कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

أَمۡ لَهُمۡ شُرَكَـٰٓؤُاْ شَرَعُواْ لَهُم مِّنَ ٱلدِّينِ مَا لَمۡ يَأۡذَنۢ بِهِ ٱللَّهُۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةُ ٱلۡفَصۡلِ لَقُضِيَ بَيۡنَهُمۡۗ وَإِنَّ ٱلظَّـٰلِمِينَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ

या इन (मुश्रिकों) के कुछ ऐसे साझी[20] हैं, जिन्होंने उनके लिए धर्म का एक ऐसा नियम निर्धारित किया है जिसकी अल्लाह ने अनुमति नहीं दी है? और यदि नियत की हुई बात न होती, तो अवश्य उनके बीच निर्णय कर दिया जाता तथा निश्चय ही अत्याचारियों के लिए दुखद यातना है।

तफ़्सीर:

20. इससे अभिप्राय उनके वे प्रमुख हैं जो वैध-अवैध का नियम बनाते थे। इसमें यह संकेत है कि धार्मिक जीवन-विधान बनाने का अधिकार केवल अल्लाह को है। उसके सिवा दूसरों के बनाए हुये धार्मिक जीवन-विधान को मानना और उसका पालन करना शिर्क है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 21

تَرَى ٱلظَّـٰلِمِينَ مُشۡفِقِينَ مِمَّا كَسَبُواْ وَهُوَ وَاقِعُۢ بِهِمۡۗ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ فِي رَوۡضَاتِ ٱلۡجَنَّاتِۖ لَهُم مَّا يَشَآءُونَ عِندَ رَبِّهِمۡۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡكَبِيرُ

आप अत्याचारियों को देखेंगे कि वे उससे डरने वाले होंगे जो उन्होंने कमाया, हालाँकि वह उनपर आकर रहने वाला है, तथा जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे जन्नतों के बागों में होंगे। उनके लिए जो कुछ भी वे चाहेंगे उनके रब के पास होगा। यही बहुत बड़ा अनुग्रह है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 22

ذَٰلِكَ ٱلَّذِي يُبَشِّرُ ٱللَّهُ عِبَادَهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِۗ قُل لَّآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ أَجۡرًا إِلَّا ٱلۡمَوَدَّةَ فِي ٱلۡقُرۡبَىٰۗ وَمَن يَقۡتَرِفۡ حَسَنَةٗ نَّزِدۡ لَهُۥ فِيهَا حُسۡنًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ شَكُورٌ

यही वह चीज़ है, जिसकी शुभ-सूचना अल्लाह अपने उन बंदों को देता है, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कार्य किए। आप कह दें : मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता, रिश्तेदारी के कारण प्रेम-भाव के सिवा।[21] और जो कोई नेकी कमाएगा, हम उसके लिए उसमें अच्छाई की अभिवृद्धि करेंगे। निश्चय अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, अति गुण-ग्राहक है।

तफ़्सीर:

21. भावार्थ यह है कि मक्का वासियो! यदि तुम सत्धर्म पर ईमान नहीं लाते हो, तो मुझे इसका प्रचार तो करने दो। मुझपर अत्याचार न करो। तुम सभी मेरे संबंधी हो। इसलिए मेरे साथ प्रेम का व्यवहार करो। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4818)

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 23

أَمۡ يَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبٗاۖ فَإِن يَشَإِ ٱللَّهُ يَخۡتِمۡ عَلَىٰ قَلۡبِكَۗ وَيَمۡحُ ٱللَّهُ ٱلۡبَٰطِلَ وَيُحِقُّ ٱلۡحَقَّ بِكَلِمَٰتِهِۦٓۚ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ

या वे कहते हैं कि उसने अल्लाह पर झूठ गढ़ लिया है? तो यदि अल्लाह चाहे, तो आपके दिल पर मुहर लगा दे।[22] और अल्लाह असत्य को मिटा देता है और सत्य को अपने शब्दों (प्रमाणों) द्वारा साबित कर देता है। निश्चय वह सीनों (दिलों) की बातों को ख़ूब जानने वाला है।

तफ़्सीर:

22. अर्थ यह है कि ऐ नबी! इन्होंने आपको अपने जैसा समझ लिया है, जो अपने स्वार्थ के लिए झूठ का सहारा लेते हैं। किंतु अल्लाह ने आपके दिल पर मुहर नहीं लगाई है जैसे इनके दिलों पर लगा रखी है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 24

وَهُوَ ٱلَّذِي يَقۡبَلُ ٱلتَّوۡبَةَ عَنۡ عِبَادِهِۦ وَيَعۡفُواْ عَنِ ٱلسَّيِّـَٔاتِ وَيَعۡلَمُ مَا تَفۡعَلُونَ

वही है, जो अपने बंदों की तौबा क़बूल करता है और बुराइयों[23] को माफ़ करता है और जो कुछ तुम करते हो, उसे जानता है।

तफ़्सीर:

23. तौबा का अर्थ है अपने पाप पर लज्जित होना, फिर उसे न करने का संकल्प लेना। ह़दीस में है कि जब बंदा अपना पाप स्वीकार कर लेता है और फिर तौबा करता है, तो अल्लाह उसे क्षमा कर देता है। (सह़ीह बुख़ारी : 4141, सह़ीह़ मुस्लिम : 2770)

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 25

وَيَسۡتَجِيبُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ وَيَزِيدُهُم مِّن فَضۡلِهِۦۚ وَٱلۡكَٰفِرُونَ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞ

और उन लोगों की प्रार्थना स्वीकार करता है, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कार्य किए तथा उन्हें अपने अनुग्रह से अधिक प्रदान करता है और जो काफ़िर हैं उनके लिए कड़ी यातना है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 26

۞وَلَوۡ بَسَطَ ٱللَّهُ ٱلرِّزۡقَ لِعِبَادِهِۦ لَبَغَوۡاْ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَٰكِن يُنَزِّلُ بِقَدَرٖ مَّا يَشَآءُۚ إِنَّهُۥ بِعِبَادِهِۦ خَبِيرُۢ بَصِيرٞ

और यदि अल्लाह अपने (सब) बंदों के लिए रोज़ी कुशादा कर देता, तो वे धरती में सरकशी[24] करते। परंतु वह एक अनुमान से उतारता है, जितना चाहता है। निश्चय वह अपने बंदों से भली-भाँति अवगत, भली-भाँति देखने वाला है।

तफ़्सीर:

24. अर्थात यदि अल्लाह सभी को संपन्न बना देता, तो धरती में अवज्ञा और अत्याचार होने लगता और कोई किसी के आधीन न रहता।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 27

وَهُوَ ٱلَّذِي يُنَزِّلُ ٱلۡغَيۡثَ مِنۢ بَعۡدِ مَا قَنَطُواْ وَيَنشُرُ رَحۡمَتَهُۥۚ وَهُوَ ٱلۡوَلِيُّ ٱلۡحَمِيدُ

तथा वही है जो बारिश बरसाता है, इसके बाद कि वे निराश हो चुके होते हैं और अपनी दया फैला[25] देता है और वही संरक्षक, सराहनीय है।

तफ़्सीर:

25. इस आयत में वर्षा को अल्लाह की दया कहा गया है। क्यों कि इससे धरती में उपज होती है, जो अल्लाह के अधिकार में है। इसे नक्षत्रों का प्रभाव मानना शिर्क है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 28

وَمِنۡ ءَايَٰتِهِۦ خَلۡقُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَثَّ فِيهِمَا مِن دَآبَّةٖۚ وَهُوَ عَلَىٰ جَمۡعِهِمۡ إِذَا يَشَآءُ قَدِيرٞ

तथा उसकी निशानियों में से आकाशों और धरती का पैदा करना है और वे प्राणी जो उसने उन दोनों में फैला रखे हैं, और वह उन्हें इकट्ठा करने में जब चाहे पूर्ण सक्षम है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 29

وَمَآ أَصَٰبَكُم مِّن مُّصِيبَةٖ فَبِمَا كَسَبَتۡ أَيۡدِيكُمۡ وَيَعۡفُواْ عَن كَثِيرٖ

तथा जो भी विपत्ति तुम्हें पहुँची, वह उसके कारण है जो तुम्हारे हाथों ने कमाया। तथा वह बहुत-सी चीज़ों को क्षमा कर देता है।[26]

तफ़्सीर:

26. देखिए : सूरत फ़ातिर, आयत : 45

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 30

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