कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

۞قُلۡ يَتَوَفَّىٰكُم مَّلَكُ ٱلۡمَوۡتِ ٱلَّذِي وُكِّلَ بِكُمۡ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ تُرۡجَعُونَ

आप कह दें कि मौत का फ़रिश्ता तुम्हारे प्राण निकाल लेगा, जो तुमपर नियुक्त किया गया है, फिर तुम अपने पालनहार ही की ओर लौटाए जाओगे।[2]

तफ़्सीर:

2. अर्थात नई उत्पत्ति पर आश्चर्य करने से पहले इसपर विचार करो कि मरण तो आत्मा के शरीर से विलग हो जाने का नाम है, जो दूसरे स्थान पर चली जाती है। और परलोक में उसे नया जन्म दे दिया जाएगा, फिर उसे अपने कर्म के अनुसार स्वर्ग अथवा नरक में पहुँचा दिया जाएगा।

सूरह का नाम : As-Sajdah   सूरह नंबर : 32   आयत नंबर: 11

وَلَوۡ تَرَىٰٓ إِذِ ٱلۡمُجۡرِمُونَ نَاكِسُواْ رُءُوسِهِمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ رَبَّنَآ أَبۡصَرۡنَا وَسَمِعۡنَا فَٱرۡجِعۡنَا نَعۡمَلۡ صَٰلِحًا إِنَّا مُوقِنُونَ

और यदि आप देखें, जब अपराधी लोग अपने पालनहार के सामने अपने सिर झुकाए (खड़े) होंगे। (वे कहेंगे :) ऐ हमारे पालनहार! हमने देख लिया और सुन लिया। अतः हमें (दुनिया में) वापस भेज दे कि हम अच्छे कार्य करें। निःसंदेह हम विश्वास करने वाले हैं।

सूरह का नाम : As-Sajdah   सूरह नंबर : 32   आयत नंबर: 12

وَلَوۡ شِئۡنَا لَأٓتَيۡنَا كُلَّ نَفۡسٍ هُدَىٰهَا وَلَٰكِنۡ حَقَّ ٱلۡقَوۡلُ مِنِّي لَأَمۡلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ ٱلۡجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِينَ

और यदि हम चाहते, तो प्रत्येक प्राणी को उसका मार्गदर्शन प्रदान कर देते। लेकिन मेरी ओर से बात प्रमाणित (निश्चित) हो चुकी कि मैं जहन्नम को जिन्नों तथा इनसानों, सबसे से ज़रूर भरूँगा।

सूरह का नाम : As-Sajdah   सूरह नंबर : 32   आयत नंबर: 13

فَذُوقُواْ بِمَا نَسِيتُمۡ لِقَآءَ يَوۡمِكُمۡ هَٰذَآ إِنَّا نَسِينَٰكُمۡۖ وَذُوقُواْ عَذَابَ ٱلۡخُلۡدِ بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ

तो (अब यातना) चखो, इस कारण कि तुमने अपने इस दिन के मिलने को भुला दिया। निःसंदेह हमने तुम्हें भुला दिया।[3] और जो तुम किया करते थे उसके कारण शाश्वत यातना का मज़ा चखो।

तफ़्सीर:

3. अर्थात आज तुमपर मेरी कोई दया नहीं होगी।

सूरह का नाम : As-Sajdah   सूरह नंबर : 32   आयत नंबर: 14

إِنَّمَا يُؤۡمِنُ بِـَٔايَٰتِنَا ٱلَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُواْ بِهَا خَرُّواْۤ سُجَّدٗاۤ وَسَبَّحُواْ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡ وَهُمۡ لَا يَسۡتَكۡبِرُونَ۩

हमारी आयतों पर तो केवल वही लोग ईमान लाते हैं कि जब उन्हें उन (आयतों) के साथ नसीहत की जाती है, तो वे सजदा करते हुए गिर जाते हैं, और अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का गान करते हैं, और वे अभिमान नहीं करते।[4]

तफ़्सीर:

4. यहाँ सजदा-ए- तिलावत करना चाहिए।

सूरह का नाम : As-Sajdah   सूरह नंबर : 32   आयत नंबर: 15

تَتَجَافَىٰ جُنُوبُهُمۡ عَنِ ٱلۡمَضَاجِعِ يَدۡعُونَ رَبَّهُمۡ خَوۡفٗا وَطَمَعٗا وَمِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ يُنفِقُونَ

उनके पहलू बिस्तरों से अलग रहते हैं। वे अपने पालनहार को भय तथा आशा के साथ पुकारते हैं। तथा हमने जो कुछ उन्हें प्रदान किया है, उसमें से खर्च करते हैं।

सूरह का नाम : As-Sajdah   सूरह नंबर : 32   आयत नंबर: 16

فَلَا تَعۡلَمُ نَفۡسٞ مَّآ أُخۡفِيَ لَهُم مِّن قُرَّةِ أَعۡيُنٖ جَزَآءَۢ بِمَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ

तो कोई प्राणी नहीं जानता कि उनके लिए आँखों की ठंढक[5] में से क्या कुछ छिपाकर रखा गया है, उसके बदले के तौर पर, जो वे (दुनिया में) किया करते थे।

तफ़्सीर:

5. ह़दीस में है कि अल्लाह ने फरमाया : मैंने अपने सदाचारी बंदों के लिए ऐसी चीज़ें तैयार की हैं, जिन्हें न किसी आँख ने देखा है और न किसी कान ने सुना है और न किसी मनुष्य के दिल में उन का विचार आया। फिर आपने यही आयत पढ़ी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4780)

सूरह का नाम : As-Sajdah   सूरह नंबर : 32   आयत नंबर: 17

أَفَمَن كَانَ مُؤۡمِنٗا كَمَن كَانَ فَاسِقٗاۚ لَّا يَسۡتَوُۥنَ

तो क्या वह व्यक्ति जो ईमान वाला हो, वह उसके समान है, जो अवज्ञाकारी हो? वे समान नहीं हो सकते।

सूरह का नाम : As-Sajdah   सूरह नंबर : 32   आयत नंबर: 18

أَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ فَلَهُمۡ جَنَّـٰتُ ٱلۡمَأۡوَىٰ نُزُلَۢا بِمَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ

लेकिन जो लोग ईमान लाए तथा उन्होंने सत्कर्म किए, तो उनके लिए रहने के बाग़ हैं, उन कार्यों के बदले में आतिथ्य स्वरूप, जो वे किया करते थे।

सूरह का नाम : As-Sajdah   सूरह नंबर : 32   आयत नंबर: 19

وَأَمَّا ٱلَّذِينَ فَسَقُواْ فَمَأۡوَىٰهُمُ ٱلنَّارُۖ كُلَّمَآ أَرَادُوٓاْ أَن يَخۡرُجُواْ مِنۡهَآ أُعِيدُواْ فِيهَا وَقِيلَ لَهُمۡ ذُوقُواْ عَذَابَ ٱلنَّارِ ٱلَّذِي كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ

और रहे वे लोग, जिन्होंने अवज्ञा की, तो उनका ठिकाना आग है। जब भी वे उससे निकलना चाहेंगे, उसी में लौटा दिए जाएँगे, तथा उनसे कहा जाएगा कि उस आग की यातना चखो, जिसे तुम झुठलाया करते थे।

सूरह का नाम : As-Sajdah   सूरह नंबर : 32   आयत नंबर: 20

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