कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

وَلَمَنِ ٱنتَصَرَ بَعۡدَ ظُلۡمِهِۦ فَأُوْلَـٰٓئِكَ مَا عَلَيۡهِم مِّن سَبِيلٍ

तथा जो अपने ऊपर अत्याचार होने के पश्चात् बदला ले ले, तो ये वे लोग हैं जिनपर कोई दोष नहीं।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 41

إِنَّمَا ٱلسَّبِيلُ عَلَى ٱلَّذِينَ يَظۡلِمُونَ ٱلنَّاسَ وَيَبۡغُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّۚ أُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ

दोष तो केवल उन्हीं पर है, जो लोगों पर अत्याचार करते हैं और धरती पर बिना अधिकार के सरकशी करते हैं। यही लोग हैं जिनके लिए कष्टदायक यातना है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 42

وَلَمَن صَبَرَ وَغَفَرَ إِنَّ ذَٰلِكَ لَمِنۡ عَزۡمِ ٱلۡأُمُورِ

और निःसंदेह जो सब्र करे तथा क्षमा कर दे, तो निःसदंहे यह निश्चय बड़े साहस के कामों में से है।[31]

तफ़्सीर:

31. इस आयत में क्षमा करने की प्रेरणा दी गई है कि यदि कोई अत्याचार कर दे, तो उसे सहन करना और क्षमा कर देना और सामर्थ्य रखते हुए उससे बदला न लेना बड़ी सुशीलता तथा साहस की बात है जिसकी बड़ी प्रधानता है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 43

وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن وَلِيّٖ مِّنۢ بَعۡدِهِۦۗ وَتَرَى ٱلظَّـٰلِمِينَ لَمَّا رَأَوُاْ ٱلۡعَذَابَ يَقُولُونَ هَلۡ إِلَىٰ مَرَدّٖ مِّن سَبِيلٖ

तथा जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, तो उसके बाद उसका कोई सहायक नहीं। तथा आप अत्याचारियों को देखेंगे कि जब वे यातना देखेंगे, तो कहेंगे : क्या वापसी का कोई रास्ता है?[32]

तफ़्सीर:

32. ताकि संसार में जाकर ईमान लाएँ और सत्कर्म करें तथा परलोक की यातना से बच जाएँ।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 44

وَتَرَىٰهُمۡ يُعۡرَضُونَ عَلَيۡهَا خَٰشِعِينَ مِنَ ٱلذُّلِّ يَنظُرُونَ مِن طَرۡفٍ خَفِيّٖۗ وَقَالَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِنَّ ٱلۡخَٰسِرِينَ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ وَأَهۡلِيهِمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ أَلَآ إِنَّ ٱلظَّـٰلِمِينَ فِي عَذَابٖ مُّقِيمٖ

तथा आप उन्हें देखेंगे कि वे उस (आग) पर इस दशा में पेश किए जाएँगे कि अपमान से झुके हुए, छिपी आँखों से देख रहे होंगे। तथा ईमान वाले कहेंगे : वास्तव में, असल घाटा उठाने वाले वही लोग हैं, जिन्होंने क़ियामत के दिन अपने आपको और अपने परिवार को घाटे में डाल दिया। सुन लो! निःसंदेह अत्याचारी लोग स्थायी यातना में होंगे।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 45

وَمَا كَانَ لَهُم مِّنۡ أَوۡلِيَآءَ يَنصُرُونَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِۗ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن سَبِيلٍ

तथा उनके कोई सहायक नहीं होंगे, जो अल्लाह के मुक़ाबले में उनकी सहायता करें। और जिसे अल्लाह राह से भटका दे, फिर उसके लिए कोई मार्ग नहीं।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 46

ٱسۡتَجِيبُواْ لِرَبِّكُم مِّن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَ يَوۡمٞ لَّا مَرَدَّ لَهُۥ مِنَ ٱللَّهِۚ مَا لَكُم مِّن مَّلۡجَإٖ يَوۡمَئِذٖ وَمَا لَكُم مِّن نَّكِيرٖ

अपने पालनहार का निमंत्रण स्वीकार करो, इससे पहले कि वह दिन आए, जिसे अल्लाह की ओर से टलना नहीं। उस दिन तुम्हारे लिए न कोई शरण स्थल होगा और न तुम्हारे लिए इनकार का कोई रास्ता होगा।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 47

فَإِنۡ أَعۡرَضُواْ فَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ عَلَيۡهِمۡ حَفِيظًاۖ إِنۡ عَلَيۡكَ إِلَّا ٱلۡبَلَٰغُۗ وَإِنَّآ إِذَآ أَذَقۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ مِنَّا رَحۡمَةٗ فَرِحَ بِهَاۖ وَإِن تُصِبۡهُمۡ سَيِّئَةُۢ بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيهِمۡ فَإِنَّ ٱلۡإِنسَٰنَ كَفُورٞ

फिर यदि वे मुँह फेर लें, तो हमने आपको उनपर कोई संरक्षक बनाकर नहीं भेजा। आपका दायित्व तो केवल (संदेश) पहुँचा देना है। और निःसंदेह जब हम मनुष्य को अपनी ओर से कोई दया चखाते हैं, तो वह उससे खुश हो जाता है, और यदि उनपर उसके कारण कोई विपत्ति आ पड़ती है, जो उनके हाथों ने आगे भेजा है, तो निःसंदेह मनुष्य बड़ा नाशुक्रा है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 48

لِّلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ يَهَبُ لِمَن يَشَآءُ إِنَٰثٗا وَيَهَبُ لِمَن يَشَآءُ ٱلذُّكُورَ

आकाशों तथा धरती का राज्य अल्लाह ही का है। वह जो चाहता है पैदा करता है, जिसे चाहता है बेटियाँ देता है और जिसे चाहता है बेटे देता है।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 49

أَوۡ يُزَوِّجُهُمۡ ذُكۡرَانٗا وَإِنَٰثٗاۖ وَيَجۡعَلُ مَن يَشَآءُ عَقِيمًاۚ إِنَّهُۥ عَلِيمٞ قَدِيرٞ

या उन्हें बेटे-बेटियाँ[33] मिलाकर देता है और जिसे चाहता है बाँझ कर देता है। निश्चय ही वह सब कुछ जानने वाला, हर चीज़ की शक्ति रखने वाला है।

तफ़्सीर:

33. इस आयत में संकेत है कि पुत्र-पुत्री माँगने के लिए किसी पीर, फ़क़ीर के मज़ार पर जाना, उनको अल्लाह की शक्ति में साझी बनाना है। जो शिर्क है। और शिर्क ऐसा पाप है जिसके लिए बिना तौबा के कोई क्षमा नहीं।

सूरह का नाम : Ash-Shura   सूरह नंबर : 42   आयत नंबर: 50

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