंबर : 24   आयत नंबर: 40

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