कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنَ ٱلۡمُدۡحَضِينَ

फिर वह क़ुर'आ में शामिल हुआ, तो हारने वालों में से हो गया।

सूरह का नाम : As-Saffat   सूरह नंबर : 37   आयत नंबर: 141

فَٱلۡتَقَمَهُ ٱلۡحُوتُ وَهُوَ مُلِيمٞ

फिर मछली ने उसे निगल लिया, इस हाल में कि वह निंदनीय था।

सूरह का नाम : As-Saffat   सूरह नंबर : 37   आयत नंबर: 142

فَلَوۡلَآ أَنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلۡمُسَبِّحِينَ

फिर अगर यह बात न होती कि वह अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करने वालों में से था।

सूरह का नाम : As-Saffat   सूरह नंबर : 37   आयत नंबर: 143

لَلَبِثَ فِي بَطۡنِهِۦٓ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ

तो निश्चय वह उसके पेट में उस दिन तक रहता, जिसमें लोग उठाए जाएँगे।[23]

तफ़्सीर:

23. अर्थात प्रयल के दिन तक। (देखिए : सूरतुल-अंबिया, आयत : 87)

सूरह का नाम : As-Saffat   सूरह नंबर : 37   आयत नंबर: 144

۞فَنَبَذۡنَٰهُ بِٱلۡعَرَآءِ وَهُوَ سَقِيمٞ

फिर हमने उसे चटियल मैदान में फेंक दिया, इस हाल में कि वह बीमार[24] था।

तफ़्सीर:

24. अर्थात निर्बल नवजात शिशु के समान।

सूरह का नाम : As-Saffat   सूरह नंबर : 37   आयत नंबर: 145

وَأَنۢبَتۡنَا عَلَيۡهِ شَجَرَةٗ مِّن يَقۡطِينٖ

तथा हमने उसपर एक लता वाला वृक्ष उगा दिया।[25]

तफ़्सीर:

25. रक्षा के लिए।

सूरह का नाम : As-Saffat   सूरह नंबर : 37   आयत नंबर: 146

وَأَرۡسَلۡنَٰهُ إِلَىٰ مِاْئَةِ أَلۡفٍ أَوۡ يَزِيدُونَ

तथा हमने उसे एक लाख की ओर भेजा, बल्कि वे अधिक होंगे।

सूरह का नाम : As-Saffat   सूरह नंबर : 37   आयत नंबर: 147

فَـَٔامَنُواْ فَمَتَّعۡنَٰهُمۡ إِلَىٰ حِينٖ

चुनाँचे वे ईमान ले आए, तो हमने उन्हें एक समय तक लाभ उठाने दिया।[26]

तफ़्सीर:

26. देखिए : सूरत यूनुस।

सूरह का नाम : As-Saffat   सूरह नंबर : 37   आयत नंबर: 148

فَٱسۡتَفۡتِهِمۡ أَلِرَبِّكَ ٱلۡبَنَاتُ وَلَهُمُ ٱلۡبَنُونَ

तो (ऐ नबी!) आप उनसे पूछें कि क्या आपके पालनहार के लिए बेटियाँ हैं और उनके लिए बेटे?

सूरह का नाम : As-Saffat   सूरह नंबर : 37   आयत नंबर: 149

أَمۡ خَلَقۡنَا ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةَ إِنَٰثٗا وَهُمۡ شَٰهِدُونَ

या हमने फ़रिश्तों को मादा पैदा किया, जबकि वे उस समय उपस्थित[27] थे?

तफ़्सीर:

27. इसमें मक्का के मिश्रणवादियों का खंडन किया जा रहा है, जो फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्रियाँ कहते थे। जबकि वे स्वयं पुत्रियों के जन्म को अप्रिय मानते थे।

सूरह का नाम : As-Saffat   सूरह नंबर : 37   आयत नंबर: 150

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