कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

فَاطِرُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ جَعَلَ لَكُم مِّنۡ أَنفُسِكُمۡ أَزۡوَٰجٗا وَمِنَ ٱلۡأَنۡعَٰمِ أَزۡوَٰجٗا يَذۡرَؤُكُمۡ فِيهِۚ لَيۡسَ كَمِثۡلِهِۦ شَيۡءٞۖ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡبَصِيرُ

(वह) आकाशों तथा धरती का रचयिता है। उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी अपनी ही जाति से जोड़े बनाए तथा पशुओं से भी जोड़े। वह तुम्हें इसमें फैलाता है। उसके जैसी[9] कोई चीज़ नहीं और वह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है।

तफ़्सीर:

9. अर्थात उसके अस्तित्व तथा गुण और कर्म में कोई उसके समान नहीं है। भावार्थ यह है कि किसी व्यक्ति या वस्तु में उसका गुण या कर्म मानना या उसे उसका अंश मानना, असत्य तथा अधर्म है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 11

لَهُۥ مَقَالِيدُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ إِنَّهُۥ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ

आकाशों तथा धरती की कुंजियाँ उसी के पास हैं। वह जिसके लिए चाहता है, रोज़ी कुशादा कर देता है और (जिसकी चाहता है) तंग कर देता है। निःसंदेह वह प्रत्येक वस्तु को ख़ूब जानने वाला है।[10]

तफ़्सीर:

10. आयत संख्या 9 से 12 तक जिन तथ्यों की चर्चा है उनमें एकेश्वरवाद तथा परलोक के प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं। और सत्य से विमुख होने वालों को चेतावनी दी गई है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 12

۞شَرَعَ لَكُم مِّنَ ٱلدِّينِ مَا وَصَّىٰ بِهِۦ نُوحٗا وَٱلَّذِيٓ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ وَمَا وَصَّيۡنَا بِهِۦٓ إِبۡرَٰهِيمَ وَمُوسَىٰ وَعِيسَىٰٓۖ أَنۡ أَقِيمُواْ ٱلدِّينَ وَلَا تَتَفَرَّقُواْ فِيهِۚ كَبُرَ عَلَى ٱلۡمُشۡرِكِينَ مَا تَدۡعُوهُمۡ إِلَيۡهِۚ ٱللَّهُ يَجۡتَبِيٓ إِلَيۡهِ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِيٓ إِلَيۡهِ مَن يُنِيبُ

उसने तुम्हारे लिए वही धर्म निर्धारित[11] किया है, जिसका आदेश उसने नूह़ को दिया और जिसकी वह़्य हमने आपकी ओर की, तथा जिसका आदेश हमने इबराहीम तथा मूसा और ईसा को दिया, यह कि इस धर्म को क़ायम करो और उसके विषय में अलग-अलग न हो जाओ। बहुदेववादियों पर वह बात भारी है जिसकी ओर आप उन्हें बुलाते हैं। अल्लाह जिसे चाहता है, अपने लिए चुन लेता है और अपनी ओर मार्ग उसी को दिखाता है, जो उसकी ओर लौटता है।

तफ़्सीर:

11. इस आयत में पाँच नबियों का नाम लेकर बताया गया है कि सबको एक ही धर्म देकर भेजा गया है। जिसका अर्थ यह है कि इस मानव संसार में अंतिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तक जो भी नबी आए सभी की मूल शिक्षा एक रही है, कि एक अल्लाह को मानो और उसी एक की इबादत करो। तथा वैध-अवैध के विषय में अल्लाह ही के आदेशों का पालन करो। और अपने सभी धार्मिक तथा सामाजिक और राजनैतिक विवादों का निर्णय उसी के धर्म-विधान के आधार पर करो। (देखिए : सूरतुन-निसा, आयत :163-164)

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 13

وَمَا تَفَرَّقُوٓاْ إِلَّا مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَهُمُ ٱلۡعِلۡمُ بَغۡيَۢا بَيۡنَهُمۡۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةٞ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗى لَّقُضِيَ بَيۡنَهُمۡۚ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ أُورِثُواْ ٱلۡكِتَٰبَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡ لَفِي شَكّٖ مِّنۡهُ مُرِيبٖ

और वे[12] लोग आपस की ज़िद के कारण इसके पश्चात् अलग-अलग हुए कि उनके पास ज्ञान आ चुका था। तथा यदि वह बात न होती जो आपके पालनहार की ओर से एक निश्चित समय के लिए पहले तय[13] हो चुकी, तो अवश्य उनके बीच निर्णय कर दिया जाता। और निःसंदेह वे लोग जो उनके पश्चात् पुस्तक के उत्तराधिकारी बनाए[14] गए, वे इस (क़ुरआन) के बारे में दुविधा में डालने वाले संदेह में पड़े हैं।

तफ़्सीर:

12. अर्थात मुश्रिक। 13. अर्थात प्रलय के दिन निर्णय करने की। 14. अर्थात यहूदी तथा ईसाई भी सत्य में मतभेद तथा संदेह कर रहे हैं।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 14

فَلِذَٰلِكَ فَٱدۡعُۖ وَٱسۡتَقِمۡ كَمَآ أُمِرۡتَۖ وَلَا تَتَّبِعۡ أَهۡوَآءَهُمۡۖ وَقُلۡ ءَامَنتُ بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِن كِتَٰبٖۖ وَأُمِرۡتُ لِأَعۡدِلَ بَيۡنَكُمُۖ ٱللَّهُ رَبُّنَا وَرَبُّكُمۡۖ لَنَآ أَعۡمَٰلُنَا وَلَكُمۡ أَعۡمَٰلُكُمۡۖ لَا حُجَّةَ بَيۡنَنَا وَبَيۡنَكُمُۖ ٱللَّهُ يَجۡمَعُ بَيۡنَنَاۖ وَإِلَيۡهِ ٱلۡمَصِيرُ

अतः आप लोगों को इसी (धर्म) की ओर बुलाएँ और (उसपर) जमें रहें, जैसाकि आपको आदेश दिया गया है और उनकी इच्छाओं का पालन न करें, तथा कह दें कि अल्लाह ने जो भी किताब उतारी[15] है मैं उसपर ईमान लाया। तथा मुझे आदेश दिया गया है कि मैं तुम्हारे बीच न्याय करूँ। अल्लाह ही हमारा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है। हमारे लिए हमारे कर्म हैं तथा तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। हमारे और तुम्हारे बीच कोई झगड़ा नहीं। अल्लाह हम सभी को एकत्र करेगा तथा उसी की ओर लौटकर जाना है।[16]

तफ़्सीर:

15. अर्थात सभी आकाशीय पुस्तकों पर जो नबियों पर उतारी गई हैं। 16. अर्थात प्रलय के दिन। फिर वह हमारे बीच निर्णय कर देगा।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 15

وَٱلَّذِينَ يُحَآجُّونَ فِي ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا ٱسۡتُجِيبَ لَهُۥ حُجَّتُهُمۡ دَاحِضَةٌ عِندَ رَبِّهِمۡ وَعَلَيۡهِمۡ غَضَبٞ وَلَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٌ

तथा जो लोग अल्लाह के (धर्म के) बारे में झगड़ते हैं, इसके पश्चात कि उसे[17] स्वीकार कर लिया गया, उनका तर्क उनके रब के यहाँ बातिल (व्यर्थ) है, तथा उनपर बड़ा प्रकोप है और उनके लिए बुहत कड़ी यातना है।

तफ़्सीर:

17. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम), और इस्लाम धर्म को।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 16

ٱللَّهُ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ وَٱلۡمِيزَانَۗ وَمَا يُدۡرِيكَ لَعَلَّ ٱلسَّاعَةَ قَرِيبٞ

अल्लाह ही है जिसने सत्य के साथ यह पुस्तक उतारी तथा तराज़ू[18] भी, और आपको क्या चीज़ सूचित करती है शायद कि क़ियामत क़रीब हो।

तफ़्सीर:

18. तराज़ू से अभिप्राय न्याय का आदेश है। जो क़ुरआन द्वारा दिया गया है। (देखिए : सूरतुल-ह़दीद, आयत : 25)

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 17

يَسۡتَعۡجِلُ بِهَا ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِهَاۖ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مُشۡفِقُونَ مِنۡهَا وَيَعۡلَمُونَ أَنَّهَا ٱلۡحَقُّۗ أَلَآ إِنَّ ٱلَّذِينَ يُمَارُونَ فِي ٱلسَّاعَةِ لَفِي ضَلَٰلِۭ بَعِيدٍ

उसे वे लोग शीघ्र माँगते हैं, जो उसपर ईमान नहीं रखते, तथा वे लोग जो उसपर विश्वास रखते हैं, वे उससे डरने वाले हैं और जानते हैं कि निःसंदेह वह सत्य है। सुनो! निःसंदेह जो लोग क़ियामत के विषय में बहस (संदेह) करते हैं, निश्चय वे बहुत दूर की गुमराही में हैं।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 18

ٱللَّهُ لَطِيفُۢ بِعِبَادِهِۦ يَرۡزُقُ مَن يَشَآءُۖ وَهُوَ ٱلۡقَوِيُّ ٱلۡعَزِيزُ

अल्लाह अपने बंदों पर बड़ा दयालु है। वह जिसे चाहता है रोज़ी देता है और वही सर्वशक्तिमान, सब पर प्रभुत्वशाली है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 19

مَن كَانَ يُرِيدُ حَرۡثَ ٱلۡأٓخِرَةِ نَزِدۡ لَهُۥ فِي حَرۡثِهِۦۖ وَمَن كَانَ يُرِيدُ حَرۡثَ ٱلدُّنۡيَا نُؤۡتِهِۦ مِنۡهَا وَمَا لَهُۥ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ مِن نَّصِيبٍ

जो कोई आख़िरत की खेती[19] चाहता है, हम उसके लिए उसकी खेती में बढ़ोतरी कर देंगे, और जो कोई दुनिया की खेती चाहता है, हम उसे उसमें से कुछ दे देंगे, और आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं होगा।

तफ़्सीर:

19. अर्थात जो अपने सांसारिक सत्कर्म का प्रतिफल परलोक में चाहता है, तो उसे उसका प्रतिफल दस गुना से सात सौ गुना तक मिलेगा। और जो सांसारिक फल का अभिलाषी है, तो जो उसके भाग्य में है उसे उतना ही मिलेगा और परलोक में कुछ नहीं मिलेगा। (इब्ने कसीर)

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 20

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