कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَمِنۡ ءَايَٰتِهِۦٓ أَنۡ خَلَقَ لَكُم مِّنۡ أَنفُسِكُمۡ أَزۡوَٰجٗا لِّتَسۡكُنُوٓاْ إِلَيۡهَا وَجَعَلَ بَيۡنَكُم مَّوَدَّةٗ وَرَحۡمَةًۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ

तथा उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्ही में से जोड़े पैदा किए, ताकि तुम उनके पास शांति प्राप्त करो। तथा उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दया रख दी। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशाननियाँ हैं, जो सोच-विचार करते हैं।

सूरह का नाम : Ar-Rum   सूरह नंबर : 30   आयत नंबर: 21

وَمِنۡ ءَايَٰتِهِۦ خَلۡقُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱخۡتِلَٰفُ أَلۡسِنَتِكُمۡ وَأَلۡوَٰنِكُمۡۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّلۡعَٰلِمِينَ

तथा उसकी निशानियों में से आकाशों और धरती को पैदा करना तथा तुम्हारी भाषाओं और तुम्हारे रंगों का अलग-अलग होना है। निःसंदेह इसमें ज्ञान रखने वालों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ[8] है।

तफ़्सीर:

8. क़ुरआन ने यह कहकर कि भाषाओं और वर्ग-वर्ण का भेद अल्लाह की रचना की निशानियाँ हैं, उस भेद-भाव को सदा के लिए समाप्त कर दिया, जो पक्षपात, आपसी बैर और र्गव का आधार बनते हैं। और संसार की शांति को भंग करने का कारण होते हैं। (देखिए : सूरतुल ह़ुजुरात, आयत : 13) यदि आज भी इस्लाम की इस शिक्षा को अपना लिया जाए तो संसार शांति का गहवारा बन सकता है।

सूरह का नाम : Ar-Rum   सूरह नंबर : 30   आयत नंबर: 22

وَمِنۡ ءَايَٰتِهِۦ مَنَامُكُم بِٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَٱبۡتِغَآؤُكُم مِّن فَضۡلِهِۦٓۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَسۡمَعُونَ

तथा उसकी निशानियों में से तुम्हारा रात और दिन को सोना और तुम्हारा उसके अनुग्रह को तलाश करना है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो सुनते हैं।

सूरह का नाम : Ar-Rum   सूरह नंबर : 30   आयत नंबर: 23

وَمِنۡ ءَايَٰتِهِۦ يُرِيكُمُ ٱلۡبَرۡقَ خَوۡفٗا وَطَمَعٗا وَيُنَزِّلُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَيُحۡيِۦ بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَآۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ

और उसकी निशानियों में से (यह भी) है कि वह तुम्हें भय और आशा के लिए बिजली दिखाता है और आकाश से पानी उतारता है, फिर उसके द्वारा धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित कर देता है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो समझते हैं।

सूरह का नाम : Ar-Rum   सूरह नंबर : 30   आयत नंबर: 24

وَمِنۡ ءَايَٰتِهِۦٓ أَن تَقُومَ ٱلسَّمَآءُ وَٱلۡأَرۡضُ بِأَمۡرِهِۦۚ ثُمَّ إِذَا دَعَاكُمۡ دَعۡوَةٗ مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ إِذَآ أَنتُمۡ تَخۡرُجُونَ

और उसकी निशानियों में से है कि आकाश तथा धरती उसके आदेश से स्थापित हैं। फिर जब वह तुम्हें धरती में से एक ही बार पुकारेगा, तो सहसा तुम (बाहर) निकल आओगे।

सूरह का नाम : Ar-Rum   सूरह नंबर : 30   आयत नंबर: 25

وَلَهُۥ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ كُلّٞ لَّهُۥ قَٰنِتُونَ

और आकाशों और धरती में जो भी है, उसी का है। सब उसी के आज्ञाकारी हैं।

सूरह का नाम : Ar-Rum   सूरह नंबर : 30   आयत नंबर: 26

وَهُوَ ٱلَّذِي يَبۡدَؤُاْ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ يُعِيدُهُۥ وَهُوَ أَهۡوَنُ عَلَيۡهِۚ وَلَهُ ٱلۡمَثَلُ ٱلۡأَعۡلَىٰ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ

तथा वही है, जो उत्पत्ति का आरंभ करता है। फिर वही उसे पुनः पैदा करेगा। और यह उसके लिए अधिक सरल है। तथा आकाशों और धरती में सर्वोच्च गुण उसी का है। और वही प्रभुत्वशाली, हिकमत वाला है।

सूरह का नाम : Ar-Rum   सूरह नंबर : 30   आयत नंबर: 27

ضَرَبَ لَكُم مَّثَلٗا مِّنۡ أَنفُسِكُمۡۖ هَل لَّكُم مِّن مَّا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُم مِّن شُرَكَآءَ فِي مَا رَزَقۡنَٰكُمۡ فَأَنتُمۡ فِيهِ سَوَآءٞ تَخَافُونَهُمۡ كَخِيفَتِكُمۡ أَنفُسَكُمۡۚ كَذَٰلِكَ نُفَصِّلُ ٱلۡأٓيَٰتِ لِقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ

उसने तुम्हारे लिए स्वयं तुम्हीं में से एक उदाहरण पेश किया है। हमने जो रोज़ी तुम्हें प्रदान की है, क्या उसमें तुम्हारे[9] दासों में से तुम्हारा कोई साझी है कि तुम उसमें समान हो, उनसे वैसे ही डरते हो, जैसे एक-दूसरे से डरते हो? इसी प्रकार हम उन लोगों के लिए आयतें खोल-खोलकर वर्णन करते हैं, जो समझ रखते हैं।

तफ़्सीर:

9. परलोक और एकेश्वरवाद के तर्कों का वर्णन करने के पश्चात् इस आयत में शुद्ध एकेश्वरवाद के प्रमाण प्रस्तुत किए जा रहे हैं कि जब तुम स्वयं अपने दासों को अपनी जीविका में साझी नहीं बना सकते, तो जिस अल्लाह ने सबको बनाया है उसकी उपासना में दूसरों को कैसे साझी बनाते हो?

सूरह का नाम : Ar-Rum   सूरह नंबर : 30   आयत नंबर: 28

بَلِ ٱتَّبَعَ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوٓاْ أَهۡوَآءَهُم بِغَيۡرِ عِلۡمٖۖ فَمَن يَهۡدِي مَنۡ أَضَلَّ ٱللَّهُۖ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ

बल्कि वे लोग जिन्होंने अत्याचार किया बिना किसी ज्ञान के अपनी इच्छाओं के पीछे चल पड़े।फिर उसे कौन मार्ग पर लाए, जिसे अल्लाह ने गुमराह कर दिया हो। और उनके लिए कोई सहायक नहीं है।

सूरह का नाम : Ar-Rum   सूरह नंबर : 30   आयत नंबर: 29

فَأَقِمۡ وَجۡهَكَ لِلدِّينِ حَنِيفٗاۚ فِطۡرَتَ ٱللَّهِ ٱلَّتِي فَطَرَ ٱلنَّاسَ عَلَيۡهَاۚ لَا تَبۡدِيلَ لِخَلۡقِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ ٱلدِّينُ ٱلۡقَيِّمُ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ

तो (ऐ नबी!) आप एकाग्र होकर अपने चेहरे को इस धर्म की ओर स्थापित करें। उस फ़ितरत पर जमे रहें, जिसपर[10] अल्लाह ने लोगों को पैदा किया है। अल्लाह की रचना में कोई बदलाव नहीं हो सकता। यही सीधा धर्म है, लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते।[11]

तफ़्सीर:

10. एक ह़दीस में कुछ इस प्रकार आया है कि प्रत्येक शिशु प्रकृति (अर्थात इस्लाम) पर जन्म लेता है। परंतु उसके माँ-बाप उसे यहूदी या ईसाई या मजूसी बना देते हैं। (देखिए : सह़ीह़ मुस्लिम : 2656) और यदि उसके माता पिता हिन्दु अथवा बुद्ध या और कुछ हैं, तो वे अपने शिशु को अपने धर्म के रंग में रंग देते हैं। आयत का भावार्थ यह है कि स्वभाविक धर्म इस्लाम और तौह़ीद को न बदलो, बल्कि सह़ीह पालन-पोषण द्वारा अपने शिशु को इसी स्वभाविक धर्म इस्लाम की शिक्षा दो। 11. इसीलिए वे इस्लाम और तौह़ीद को नहीं पहचानते।

सूरह का नाम : Ar-Rum   सूरह नंबर : 30   आयत नंबर: 30

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